Sunday - 27 October 2024 - 7:32 PM

‘COLD-PLAY’  के बाद ‘मैक्स अमीनी’ : सोशल मीडिया के बाजार में इनसाइडर ट्रेडिंग !

राजशेखर त्रिपाठी 

सोशल मीडिया  पर ‘कोल्ड प्ले’ के ‘सोल्ड-प्ले’ की सनसनी थमी नहीं, कि मैक्स अमीनी नयी सरसराहट के तौर पर सामने आ गए। ठेठ हिन्दी के मनोरंजन बाज़ार में  अगर ‘कोल्ड प्ले’ अंग्रेज़ी का एक अप-मार्केट आर्केस्ट्रा है जिसे ‘एस्पिरेशनल इंडियन’ रॉक बैंड कहता है, तो मैक्स अमीनी अंग्रेज़ी के कुनाल कामरा, मुनव्वर फ़ारुक़ी और समय रैना, जिन्हें स्टैंड अप कॉमेडियन कहा जाता है। मैक्स अमीनी नवंबर में भारत आ रहे हैं लेकिन डिज़िटल टिकिट विंडो पर इनके भी शो हाउस फुल बताए जा रहे हैं। ‘कोल्ड-प्ले’ वाले तो जनवरी में मुंबई आ रहे हैं मगर उनका शो अनाउंस होते-होते ‘सोल्ड-आउट’ हो गया। ‘बुक मायशो’ ने तो उन्हें अपनी साइट पर ‘सोल्ड-आउट’ बता दिया, लेकिन ‘री-सेल साइट्स’ पर उनके टिकट लाखों में बिके हैं।

यहां ‘कोल्ड-प्ले’ के बारे में थोड़ा और जान लीजिए कि इनकी लीगेसी न ‘बीटल्स’ जैसी है न इनका हिस्टीरिया माइकल जैक्सन की ‘हिस्ट्री’ जैसा है। ‘97 में ये बैंड मिलेनियल्स की जेनरेशन के साथ पैदा हुआ और फ़िलहाल उन्हीं के सेंटीमेंट और एक्साइटमेंट पर प्ले कर रहा है। अंग्रेज़ी के बाज़ार में अब ये अपनी चमक खो चुका है। बैंड के लीड सिंगर क्रिस मार्टिन ने तो इस वर्ल्ड टुअर के साथ ही रिटायर मेंट का ऐलान भी कर दिया है। मगर इस ऐलान ने न सिर्फ टिकटों की शॉर्टिज और बढ़ा दी, बल्कि कई गुना महंगे दामों पर खुल्ली बिक्री भी।

मज़े की बात ये है कि ‘कोल्ड-प्ले’ का प्रचार मेन-स्ट्रीम मीडिया में नहीं दिख रहा। मगर मिडिल क्लास ड्राइंग रूम में हो रही चर्चा ने इसे स्टेटस सिंबल बना दिया है। ‘कोल्ड-प्ले’ का शोर गली-मोहल्ले, चौक-चौराहे और पापा जी के पार्क में बिलकुल नहीं है। ये तो सोशल मीडिया ने बताया कि कोल्ड प्ले भी कोई बला है जिसके टिकटों की सर्ज प्राइसिंग लाखों में पहुंच गयी है। बहरहाल दिल्ली-मुंबई के बाद इसकी सबसे अधिक डिमांड बेंगलुरू, पुणे, हैदराबाद, गुड़गांव और नोएडा में है, क्योंकि आईटी इंडस्ट्री के ‘यूनिकॉर्न’ प्रोफेशनल्स सबसे अधिक यहीं हैं। इन बेचारों का वजूद इंडिया में है और आत्मा अमेरिका में। यूएसए के ग्रीन कार्ड का सपना सबको आता है। फ़िलहाल जिन्हें टिकट मिल चुका वो फ़्लॉन्ट कर रहे हैं, जिन्हें नहीं मिला वो हताश हैं। अनंत अंबानी की शादी के बाद ये सोशल मीडिया का ताज़ा सीज़नल फ़ेनोमेना है।

सोशल मीडिया पर ‘कोल्ड-प्ले’ की सरसराहट कैसे बढ़ी इसे समझाने के लिए मैं एक किस्सा सुनाता हूं। मेरी एक बेहद ख़ूबसूरत सेलिब्रिटी दोस्त हैं ऋचा अनिरूद्ध। जिन लोगों ने टीवी पर ‘ज़िंदगी लाइव’ और यू-ट्यूब पर ‘ज़िंदगी विद ऋचा’ देखा है वो उनके जेहनी तवाज़ुन से अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं। ऋचा का पूरा प्रोफ़ाइल सोशल कॉज को समर्पित है – ग़रीब बच्चों की बेसिक शिक्षा पर भी वो काम करती हैं। अब किस्सा ये है कि चंद रोज़ पहले उन्होने उकता कर एक निजी पोस्ट की जिसका लब्बो-लुआब ये था कि;

ऋचा अनिरुद्ध

“रॉक बैंड कोल्ड प्ले के बारे में न जानने वाले भी सामान्य लोग ही हैं। मेरे इर्द गिर्द हर आदमी टिकट को लेकर इतना एक्साइटेड है कि मैं खुद को डायनासोर जैसा महसूस कर रही हूं- विलुप्त और आउटडेटेड”

