न्यूज डेस्क
अधिकांश लोगों के जेहन में इस समय सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा हैं। लोग उनके बारे में जानना चाह रहे हैं कि उन्होंने ऐसा क्या किया है कि जज उनके मामले की सुनवाई करने को तैयार नहीं है।
बीते चार दिन में उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीश सामाजिक कार्यकर्ता गौतल नवलखा की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर चुके हैं।
दरअसल गौतम नवलखा पर भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले के सिलसिले में एफआईआर हुई है।
जस्टिस रवींद्र भट्ट भीमा-कोरेगांव हिंसा के आरोपी नवलखा की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग करने वाले सुप्रीम कोर्ट के पांचवें जज बन गए। गुरुवार को नवलखा की याचिका पर सुनवाई होनी थी।
जस्टिस भट्ट तीन जजों की बेंच के सदस्य थे जिसे याचिका पर सुनवाई करनी थी, लेकिन जैसे ही बेंच के सामने यह मामला आया, जस्टिस रवींद्र भट्ट ने खुद को अलग करने का ऐलान कर दिया।
गौतम ने शीर्ष कोर्ट में याचिका दाखिल कर बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करने की मांग की है।
पिछले साल पुणे पुलिस ने नक्सलियों से संपर्क और भीमा-कोरेगांव और एल्गार परिषद के मामलों में नवलखा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी, जिसे गौतम ने हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए रद्द करने की मांग की थी।
13 सितंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने नवलखा की याचिका खारिज कर दी थी जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। चूंकि नवलखा की गिरफ्तारी पर अदालत की तरफ से लगी रोक की मियाद आज खत्म हो रही है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट उनके वकील अभिषेक मनु सिंघवी का आग्रह मानते हुए आज याचिका पर सुनवाई को तैयार हो गया।
13 सितंबर को हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद नवलखा ने 30 सितंबर को शीर्ष कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
गौतम की याचिका को पहली बार चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच में लिस्ट किया गया, लेकिन मुख्य न्यायाधीश इसकी सुनवाई से अलग हो गए।
उसके बाद गौतम की याचिका तीन जजों जस्टिस एन. वी. रमना, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस बी. आर. गवई की बेंच के सामने लाया गया लेकिन बेंच के तीनों जज इस याचिका की सुनवाई से अलग हो गए।
तीसरी बार फिर नवलखा की याचिका को जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत सरण और जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट की बेंच के सामने पेश किया गया। 3 अक्टूबर को याचिका पर सुनवाई होनी थी, लेकिन ऐन मौके पर जस्टिस रवींद्र भट्ट ने सुनवाई से खुद को अलग करते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई से याचिका को अन्य बेंच को सौंपने का आग्रह किया।
गौतम नवलखा की याचिका पर जजों द्वारा खुद को लगातार अलग करते जाना और एक बार तो पूरी बेंच का अलग होना अपने आप में अनोखा है। सबसे बड़ी हैरत की बात यह है कि किसी भी जज ने नवलखा की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग करने का कोई कारण नहीं बताया।
हालांकि, इस मामले में नवलखा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जस्टिस भट्ट कभी बतौर वकील ‘पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स’ की तरफ से पेश हुए थे जिससे नवलखा जुड़े हुए हैं। सिंघवी के मुताबिक, संभव है कि इसी कारण जस्टिस भट्ट ने याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।
कब अलग होते हैं जज
जज किसी मामले की सुनवाई से तब अलग होते हैं जब हितों के टकराव की स्थिति में या फिर वैसे मामले में जब जज बतौर वकील उस पार्टी की तरफ से कोर्ट में पेश हुए हों और बाद में जज बन गए हों, तभी वो ऐसा करते हैं। इसके कई उदाहरण देखने को मिल चुके हैं।
जस्टिस यू यू ललित ने हाल ही में खुद को अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था, क्योंकि वह बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराने के आरोपी की तरफ से बतौर वकील कोर्ट में पेश हुए थे।
इससे पहले जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने नोवार्टिस केस से खुद को अलग कर लिया था क्योंकि उन्होंने फार्मा पेटेंट्स के ग्रांट पर एक आर्टिकल लिखा था।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एस एच कपाडिय़ा ने माइनिंग कंपनी वेदांता से जुड़े एक केस की सुनवाई से अनिच्छा प्रकट की थी क्योंकि उनके पास कंपनी के कुछ शेयर थे। हालांकि वकीलों ने कहा कि उन्हें सीजेआई वाली बेंच में सुनवाई पर कोई आपत्ति नहीं है।
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