रवि प्रकाश
आदिम आखेट युग के आगे बढ़ते हुए मानव प्रजाति ने अपने विकास क्रम में कुछ ऐसे युगांतरकारी पडावों को पार किया, जिनमें से हर एक पड़ाव के बाद एक नए युग का सूत्रपात होता गया और यह नर नया युग मानव समाज के जीवन का स्वरुप भी बदलता गया।
जैसे कि आग पैदा करना और उसका प्रयोग करना, लोहे की खोज, पहिये का निर्माण, खेती और अनाज पैदा करना, समुद्री मार्गों की खोज, मशीनों और कारखानों का निर्माण, चिकित्सा एवं औषधि के क्षेत्र में नए-नए आविष्कार, आदि। । आदि। इन सभी पडावों ने मानव समाज में व्यापक परिवर्तन किये।
ये परिवर्तन मानव-निर्मित थे, लेकिन इसी बीच प्रकृति द्वारा भेजी गयी विभिन्न आपदाओं की भी मानव सभ्यता का स्वरुप बदलने में गंभीर भूमिका रही है।
विश्वव्यापी महामारी के रूप में फैलने वाली बीमारियाँ भी ऐसी ही आपदाओं में से एक हैं। इन आपदाओं के अनेकानेक नकारात्मक प्रभाव होते हैं, किन्तु ये आने वाले समय के लिए मानव समाज के समक्ष अनेकानेक सकारात्मक सबक और समझ भी छोड़ जातीं है।
यह मानव समाज पर निर्भर है कि वह इन सकारात्मक सबक और समझ को अपने भविष्य की सुरक्षा के लिए संजो कर रखता है या फिर अपने उसी पुराने ढर्रे पर बढ़ता रहता है।
विश्वव्यापी महामारियों के इतिहास पर दृष्टिपात करने से पता चलता है कि इतिहास में अभिलिखित विवरणों के अनुसार ईसा पूर्व 430 से लेकर सद्यःव्याप्त कोविड-19 तक के लगभग 2500 वर्षों में मानव सभ्यता पर भारी प्रभाव डालने वाले कुल 17 विश्वव्यापी महामारियों में से 10 पिछले 400 वर्षों में आयी हैं।
इनकी प्रवृत्ति से पता चलता है कि जैसे-जैसे सभ्यता का आधुनिकीकरण तेज होता गया है, महामारियों का आवर्तन बढ़ता गया है और पिछले लगभग 100 वर्षों ही में हमें 5 महामारियों का प्रकोप झेलना पड़ा है। दुर्भाग्य से इन पाँचों घटनाओं ने व्यापक रूप से मानव जीवन का विनाश किया है।
सो, महामारी या विश्वव्यापी महामारी का प्रथम और सर्वाधिक गंभीर पहलू मानव जीवन की पीड़ा और मृत्यु का तांडव है और यह पहलू हमेशा रागेगा। फिर भी किसी वायरस के प्रसार के बड़े आर्थिक निहितार्थ होते हैं। अनेक अध्ययन और शोध बताते हैं की ऐसी महामारियों के भारी आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं।
इस तरह हर विनाश-लीला के बाद एक नए तरह का आर्थिक संकट के विरुद्ध मानव समाज को संघर्ष में उतरना पडा है। इस प्रकार सरसरी तौर पर ये जो विश्वव्यापी महामारी हैं, वह किसी वेगवान तूफ़ान की तरह अपने पीछे मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आर्थिक विपत्ति के पदचिन्ह छोड़ जाते हैं।
ऐसे में जब चिकित्सा विज्ञान से जुड़े लोग वर्तमान संकट से निकलने का मार्ग खोज रहे हैं, इस तूफ़ान के टलने के बाद वृहत् स्तर पर आर्थिक पुनर्निर्माण की आवश्यकता होगी, जिस पर अभी से चिंतन करना आवश्यक है।
ऐसी परिस्थिति में श्रम बल का आकार छोटा हो जाता है, उत्पादकता घट जाती है, कार्यस्थल में अनुपस्थिति बढ़ जाती है। कुल मिलाकर आर्थिक गतिविधि पर प्राणान्तक प्रहार होता है। इस सब के कारण लोगों की व्यक्तिगत और समाज की सामूहिक आमदनी में जो क्षति होती है उसे सम्मिलित करते हुए विशेषज्ञों के हाल के अनुमानों के अनुसार गंभीर विश्वव्यापी इन्फ़्लुएन्ज़ा महामारी (1918 का उदाहरण ले सकते हैं) से उत्पन्न क्षति का कुल मूल्य प्रति वर्ष लगभग 500 बिलियन यूएस डॉलर के बराबर जा सकती है, जो वैश्विक आमदनी का लगभग 0। 6% आती है।