ज़ाहिर है ये ऋचा का तंज़ था। मगर असर हुआ उल्टा, कम से कम मेरे ही जानने वाले आधा दर्जन से ज़्यादा लोगों ने ऋचा के ‘कोल्ड प्ले’ कमेंट पर पूछा – ये क्या है भाई ? अब आप उन तमाम की तो पूछिए मत जो ऋचा को हर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर फ़ॉलो करते हैं। बेचारी ऋचा को पता ही नहीं कि वो कहां इस्तेमाल हो गयीं। अपनी मासूमियत की शिकार ऋचा अकेली नहीं हैं। सोशल मीडिया पर और भी हैं सुखनवर बड़े-बड़े।

मैंने यहां हिंदी के उन रोंदू डिजिटल क्रूसेडर्स का ज़िक्र जानबूझ कर नहीं किया जो एक बंधे-बंधाए खांचे में सांस लेते हैं। ‘कोल्ड प्ले’ हो या ‘मैक्स अमीनी’ उनके प्रमोटर्स तो चाहते ही हैं कि इसकी आलोचना हो। फंडा ये कि, बदनाम जो होंगे तो क्या नाम न होगा। हिंदी के बाज़ार में होने वाली फ़जीहत भी अंग्रेज़ी के पॉप मार्केट में ईंधन का काम करती है।

और तो और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव- जिनका कैचमेंट एरिया ही आल्हा और बिरहा सुनने वाली देसी जमात है। कोल्ड प्ले के महंगे टिकटों और काला बाज़ारी पर नाराज़गी जाहिर कर चुके हैं। कांग्रेस मुंबई में अलग विधानसभा चुनाव से पहले इसे सियासी फायदे की साजिश बता चुकी है। इस रौशनी में जरा मैक्स अमीनी की पर्सनल प्रोफाइल भी चेक कर लीजिए। अमीनी पर्शियन अमेरिकन हैं – यानि अमेरिका में जन्मे ईरानी। उनका परिवार ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद अमेरिका पलायन कर गया। अमीनी वहीं पैदा हुए। हालांकि अमीनी का कंटेंट कांटिनेंटल है और जानकारी व्यापक। लेकिन मजहब से मुसलमान होते हुए भी वो अपने मजाहिया अंदाज में इस्लामो-फोबिया परोसते हैं। ये वो सॉफ्ट ‘जियो-पॉलिटीक’  है जिस पर एंटी मुस्लिम वर्ल्ड ठहाके लगाता है।

मैक्स एमिनी के प्रचार के लिए उनकी पीआर टीम ने सोशल मीडिया के दूसरे टूल ‘रील्स’ का सहारा लिया। एंटरटेनमेंट का ग्लोबल मार्केट जानता है कि भारत अब रीलों का देश है। देखने वाले भी लातादाद और बनाने वाले भी। लिहाज़ा मैक्स अमीनी के रील्स मोबाइल पर जम कर फेंके जा रहे हैं। ख़ास तौर पर ऐसी क्लिप्स जिनमें अमीनी अप्रवासी भारतीयों को माय इंडियन फ्रैंड्स कह कर संबोधित करते हैं, लव इंडिया, इंडियन कल्चर और कामसूत्र की बातें करते हैं। इस तरह उन्हें जो नहीं भी जानते उनके दिमाग़ में अमीनी ठूंसे जा रहे हैं।

बहरहाल री-सेल साइट्स तो ख़ुद को लीगल बता कर टिकट ब्लैक कर रही हैं, मगर कई क्रेडिट कार्ड कंपनियों को भी महंगे टिकट ऑफर करता पाया गया। महंगा है तो क्या हुआ क्रेडिट कार्ड से ख़रीदिए। ज़ाहिर है टिकटों की ये क्राइसिस ‘मैन्यूफैक्चर्ड’ है और मामला कुछ हद तक ‘इनसाइडर ट्रेडिंग’ जैसा है। पहले अंदर ही अंदर टिकट ख़रीद लो, फिर सोशल मीडिया पर मार्केट चढने का इंतज़ार करो। इनसाइडर ट्रेडिंग के साथ-साथ ये ‘सरोगेट सेलिंग’ भी है। अपने विंडो की बजाए उधार की विंडो पर टिकट बेचो। ये धांधली सब देख-समझ रहे हैं। ‘बुक मायशो’ के सीईओ को पुलिस कई बार तलब कर चुकी, मगर उसे ख़ुद समझ नहीं आ रहा कि इस पर भारतीय न्याय संहिता की कौन सी धारा लगाए।

इस पर तुर्रा ये कि यह समझाने वाली मशीनरी भी सोशल मीडिया पर ही सक्रिय है कि, भारत अब कोई मामूली बाज़ार नहीं रहा। इंडियन कंज्यूमर अब योरप और अमेरिका के बाजार को सीधी टक्कर दे रहा है जनाब ! ज़ाहिर है इसमें एक प्राइड फ़ीलिंग भी है – भले ही झाड़ पर चढ़ा कर पॉकेट मार लो। अब पॉकेट की जगह आप क्या पढ़ते हैं, ये आपके मन की बात है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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