न्यूज डेस्क
भारत में सरकारों के लिए स्वास्थ्य उनकी प्राथमिकता में नहीं रहा है। जिस तरह दुनिया के अन्य स्वास्थ्य को लेकर सजग हैं वैसा भारत में नहीं बिल्कुल नहीं है। शायद इसीलिए स्वास्थ्य के मामले भारत पीछे हैं।
इतना ही नहीं भारत में जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर व्यक्ति की सेवा ) के लिए कोई निर्धारित नीति नहीं है। फिलहाल इस दिशा में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ( एम्स ) काम करने जा रहा है।
एम्स ऐसी नीति बनाने की तैयारी में हैं, जिसमें जिन मरीजों के बचने की उम्मीद खत्म हो चुकी है, उनकी मौत सम्मानजनक और कम से कम तकलीफ के साथ हो।
मरीजों की मौत के समय उनकी हालत पर किए गए एक सर्वे में भारत 67वें पायदान पर है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य के मामले में भारत सरकार की क्या सोच है।
फिलहाल इस दिशा में एम्स ने कदम बढ़ाया है। अस्पताल ने ऐसे मरीजों की देखरेख के लिए एक कोर कमिटी बनाई है। इन मरीजों में कैंसर के मरीजों के अलावा अन्य बीमारियों से पीडि़त लोग भी हैं जिनके बचने की संभावना खत्म हो चुकी है।
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इस कमिटी का मकसद ऐसे मरीजों की पहचान करके उनका ज्यादा से ज्यादा ख्याल रखना, उनके दर्द को कम करना और भावनात्मक और आध्यात्मिक मदद करना है।
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि ऐसे स्टेज में मरीज के परिवार वाले इलाज रोकने के लिए कहते हैं। वे मरीज के आखिरी दिनों में उन्हें अस्पताल में और इतने ट्यूब्स और दवाइयों के साथ नहीं देखना चाहते हैं। एम्स की EOLC (एंड ऑफ लाइफ केयर) पॉलिसी इन चीजों को ध्यान में रखकर बनाई जाएगी।
मालूम हो कि इस सर्वे में पहला स्थान पाने वाले देश इंग्लैंड में क्लियर EOLC पॉलिसी है। सम्मान के साथ मरने के हक के लिए भारत में भी पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने पैसिव यूथनेशिया की अनुमति दी थी।
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