जुबिली न्यूज डेस्क
नये कृषि बिल के विरोध में संसद से लेकर सड़क तक संग्राम मचा हुआ है। किसानों के साथ राजनीति दलों के आ जाने के बाद से यह मामला और गरम हो गया है। देश भर में किसानों के विरोध को देखते हुए बीजेपी भी बैकफुट पर आ गई है। अब इस विरोध को दबाने के लिए बीजेपी ने कमर कस ली है।
हालांकि भाजपा का यह कदम बिल्कुल वैसा ही है जैसे आग लगने के बाद कुआ खोदा जाता है। अब जब पूरे देश में किसान आंदोलित हो चुका है, तब योजना बनाई जा रही है कि केंद्र के कृषि सुधारों को प्रचारित किया जाए।
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बढ़ता विरोध देखकर केंद्र सरकार के कृषि संबंधी तीन विधेयकों पर विपक्ष के दावे और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MPS) के मुद्दे पर पनपी गलतफहमियां दूर करने के लिए किसानों तक पहुंचने की बड़ी योजना बनाई है।
कृषि बिलों (Farm Bills/Agruculture Bills) पर बढ़ते विरोध को दबाने के लिए बीजेपी की ओर से पार्टी नेताओं को निर्देश दे दिए गए हैं। सोमवार को इस अभियान का आगाज भी कर दिया गया।
इस अभियान के तहत बीजेपी विपक्ष के दावे ‘ये बिल किसान विरोधी हैं’ का जवाब देगी।
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इसी बीच, बीजेपी के संसदीय सचिव ने सांसदों को बिलों से जुड़ी प्रचार सामग्री भी सौंपी। सभी पार्टी नेताओं (मंत्री भी शामिल) को कहा गया है कि वह इन बिल पर जानकारी देने के लिए ट्विटर का इस्तेमाल करें।
सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बीजेपी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) शासित राज्यों के कृषि मंत्रियों के साथ बात की। इस दौरान उन्होंने दो कृषि बिलों के फायदे बताए। साथ ही उन्होंने पंजाब, हरियाणा और आस-पास के सूबों के सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों के साथ कई बैठकें की हैं। सूत्रों की मानें तो तोमर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पदाधिकारियों से भी विधेयकों के संबंध में संपर्क किया है।
तो किसानों की नब्ज नहीं पकड़ पाई बीजेपी
कृषि बिल के विरोध के चलते बैकफुट पर आई बीजेपी बार-बार कह रही है इस बिल से किसानों को बहुत फायदा होगा, बावजूद किसान विश्वास नहीं कर रहे हैं। किसानों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी बात पर विश्वास नहीं। हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद पीएम मोदी को आगे आना पड़ा था। उन्होंने इस बिल के बारे में बताते हुए कहा था कि इससे किसानों की किस्मत बदल जायेगी। कृषि क्षेत्र में सुधार होगा, बावजूद इसके किसान इस बिल के खिलाफ लामबंद हैं।
यदि यह कहें कि बीजेपी किसानों की नब्ज नहीं पकड़ पाई तो गलत नहीं होगा। यह उसकी नाकामी है कि उसने किसानों की नब्ज टटोलने की कोशिश नहीं की। सवाल है कि इन कानूनों पर अमल के बाद के हालात को लेकर किसानों के भीतर जिस तरह की आशंकाएं खड़ी हुई हैं, क्या उसका कोई सपाट जवाब हो सकता है! अगर सरकार को लगता है कि इन कानूनों के सहारे देश के किसानों की स्थिति में सुधार किया जा सकेगा या उनकी मदद हो सकेगी, तो इससे संबंधित अध्यादेश जारी किए जाने के बाद से लेकर अब तक उसकी ओर से इस मसले पर क्या किया गया कि किसानों के बीच इस बात को लेकर आश्वस्ति होती कि सरकार उनके हित में ये कानून ला रही है!
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भाजपा को उम्मीद नहीं थी कि इस बिल का ऐसा विरोध होगा। पंजाब में किसानों के विरोध के चलते भाजपा सकते में है। प्रदेश भाजपा को यही आस है कि अभी 2022 के चुनाव तक किसान को तीन फसलें लेनी हैं। केंद्र के दावों के अनुरूप नई व्यवस्था अगर कारगर साबित होती है, न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलता है तो किसान की धारणा बदल सकती है। लेकिन भाजपा तब भी शायद उसका फायदा न उठा पाए। कारण यह कि पंजाब में भाजपा शहरी इलाकों की पार्टी रही है और इस कानून से प्रभावित होने वाले आढ़ती उसका वोट बैंक माने जाते हैं।