Friday - 25 October 2024 - 10:59 PM

दक्षिण एशिया में विकराल रूप ले रहा है वायु प्रदूषण

डॉ. सीमा जावेद

दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण का संकट खास तौर से विकासशील देशों के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। बहु क्षेत्रीय प्रदूषणकारी स्रोतों की व्यापक श्रंखला और उससे जुड़े मसलों की व्यापकता को देखते हुए इनके क्षेत्रीय स्तर पर समुचित समाधान निकालने की जरूरत है। मगर यह एक बहुत बड़ा काम है वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की योजनाओं में प्रदूषण उत्सर्जन के मौजूदा स्तरों का अनुमान लगाना ही काफी नहीं होगा बल्कि भविष्य में बढ़ी आबादी और अर्थव्यवस्था में होने वाले विकास की तात्कालिक स्थितियों को भी ध्यान में रखना होगा।

दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के अवसरों पर बातचीत के लिए इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) और क्लाइमेट ट्रेंड्स ने एक वेबिनार का आयोजन किया। इसमें विशेषज्ञों ने दक्षिण एशिया में विकराल रूप लेती वायु प्रदूषण की समस्या और उसके स्वास्थ्य सम्बन्धी पहलू की भयावहता को सामने रखा बल्कि उन कारणों को भी जाहिर किया, जिनकी वजह से ये हालात पैदा हुए।

आईएएसएस पोट्सडैम जर्मनी के रिसर्च ग्रुप लीडर डॉक्टर महेस्वर रूपाखेटी ने कहा कि दुनिया के अनेक हिस्सों में साफ हवा में सांस लेना एक लग्जरी की तरह है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम 100% प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। मौजूदा हालात ऐसे हैं कि वायु प्रदूषण से जुड़ी चीजों को बहुत संकीर्ण तरीके से परिभाषित किया जा रहा है और हम इस मुद्दे पर सामान्य समझ को नजरअंदाज कर रहे हैं। इन रेखांकित प्रक्रियाओं को समझना जरूरी है कि हम इस हालत में किस वजह से पहुंचे या किन-किन कारकों ने असर डाला। हम दक्षिण एशिया में ऊर्जा रूपांतरण के बारे में बात करते हैं। यह किस प्रकार से वायु प्रदूषण से तथा स्वास्थ्य प्रभावों से जुड़ा है। जलवायु और कृषि नीति का क्या मामला है और वे किससे किस तरह से जुड़े हुए हैं। इस तरह के रेखांकित तथ्य आमतौर पर विमर्श से गायब रहते हैं।

उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण पर हमारे विचार बहुत संकीर्ण रूप से परिभाषित रहते हैं। हमें एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा। पहले हमें प्रक्रियाओं को लेकर एक साझा समझ बनानी होगी। उसके बाद ही हम अधिक प्रभावी प्रतिरक्षण और रूपांतरण योजनाएं बना सकेंगे। दक्षिण एशिया के देशों में एक दूसरे के साथ आकर परस्पर बातचीत करके ट्रांसडिसीप्लिनरी, इंटर डिसीप्लिनरी और मल्टीडिसीप्लिनरी तरीके से काम करने की संस्कृति काफी हद तक नदारद है। साइंटिफिक एविडेंस बेस को बनाना भी बहुत महत्वपूर्ण है। दक्षिण एशियाई देशों को एक साथ आकर साझा साइंटिफिक बेस का निर्माण करना होगा जिसे हर कोई समझ सके। इसी‍ की बुनियाद पर समाधानों की इमारत खड़ी हो सकती है।

हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टिट्यूट के अध्यक्ष डॉक्टर डेनियल ग्रीनबाम ने कहा कि पूरे दक्षिण एशिया में लोग वायु प्रदूषण के उच्च स्तरों से जूझ रहे हैं। इससे स्वास्थ्य के साथ-साथ अर्थव्यवस्था पर भी उल्लेखनीय प्रभाव पड़ रहे हैं। उपलब्ध सुबूतों से वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बीच संबंध साबित होते हैं। वह चाहे अल्पकालिक हों या दीर्घकालिक। ऐसे में दक्षिण एशिया की हवा को साफ करने के लिए एक सतत और दीर्घकालिक कार्य योजना बनाने की जरूरत है। खासकर क्षेत्र विशिष्ट नीतिगत कदम उठाना बहुत महत्वपूर्ण होगा।

उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण के कारण दक्षिण एशिया और उप सहारा अफ्रीका के क्षेत्रों में मरने वाले नवजात बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है। भारत में वायु प्रदूषण के कारण एक लाख से ज्यादा बच्चों की मौत उनके जन्म के तीन महीने के अंदर ही हो जाती है। वर्ष 2019 में पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण के कारण करीब पांच लाख बच्चों की मौत जन्म से एक महीने के अंदर ही हो गई। दुनिया में 20% नवजात बच्चों की मौत का सीधा संबंध वायु प्रदूषण से होता है। असामयिक मृत्यु और विकलांगता के लिए वायु प्रदूषण का चौथा सबसे बड़ा कारण माना जाता है। वर्ष 2019 में पूरी दुनिया में हुई कुल मौतों के 12% हिस्से के लिए वायु प्रदूषण को जिम्मेदार माना गया।

डॉक्टर डेनियल ने एक प्रस्तुतीकरण देते हुए कहा कि दक्षिण एशिया में ग्राउंड लेवल पीएम 2.5 का स्तर काफी ऊंचा बना हुआ है। पिछले 10 वर्षों के दौरान भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में पीएम 2.5 के स्तर में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। दक्षिण एशिया के देशों में रहने वाली 61% आबादी घर में खाना बनाने के दौरान उत्पन्न होने वाले वायु प्रदूषण की चपेट में है। हालांकि घरेलू वायु प्रदूषण के संपर्क में आने का सिलसिला तेजी से कम हो रहा है क्योंकि ज्यादा से ज्यादा लोग स्वच्छ विकल्पों की तरफ बढ़ रहे हैं।

आईआईटी कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉक्टर एसएन त्रिपाठी ने कहा कि भारत और नेपाल के सिंधु गंगा के संपूर्ण मैदानों के बीच एक अप्रत्याशित समानता है। जहां तक वायु प्रदूषण का सवाल है तो काठमांडू में पीएम 2.5 का स्तर दिल्ली के मुकाबले बढ़ा हुआ दिखाई दिया। वहीं, ढाका में यह अब भी काफी कम रहा। अगर मैं ढाका और कानपुर की बात करूं तो घरों में खाना बनाए जाने से निकलने वाला प्रदूषण वायु प्रदूषण के लिए बड़ा जिम्मेदार है। रसोई गैस का इस्तेमाल होने से घरेलू उत्सर्जन में बहुत कमी आई है।

उन्होंने तुलना करते हुए कहा कि कानपुर और ढाका के बीच एक और महत्वपूर्ण समानता मैंने देखी है वह यह कि ढाका में पीएम 2.5 का स्तर कानपुर के मुकाबले कम है लेकिन धात्विक संकेंद्रण जैसे कि लेड की मात्रा की बात करें तो ढाका की हवा में इसकी मात्रा काफी ज्यादा है।

प्रोफेसर त्रिपाठी ने कहा कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम वैसे तो केंद्र सरकार ने तैयार किया है लेकिन यह काफी हद तक शहरों पर केंद्रित है और इसे मिशन की तरह चलाया जा रहा है। इसमें 113 नॉन अटेनमेंट सिटीज को चयनित किया गया है जो नेशनल एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स को नहीं अपनाते हैं, लेकिन अब हम नेशनल नॉलेज नेटवर्क लेकर आ रहे हैं जो देश के उच्च प्रौद्योगिकीय संस्थानों को साथ लेकर आ रहा है ताकि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को जमीन पर उतारने में मदद मिल सके। अब हम एयर शेड के बारे में सोच रहे हैं। पहले हम प्रांतीय स्तर के प्रबंधन को तैयार करेंगे। उसके बाद हम उससे आगे बढ़ेंगे, इससे देशों और लोगों को इस दिशा में विचार विमर्श के लिए एक अच्छा मंच मिलेगा।

उन्होंने कहा कि दिल्ली और एनसीआर में पीएम 2.5 के स्तरों में कुछ गिरावट देखी गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और आईआईटी दिल्ली के कुछ विशेषज्ञों ने दावा किया है कि पिछले चार वर्षों के दौरान इसमें 20% की गिरावट आई है लेकिन एनसीआर में 5-6 नीतिगत कदम उठाए गए। भारत ने हाल ही में नेशनल बायोमास मिशन की घोषणा की है। यह एक बहु मंत्रालयीय प्रयास है। इससे हम पीएम 2.5 के स्तरों में और भी सुधार की उम्मीद कर सकते हैं। इसके तहत न सिर्फ कृषि क्षेत्र को कवर किया जाएगा बल्कि नगरीय तथा अन्य अनेक सेक्टर भी कवर होंगे।

