कुमार भवेश चंद्र
भारत ने रविवार को जनता कर्फ्यू का पूरे उत्साह और हिम्मत से पालन कर कोरोना से लड़ाई के प्रति अपना मजबूत इरादा जता दिया है। सोमवार की सुबह अलग थी। देश के कई हिस्सों में लॉकडाऊन की खबरों के बीच शेयर बाजार में भारी गिरावट ने अर्थव्यवस्था को लेकर नई चिंता बढ़ा दी है।
कोरोना के प्रभाव की वजह से जब पूरी दुनिया में मंदी की आहट सुनी जा रही है तो जाहिर है कि भारत भी इसके असर से अछूता नहीं रहने वाला है।
सोमवार को सेंसेक्स 2300 सौ से अधिक अंकों की गिरावट के साथ खुला। निफ्टी में भी उदासी रही और तकरीबन 9 फीसदी की गिरावट देखी गई। शेयर बाजार की अनिश्चितता का आलम ये है कि सोमवार को शुरुआती 15 मिनट निवेशकों के लिए इतने गंभीर रहे कि उन्होंने 8 लाख करोड़ रुपये गंवा दिए। बाजार खुलने के साथ 150 शेयर अपने लोअर सर्किट को छूने लगे।
यानी अपने निचले स्तर पर पहुंच गए। 340 शेयरों की हालत तो ये थी वे 52 हफ्तों के लोअर लेवल पर आ गए। बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स दस फीसदी गिरा तो कारोबार को बंद करने की नौबत आ गई। 45 मिनट कारोबार थमा भी रहा।
भारत ने कोरोना से असली लड़ाई तो अभी शुरू की है। प्रधानमंत्री के आह्वान पर जनता कर्फ्यू का पालन किया है। अभी तो कुछ प्रदेशों और सीमित शहरों में लॉकडाउन शुरू हुआ है। खाने, पीने और स्वास्थ्य से जुड़े जरूरी सामानों के अलावा बाकी सामानों और सेवाओं के कारोबार पर बुरा असर होना स्वाभाविक ही है। ट्रेन, मेट्रो, सरकारी परिवहन सेवाएं ठप हो गई हैं। जाहिर है इससे सरकारी राजस्व का बड़ा नुकसान होने जा रहा है।
भारत ने हवाई सेवाओं को सीमित कर दिया है। केवल घरेलू उड़ानें चल रही हैं। अंतरराष्ट्रीय उड़ानें बंद चल रही हैं। कई देशों ने अंतरराष्ट्रीय उड़ाने रद्द कर दी है। हवाई उड़ानें रद्द होने की वजह से पर्यटन से होने वाली कमाई की संभावनाओं पर सबसे बड़ा प्रश्नचिन्ह हैं।
यूरोपीय यूनियन ने तो एक महीने के लिए बाहर से आने वाले पर्यटकों पर पाबंदी लगा दी है। अमेरिकी प्रशानसन ने भी यूरोपीय देशों से आने वाले विमानों के अपनी जमीन पर उतने से मना कर दया है।
इन प्रतिबंधों का असर दुनिया भर के होटल और रेस्तरां उद्योग पर भी पड़ रह है। भारत के लॉकडाउन वाले शहरों में होटलों-रेस्तरां के साथ ढाबों और फूड स्टॉल पर पाबंदी के असर का आकलन आप आसानी से कर सकते हैं।
घरों में सिमटे लोगों ने जरूरी उपभोक्ता सामान की अधिक खरीददारी कर भले ही थोड़े समय के लिए बाजार में गरमी पैदा कर दी हो पर सीमित उपयोग की वजह से उपभोक्ता सामान बाजार भी ठंडा ही रहने वाला है।
इसी तरह औद्योगिक उत्पादन पर भी बुरा असर दिखेगा। देश भर में कोरोना के खौंफ से सरकारी और निजी संस्थानों में काम बंद हुए हैं। औद्योगिक इकाइयों में काम बंद होने का सीधा असर उनके उत्पाद पर पड़ना तय है। भारत में यह स्थिति कब तक बनी रहेगी इसको लेकर अनिश्चिततता है।
जाहिर है इस बात का आकलन भी नहीं हो सकता है कि इसका कितना असर होने वाला है। चीन जैसे मुल्क में दो महीने में औद्योगिक उत्पादन 13.5 फीसदी घट गया था। पहले से बदहाल भारतीय औद्योगिक उत्पादन कहां पहुंचेगा निर्माण, बिजली और बुनियादी क्षेत्र में पहले से ही गिरावट है। दिसंबर 19 में जो आंकड़े जारी हुए थे वह पिछले साल की तुलना में 0.3 फीसदी की कमी दिखा रहे थे।
पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने के भारतीय सपने को ये कोरोना बड़ा झटका देने जा रहा है। बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने की जो उम्मीद जगाई थी उसके भी नेस्तनाबूद होने में कोई शक नहीं है। जाहिर है इस वैश्विक परिस्थिति में भारत को कोई ऐसा फैसला करना होगा जिससे हमारे देश की माली हालत में थोड़ा सा सुधार आए।
सरकारी कर्मचारियों के लगातार बढ़ते वेतन पर लगाम के अलावा अनावश्यक सरकारी खर्चों में कटौती के बिना ये संभव नहीं। कोरोना के असर से निपटते ही देश को पटरी पर लाने के लिए ठोस आर्थिक उपाय नहीं किए गए तो यह झटका बहुत बड़ा साबित होगा।
लेकिन इससे मिलकर कर सभी भारतीय का दायित्व है कि संकट की इस घड़ी में संयम से काम ले और इस सदी के सबसे बड़े संकट से उबरने के लिए मजबूती के साथ उभरकर सामने आए।