विशेषज्ञों के विश्लेषण यह भी बताते हैं कि इन क्षति में वार्षिक राष्ट्रीय आय पर अलग-अलग आनुपातिक असर होता है – न्यून मध्यम आय वाले देशों पर क्षति का ज्यादा गंभीर प्रभाव (1। 6%) और उच्च आय वाले देशों पर अपेक्षाकृत काफी कम (0। 3%) प्रभाव पड़ता है।
एक विकासशील देश होने के नाते और विकसित देशों की तुलना में हमारे देश की न्यून प्रति व्यक्ति आय को देखते हुए हमारे लिए इस आर्थिक क्षति और आर्थिक पुनर्निर्माण पर गंभीरता से सोचना और भी ज़रूरी हो जाता है।
इस सन्दर्भ में सबसे पहले यह विचारणीय है कि अर्थव्यवस्था के किन क्षेत्रों को यह महामारी अपनी चपेट में ले सकती है। सबसे पहले तो इसका असर स्वास्थ्यसेवा के क्षेत्र पर होगा। इसके बाद मुख्य रूप से कृषि और कृषि व्यापार, पर्यटन, और शेयर बाज़ार इसके प्रभाव-क्षेत्र में आ सकते हैं। हमें एक-एक करके इन बिन्दुओं को समझना और समाधान के उपाय निकालना होगा।
स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में सरकारी और निजी स्वास्थ्य सेवा तंत्र पर इसका प्रभाव पडेगा। महामारी की अवस्था में सामान्य परिस्थिति में अस्पतालों में जो औसत भर्ती होती है, उसमें अचानक बेतहाशा वृद्धि हो जाती है और इसके प्रशासनिक और परिचालनगत खर्चे ऊंचाई छूने लगते हैं, जैसा कि अभी हम देख रहे हैं।
भारत इस मामले में भाग्यशाली रहा है कि बीसवीं के उत्तरार्ध में फैली एचआईवी-एड्स सार्स, मर्स या हाल के वर्षों के ज़ीका, इबोला,या विविध बर्ड फ़्लू आदि का बहुत गंभीर प्रहार नहीं झेलना पडा।
इनमें सार्स और मर्स तो कोरोना वायरस से ही होने वाले रोग हैं। किन्तु इंग्लैंड जैसे ज्यादा प्रभाव वाले देशों में इन रोगों के कारण भारी आर्थिक बोझ वहां करना पडा।
स्वास्थ्य सेवा में इस प्रकोप के कारण चिकित्सीय उपकरण, विशेषकर जांच सामग्रियों और श्वसन यंत्रों की भारी ज़रुरत होगी। भारत के प्रधानमन्त्री ने अच्छी पहल करते हुए इस दिशा में परस्पर सहयोग के लिए अपने पड़ोसी देशों और विश्व समुदाय को सक्रिय किया है।
कृषि और कृषि व्यापार से जुड़े लोगों के सामाजिक अलगाव के कारण खेतों में काम संभव नहीं हो पायेगा। अभी रबी की कटाई का मौसम सामने है। अनाज के दाने लगे पौधे समय पर खेतों से निकल कर खलिहान तक नहीं पहुँच पाए तो कृषि पैदावार पर भारी प्रतिकूल प्रभाव होने का खतरा है।
पूर्णतः कृषि पर आश्रित मध्यम, लघु और सीमान्त किसानों की अवस्था दयनीय हो सकती है। देश में अनाज का पर्याप्त भण्डार होने के बावजूद, इस कटाई में क्षति होने के कारण जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाले गलत हरकतों से बाज नहीं आयेंगे।
पर्यटन का दायरा बड़ा व्यापक है और आज कोविड-19 के प्रकोप के आलोक में इसकी सम्पूर्ण व्यापकता ठप पड़ गयी है। सड़क, रेल और वायु, तीनों मार्ग पर परिवहन बंद है।