बांग्लादेश इन्वायरमेंट लॉयर्स एसोसिएशन ढाका की चीफ एग्जीक्यूटिव सैयदा रिजवाना हसन ने कहा कि अखबारों में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक यह पाया गया है कि बढ़ते तापमान की वजह से बांग्लादेश के बड़े शहर आने वाले समय में रहने के लायक नहीं रह जाएंगे। पूरी तरह से अव्यवस्थित शहरीकरण के कारण नगरों में हरियाली को खतरनाक स्तर तक नुकसान पहुंचाया गया है। एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि बांग्लादेश में वनों के कटान की दर 2.6 है जोकि वैश्विक स्तर 1.3 के मुकाबले दोगुनी है। बांग्लादेश में पहले से ही वन आच्छादन क्षेत्र बहुत कम है। पिछले अप्रैल में एक अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्था ने दावा किया था कि ढाका के कुछ हिस्सों को मीथेन के गुबार ने ढक लिया है जो ढाका के किसी लैंडफिल साइट से उठ रहा है। करीब छह-सात साल पहले विश्व बैंक ने एक अध्ययन में कहा था कि बांग्लादेश में वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत ईंट भट्ठे हैं।

उन्होंने कहा कि उनका अनुभव है कि अन्य पर्यावरणीय समस्याओं को देखा जाता है लेकिन वायु प्रदूषण अदृश्य समस्या है, लिहाजा उसी हिसाब से इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए। ढाका की हवा दुनिया में सबसे खराब हवा के मामले में दूसरे नंबर पर है। मेरा सभी देशों से सुझाव है कि वह वायु प्रदूषण से जुड़े कानून बनायें। मेरा मानना है कि वायु प्रदूषण से संबंधित आंकड़ों और सूचनाओं को जनता तक पहुंचाना बहुत महत्वपूर्ण है। लोगों में सूचना का आदान प्रदान करना और उन्हें यह बताना बहुत जरूरी है कि हमारी हवा इस वक्त बेहद खराब है।

यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन में सिविल एंड एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉक्टर जेम्स जे. शार ने कहा कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए किसी एक क्षेत्र में काम करने की नहीं बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में काम करने की आवश्यकता है। हमें न सिर्फ वायु प्रदूषण को कम करने पर बल्कि इसकी राह में खड़ी बाधाओं को दूर करने के दिशा में भी काम करना होगा। इसके लिए सरकारों के विभिन्न स्तरों पर तालमेल विकसित करना होगा। साथ ही सरकार, उद्योग, प्रबुद्ध वर्ग तथा आम लोगों को एक साझा मंच भी बनाना होगा।

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वायु प्रदूषण को सामान्य विमर्श का हिस्सा बनाना होगा। ऐसा माहौल तैयार करने की जरूरत है कि लोग वायु प्रदूषण की समस्या को गंभीरता से समझें। साथ ही प्रौद्योगिकीय समाधानों के प्रति समझ बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी उपलब्ध करानी होगी। समुदायों और प्रबुद्ध वर्ग के बीच एक तालमेल बैठाना होगा ताकि समस्या का सामाजिक समाधान निकले। आर्थिक अनुमानों के मुद्दे का समाधान करना भी बहुत महत्वपूर्ण है हमें जवाबदेही का आकलन करना होगा ताकि नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके।

क्लीन एयर एशिया की डिप्टी एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर ग्लेंडा बाथन ने कहा कि देशों और शहरों को प्रौद्योगिकी संबंधी प्रशिक्षण पर ध्यान देना चाहिए ताकि प्रौद्योगिकी सहायता क्षमता निर्माण के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके क्योंकि यह इससे इंटर गवर्नमेंट डिक्लेरेशन को सच्चाई के धरातल पर उतारने के लिहाज से अहम है।

उन्होंने कहा कि अगर हम राज्य और स्थानीय निकाय इकाइयों को देखें तो वायु की गुणवत्ता और नगर विकास को एशियाई शहरों के मुख्यधारा में लाया जाना चाहिए। शहरों को आर्थिक विकास का इंजन कहा जाता है लेकिन साथ ही साथ यह पर्यावरण प्रदूषण के सबसे बड़े स्रोत भी हैं इसलिए प्रदूषण को कम करने में इन शहरों की मदद करने की जरूरत है।

                                                                 लेखिका पर्यावरणविद , वरिष्ठ पत्रकार और जलवायु परिवर्तन की रणनीतिक संचारक हैं.

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