जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. उत्तर प्रदेश के कर्तव्यनिष्ठ पुलिस पुलिसिया कार्रवाई में भेदभाव नहीं करती है. एक बार लिखा-पढ़ी कर देने के बाद उसके लिखे को कोई बदलवा नहीं सकता. उसने अगर तय कर लिया कि मर चुके शख्स को भी अदालत पहुंचा कर मानेगी तो कोई उसे समझा नहीं सकता. उन्नाव पुलिस ने यही किया. मर चुके शख्स के खिलाफ चार्जशीट दायर करने वाला दरोगा कोई नया रंगरूट नहीं बल्कि रिटायरमेंट के दरवाज़े पर खड़ा दरोगा था.
उन्नाव के औरास थाना क्षेत्र में मारपीट का मामला पुलिस के सामने आया था. सार्वजानिक शौचालय और रैन बसेरा निर्माण के दौरान जनवरी 2020 में कुछ लोगों में मारपीट हुई थी. इस मारपीट की पुलिस विवेचना कर रही थी. आरोप है कि विवेचक सुरेश चन्द्र को हेमनाथ नाम के व्यक्ति ने घूस देकर अनवर और उसके बेटों वसीम, मंजीत और साजिद के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस जब पूछताछ के लिए अनवर के घर पहुँची तो उसने पुलिस को बताया कि यह फर्जी मुकदमा लिखवाकर उसे फंसाया जा रहा है. उसने पुलिस से कहा कि वसीम की पांच मई 2018 को सड़क हादसे में मौत हो चुकी है. पुलिस ने ही उसका पोस्टमार्टम करवाया था.
पुलिस ने वसीम की मौत की सूचना को दरकिनार कर दिया. दरोगा सुरेश चन्द्र ने चारों के आधार कार्ड मांगे. अनवर ने आधार कार्ड तो दे दिया लेकिन वसीम की मौत की बात फिर दोहराई. दरोगा ने मंजीत से वसीम के नाम के आगे अंगूठा लगवा लिया और 16 अप्रैल 2020 को चार्जशीट कोर्ट में फ़ाइल कर दी.
फर्जी मुकदमा दायर करने वाला दरोगा सुरेश चन्द्र 30 जुलाई 2020 को रिटायर भी हो गया. अनवर ने इस बात की शिकायत एसपी तक से की लेकिन किसी ने भी कोई सुनवाई नहीं की. मामला कोर्ट में था ही. जब अदालत को सच्चाई पता चली तो दरोगा सुरेश चन्द्र और मुकदमा दर्ज करवाने वाले हेमनाथ, नौशाद और ऊदन के खिलाफ धारा 419 व 420 में मुकदमा दर्ज किया गया. रिटायर्ड दरोगा अब खुद उस मारपीट के मामले में मामले में अभियुक्त बन गया है.
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