पहले से घाटे में चल रहे विमानन उद्योग की हालत खराब हो सकती है। आशंका है कि अनेक विमानन कंपनियाँ इस संकट के गुजर जाने के बाद उड़ान भर सकेंगी या नहीं, निश्चित नहीं कहा जा सकता।
इस उद्योग से जुड़े लोगों को सम्मिलित किया जाए तो इसके सामाजिक-आर्थिक प्रतिफल की कल्पना भी डरावनी लगती है। रेल का घाटा पाटने में काफी लंबा समय लगेगा।
ये अर्थव्यवस्था के कुछ प्रमुख बिंदु हैं। इनके अलावा सड़क के किनारे सब्जी बेचने वाले, खोमचा लगाने वाले, शाम के वक्त ठेला लगाने वाले, फेरीवाले, दुकानदार आदि की आमदनी बिलकुल बंद होने से जो बूँद-बूँद असर देश के समग्र अर्थतंत्र में होगा वह कोई मामूली असर नहीं होगा। ऐसे में स्वाभाविक प्रश्न उठ सकता है कि क्या किया जाए ? संभावित उपाय
इस महामारी ने हमें अपनी स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता और आकस्मिक परिस्थितियों में इसकी क्षमता का अनुभव कराया है। यह अनुभव इस क्षेत्र में हमारी बड़ी शक्ति सिद्ध हो सकती है।
यह महामारी किसी जैविक युद्ध का हिस्सा है या शुद्ध रूप से प्राकृतिक आपदा, इसे स्थापित करने में अभी कुछ समय लगेगा। किन्तु जिन-जिन देशों में यह प्रकोप फैला हैं उनमें चीन एकमात्र ऐसा देश है जहां चिकित्सा व्यवस्था का विशाल हिस्सा सरकारी नियंत्रण में है।
यह एक कारण हो सकता है कि चीन इस प्रकोप को अपने एक शहर तक सीमित रखने और तत्काल आकस्मिक चिकित्सीय ज़रूरतों को पूरा करने में सफल हुआ।
हमारे देश में जनसंख्या-चिकित्सक अनुपात अभी भी संतोषजनक नहीं है। संविधान प्रत्येक नागरिक के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी करता है। बीमारी का आक्रमण भी जीवन पर ही होता है। ऐसे में मुझे प्रतीत होता है कि चिकित्सा एक ऐसा क्षेत्र है जो सरकारी नियंत्रण में ही रहना चाहिए, ताकि यह सर्वसुलभ हो सके।
इसलिए मेरा सुझाव है कि स्वास्थ्य सेवा का राष्ट्रीयकरण करके सभी अस्पतालों को सरकारी नियंत्रण में लाना चाहिए।
अभी यह तत्काल संभव नहीं हो तो वर्तमान आपातस्थिति में सभी निजी अस्पतालों को कुछ महीनों के लिए सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन रखना चाहिए।
संगठित क्षेत्र में सभी सरकारी और निजी संस्थानों, प्रतिष्ठानों, विभागों आदि के कर्मचारियों तथा जीएसटी के दायरे में आने वाले सभी व्यापारियों-दुकानदारों पर उनकी मासिक आय का 1% चिकित्सा अधिभार लगाया जाए। इससे प्राप्त राशि का उपयोग हर प्रखंड और जिला मुख्यालय में अपेक्षित संख्या में बेड के साथ उन्नत अस्पताल स्थापित किये जाएँ।
कृषि क्षेत्र में समुचित रोजगार के दृष्टिकोण से सहकारी खेती को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए और प्रत्येक पंचायत के अधीन कृषक समिति का गठन हो, जो पंचायत के माध्यम से सीधे केन्द्रीय कृषि मंत्रालय से सम्बद्ध रहे।
इस समिति के अनुभव और सुझाव का अध्ययन करके केंद्र द्वारा राज्यों को कृषि उन्नयन हेतु कार्यक्रम भेजे जाएँ, ताकि गाँवों से पलायन रुके। सामुदायिक खेती को बढ़ावा देने पर विचार किया जाए।
परिवहन और पर्यटन के क्षेत्र में आसन्न मंदी के परिप्रेक्ष्य में तत्काल कुछ महीनों के लिए एयरलाइन कंपनियों को राहत पैकेज प्रदान की जाए।
डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)