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कोरोना काल : मजदूरों की कमी से बढ़ने लगी मंहगाई

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क

कोरोना संक्रमण के कारण लॉकडाउन और अनलॉक की स्थिति के बीच अब महंगाई का नया लॉकडाउन सामने है। घर से लेकर बाहर तक आपकी जेब पर महंगाई की नजर आ चुकी है। दो महीन से ज्यादा समय तक बाजार-कारोबार पर ब्रेक लगने के बाद अब अनलॉक-1 किया गया है।

कारोबार-उद्योगों में काम करने वाले लोगे और मजदूरों के पलायन के बाद अब पहले जैसी रफ्तार बिल्कुल नहीं है और यही कारण है कि अनलॉक-1 मोड की शुरूआत में महंगाई से सामना करना होगा। कोरोना संक्रमण के मापदंडों के कारण लोकल ट्रांसपोर्ट में किराया बढ़ाने की मांग उठने लगी है,पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ा दिए गए हैं।

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व्यवसायिक परिवहन का कारोबार 25 फीसदी रह गया है तो इसी कारण माल ढ़ुलाई भी महंगी है जिससे किराना से लेकर हर जरूरत के सामान पर असर पड़ेगा। दैनिक जरूरत की चीजों पर भी कीमतों में बढ़ोत्तरी हो गई है। कोरोना संक्रमण के बीच अब हर वर्ग के लोगों के सामने यह महंगाई भी संक्रमण जैसी ही है, जो इतनी जल्द खत्म नहीं होना है।

मजदूरों की कमी के कारण कंपनियों के लिए अब काम करना मुश्किल हो रहा है। कई कंपनियां 40-60 फीसदी लेबर फोर्स के साथ काम करने पर मजबूर हैं। लेबर फोर्स की डिमांड बढऩे से मजदूरी भी बढ़ी है। साथ ही सप्लाई भी महंगी हो रही है। ऐसे में कंपनियों का लागत खर्च बढ़ रहा है।

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इससे कंपनियों को अपने उत्पादों के दाम बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ सकता है, जिससे महंगाई बढ़ सकती है। एसोचैम की सर्वे के अनुसार लेबर फोर्स की कमी का सबसे अधिक असर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर पड़ रहा है। इसके अलावा लेबर की कमी से टेक्सटाइल, लेदर, वूड एंड प्रॉडक्ट्स, पेपर प्रॉडक्ट्स, केमिकल्स, रबर और बेसिक मेटल सेक्टर में उत्पादन का काम बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।

सर्वे रिपोर्ट का कहना है कि कोविड संकट के कारण करोड़ों मजदूर अपने गांव चले गए हैं। इन मजदूरों को कार्यस्थलों में लौटने में देरी होगी। ऐसे में लेबर फोर्स का मिलना एक तो मुश्किल है, दूसरे डिमांड ज्यादा होने के कारण लेबर को ज्यादा वेतन देना पड़ रहा है।

लेबर फोर्स की कमी का सिलसिला आगे कई महीनों तक जारी रह सकता है। इससे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में काम करने वाली कंपनियों की लागत मूल्य में बढ़ोत्तरी तय हैं। ऐसे में वह इसका भार ग्राहकों पर डाल सकती है, जिससे महंगाई बढ़ेगी।

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एसोचैम के सेक्रेटरी जनरल दीपक सूद का कहना है कि मई में थोक महंगाई दर नेगेटिव जोन में रही। थोक महंगाई दर में 3.21 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। मगर महंगाई दर जल्द ही नेगेटिव जोन से बाहर आएगी। क्योंकि छोटी व मंझोली कंपनियों के लिए ज्यादा पैसे देकर लेबर फोर्स को लेने में खासी दिक्कतें आ रही हैं। इन कंपनियों की मैन्युफैक्चरिंग कास्ट बढ़ेगी तो वस्तुओं का महंगा होना तय है।

फेडरेशन ऑफ इंडियन माइक्रो एंड स्माल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज का कहना है कि वर्कफोर्स की कमी के चलते मात्र 30 से 40 फीसदी छोटी और मंझोली कंपनियां काम शुरु कर पाई है। कंपनियों के पास कैश के अलावा लेबर फोर्स की भी कमी हैं।

वक्त की जरूरत है कि जो प्रवासी मजदूर अपने कार्यस्थल पर आने चाहते हैं, उनको आने की सुविधा दी जाए। इन पहलुओं पर फोकस करने के बाद ही उत्पादन सही तरीके से बढ़ाया जा सकता है और सप्लाई की स्थिति बेहतर की जा सकती है।

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