शबाहत हुसैन विजेता
लखनऊ. आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष, यूनिटी कालेज और इरा मेडिकल कालेज के संस्थापक, शिया सुन्नी इत्तेहाद के पैरोकार, हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल पक्षधर और वक्त की पाबंदी की मिसाल शिया धर्मगुरु मौलाना डॉ. कल्बे सादिक लाखों चाहने वालों की मौजूदगी में सुपुर-ए-ख़ाक कर दिए गए.
प्रसिद्ध विद्वान मौलाना गजनफर अब्बास तूसी ने मौलाना कल्बे सादिक के न रहने की खबर सुनते ही कहा, “सादिक तुम्हारे मरने ने साबित यह कर दिया, आलिम की मौत वाकई आलम की मौत है”.
मौलाना डॉ. कल्बे सादिक कैंसर का आपरेशन कराने के बाद पिछले करीब दो साल से लगातार इरा मेडिकल कालेज की डाक्टरों की निगरानी में थे. पिछले दिनों निमोनिया की शिकायत होने के बाद उनकी हालत बिगड़ती चली गई. उनकी किडनी ने साथ देना बंद कर दिया. उनकी तीन बार डायलेसिस की गई. वह वेंटीलेटर पर चले गए. हिन्दुस्तान ही नहीं दुनिया के कई देशों में उनके लिए दुआएं की गईं लेकिन 24 नवम्बर की रात मलिन बस्तियों में इल्म का चिराग रौशन करने वाला सूरज डूब गया.
मौलाना कल्बे सादिक हिन्दुस्तान में होने वाले दंगों के सख्त खिलाफ थे लेकिन वह यह भी नहीं चाहते थे कि इस मामले में लोगों को समझाया जाए. दंगाग्रस्त इलाकों में भी वह किसी को जागरूक करने के पक्ष में नहीं थे. उनका मानना था कि दंगा जाहिल लोग करते हैं, पढ़े-लिखे लोग अपने काम धंधों में ही इतना बिजी रहते हैं कि उनके पास दंगा-फसाद की फुर्सत ही नहीं होती.
मौलाना कल्बे सादिक चाहते थे कि दंगा ग्रस्त इलाकों में स्कूल खोले जाएं. कोशिश की जाए कि हर घर का बच्चा स्कूल जाए और पढ़ाई करे. जिन माँ-बाप के पास पढ़ाने के लिए पैसा नहीं हो उनके बच्चो को मुफ्त शिक्षा दी जाए.
मौलाना कल्बे सादिक का कहना था कि जब हर घर में इल्म की रौशनी हो जायेगी तब दंगा-फसाद अपने आप रुक जाएगा. इसी सोच के साथ उन्होंने पुराने लखनऊ के हुसैनाबाद इलाके में यूनिटी कालेज शुरू किया था. वह घंटाघर के सामने वाली ज़मीन पर लड़कियों के लिए बेगम हजरत महल के नाम पर डिग्री कालेज खोलना चाहते थे.
मौलाना का मानना था कि यूनिटी कालेज में एडमिशन लेने वाले पढ़ाई करने के बाद रोज़गार हासिल करने में करीब 20 साल लेंगे. यानी दंगा कम करने में 20 साल लगेंगे. वह कहते थे कि मैं 20 साल इंतज़ार करने को तैयार हूँ.
मौलाना कल्बे सादिक ने नई पीढ़ी को दो सबसे अहम बातें सिखाईं. पहली यह कि चाहे जिस हाल में पढ़ना पड़े लेकिन पढ़ाई करो और दूसरी बात थी कि वक्त के पाबन्द रहो. वक्त की पाबंदी उन्होंने लोगों को इस अंदाज़ में सिखाई कि लोग उनके दिए वक्त के हिसाब से काम करते थे.
लखनऊ के गोमतीनगर में एक बड़ा कार्यक्रम था. तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उसमें मुख्य अतिथि थे और डॉ. कल्बे सादिक को अध्यक्षता करनी थी. मौलाना कल्बे सादिक को शाम साढ़े पांच बजे बोलना था. मुख्यमंत्री कार्यक्रम में करीब पांच बजे पहुंचे. इसके बाद कार्यक्रम शुरू हुआ. ठीक साढ़े पांच बजे कल्बे सादिक अपनी जगह से उठे और डायस पर पहुँच गए. उन्होंने कहा कि माफी चाहता हूँ कि बीच प्रोग्राम में बगैर बुलाये माइक पर आ गया हूँ. चीफ मिनिस्टर अभी अच्छी-अच्छी बातें बताएँगे लेकिन अफ़सोस की बात है कि अपने पूर्व निर्धारित दूसरे प्रोग्राम की वजह से मैं उन्हें सुन नहीं पाऊंगा. उन्होंने कहा कि दो मिनट में अपनी बात कहकर मैं चला जाऊंगा. प्रोग्राम पहले की तरह से चलता रहेगा.
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एक और वाक्या याद आता है. मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर कई धर्मगुरु बुलाये गए थे. सबका सम्मान किया जाना था. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हाथों कई धर्मगुरु सम्मानित किये गए. मौलाना कल्बे सादिक को भी सम्मान के लिए बुलाया गया. कल्बे सादिक ने सम्मान लेने से पहले एक मिनट बोलने को कहा और माइक पर पहुँच गए.
डॉ. कल्बे सादिक ने कहा कि मैं समाज में इल्म की रौशनी फैलाना चाहता हूँ. मैं समाज को यह सिखाना चाहता हूँ कि मानव धर्म सबसे बड़ा धर्म है. मैं अपने मिशन में लगा हूँ. हज़ारों बच्चो को पढ़ाने में लगा हूँ. मेरा मिशन अभी अधूरा है ऐसे में मेरा सम्मान क्यों और कैसे हो सकता है. हां अखिलेश यादव युवा मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने अपनी सरकार में विकास के बहुत से काम किये हैं इसलिए मुझे लगता है कि सम्मान मेरा नहीं अखिलेश यादव का होना चाहिए. वह माइक छोड़कर आये और ट्रे में रखी शाल उठाकर अखिलेश यादव के गले में दाल दी और मोमेंटो अखिलेश यादव को सौंप दिया. हतप्रभ से खड़े अखिलेश मौलाना कल्बे सादिक के क़दमों में झुक गए और मौलाना ने उन्हें गले से लगा लिया.
मौलाना कल्बे सादिक के बहुत से किस्से ज़ेहन में हैं. एक बार वह किसी दूसरे शहर में मजलिस पढने गए. उन्हें बताया गया था कि उन्हें दस बजे मजलिस पढ़नी है लेकिन वहां एलान हो रहा था कि मौलाना कल्बे सादिक सुबह आठ बजे से मजलिस को खिताब करेंगे.
मौलाना कल्बे सादिक ने पूछा कि जब मुझे दस बजे का वक्त दिया गया है तो फिर एलान आठ बजे का क्यों हो रहा है. मजलिस के संयोजक ने बताया कि जब आठ बजे का एलान होता है तो लोग दस बजे घर से निकलना शुरू करते हैं.
मौलाना कल्बे सादिक ने कहा कि अब तो मैं सुबह आठ बजे ही मजलिस पढूंगा. एक आदमी सुनने वाला होगा तो उसी से मुखातिब होऊंगा. उन्होंने मजलिस में पूछा कि ट्रेन और जहाज़ पकड़ने के लिए वक्त पर निकला जा सकता है. फिल्म देखने वक्त पर पहुंचा जा सकता है तो फिर यहाँ वक्त की पाबंदी क्यों नहीं, उनका कहना था कि वक्त का पाबन्द हुए बगैर तरक्की के रास्ते पर नहीं पहुंचा जा सकता.
मौलाना डॉ. कल्बे सादिक मेधावी बच्चो को सबसे ज्यादा प्यार करते थे. उन्होंने तौहीदुल मुस्लेमीन ट्रस्ट बनाया. इस ट्रस्ट के ज़रिये उन बच्चो की उच्च शिक्षा का इंतजाम किया जिन्होंने आईआईटी या सीपीएमटी परीक्षा पास कर ली है. पढ़ने वाले का वह धर्म नहीं परसेंटेज पूछते थे. जिन लड़कियों की शादी के लिए माँ-बाप के पास पैसे नहीं होते थे उनकी शादी का पूरा इंतजाम करते थे. बड़ी संख्या में इंजीनियर और डाक्टर उनके पैसों से पढ़कर यहाँ तक पहुंचे हैं.
मौलाना डॉ. कल्बे सादिक कई दशक तक अमेरिका और ब्रिटेन में मजलिसें पढ़ते रहे हैं. सवा दो महीने के मोहर्रम के दौरान वह उन देशों के स्कूल-कालेज और अस्पतालों का दौरा भी करते थे. वहां के एडवांस टेक्नालाजी को हिन्दुस्तान लेकर आते थे. धनवान लोगों को गरीब बच्चो की पढ़ाई में थोड़ा सा खर्च करने के लिए तैयार कर लेते थे.
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आज कोशिशों का सूरज डूब गया है. इल्म का वह चिराग आज कमज़ोर हो गया है जिसमें वह अपनी मेहनत का खून पसीना दाल रहे थे. शिया-सुन्नी इत्तेहाद का पैकर आज खत्म हो गया है. हिन्दू-मुसलमान के बीच का जो पुल था वह अचानक से ढह गया है.
अपने पीछे वह स्कूल छोड़ गए हैं जो जाहिलों में इल्म की रौशनी बिखेरेंगे. वह मेडिकल कालेज छोड़ गए हैं जहाँ बीमारों के होटों पर खुशी लौटेगी. जब तक उनके बनाए स्कूल इल्म की रौशनी बिखेरते रहेंगे तब तक उनका मकसद भी जिंदा रहेगा. शायर ने कहा भी है, होठ थम जाने से पैगाम नहीं थम जाते, जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है.