- कांशीराम के बहाने चौटाला ने मायावती पर साधा निशाना
- हरियाणा के पूर्व सीएम ने कहा-मायावती नहीं चाहती थीं कांशीराम पीएम बनें
- पूर्व सीएम चौटाला ने की जाट-दलित गठजोड़ का राजनीतिक संदेश देने की है कोशिश
जुबिली न्यूज डेस्क
हरियाणा में हाल-फिलहाल या आने वाले चार सालों में अभी कोई चुनाव नहीं है लेकिन सियासी माहौल गर्म है। कोरोना महामारी के बीच राजनीतिक सरगर्मी बढ़ने से कई लोगों के पसीने छूट रहे हैं। तालाबंदी में जिस तरह से हरियाणा के पांच बार मुख्यमंत्री रहे ओम प्रकाश चौटाला ने राजनीति का तानाबाना बुना है उससे विरोधियों के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो गई। सबसे बड़ी चुनौती उन्होंने बसपा सुप्रीमो मायावती को दी है।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री 85 वर्षीय ओम प्रकाश चौटाला ने बसपा सुप्रीमो मायावती की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सोमवार को चौटाला ने बहुजन समाज पार्टी को तगडा झटका दिया। उन्होंने बहुजन समाज पार्टी की प्रदेश यूनिट की पूरी ताकत को अपनी पार्टी में खींचकर जाट-दलित गठजोड़ का राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की, तो साथ ही सोनीपत जिले की बरौदा विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को पूरी संजीदगी के साथ लड़ने के संकेत भी दे दिए हैं।
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पूर्व मुख्यमंत्री चौटाला ने इस मौके पर कांशीराम को याद किया। कांशीराम के बहाने से उन्होंने बसपा सुप्रीमो मायावती पर निशाना साधा। दलितों के रहनुमा कांशीराम देश के प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन सके, इस रहस्य से भी उन्होंने पर्दा उठाया। इसके लिए उन्होंने मायावती को जिम्मेदार ठहराया।
चौटाला ने कहा कि मायावती नहीं चाहती थीं कि बसपा संस्थापक कांशीराम देश के प्रधानमंत्री बनें। इसी कारण कांशीराम देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सके। उन्होंने कहा कि तमाम राष्ट्रीय नेता चाहते थे कि कांशीराम देश के प्रधानमंत्री बनें, लेकिन मायावती अड़ गईं। वह बिल्कुल नहीं चाहती थीं कि कांशीराम देश के प्रधानमंत्री बनें।
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इस मौके पर एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उनके पिता देवीलाल और बसपा के संस्थापक कांशीराम की आपस में अच्छी मित्रता थी। बाद में उनकी भी कांशीराम के साथ बढिय़ा अंडरस्टैंडिंग बन गई। दिल्ली में जब उनकी मीटिंग हुई तो हमने मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की बात की। साथ ही कांशीराम से अनुरोध किया कि वह देश के प्रधानमंत्री बनें।
चौटाला ने उजागर किया कि कांशीराम इस पर राजी हो गए थे। मिलकर चुनाव लड़ने पर सहमति भी बन गई। मुलायम सिंह यादव भी तैयार थे, लेकिन मायावती अड़ गईं। उनकी जिद के चलते कांशीराम देश के प्रधानमंत्री नहीं बन पाए।
इन दिनों इनेलो सुप्रीम ओमप्रकाश चौटाला कोरोना संक्रमण की वजह से जेल से बाहर आए हुए हैं। उनका अधिकतर समय सिरसा और तेजाखेड़ा फार्म हाउस पर बीत रहा है। अपने छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला को राजनीतिक विरासत सौंप चुके ओमप्रकाश चौटाला ने बसपाइयों को इनेलो में शामिल कराने के बाद ऐसा दांव चला, जिसकी काट किसी के पास नहीं है। उनके इस चाल से जहां इनेलो मजबूत हुई है तो वहीं बसपा कमजोर हुई हैं।
कार्यकर्ताओं के साथ वह निरंतर संवाद बनाने में माहिर चौटाला ने कहा कि हर व्यक्ति मौजूदा सरकार से परेशान है। इन परेशान लोगों को केवल एक ही उम्मीद इनेलो के रूप में दिखाई देती है। हम आम लोगों के सहयोग से दोबारा सरकार बनाने की स्थिति में होंगे।
इस मौके पर जेल से अपनी रिहाई नहीं होने पर चौटाला का दर्द जुबां पर आ गया। ओमप्रकाश चौटाला ने कहा कि सजायाफ्ता होने की वजह से मैं खुलकर लोगों के बीच नहीं जा सकता। जब मेरी सजा खत्म हो जाएगी, तब मैं सक्रियता बढ़ा दूंगा। चौटाला ने कहा
कि अमूमन 65 साल की उम्र के बाद किसी भी कैदी के प्रति रियायत बरतते हुए उसे रिहा कर दिया जाता है। मैं 85 साल से ज्यादा का हो चुका हूं, लेकिन मुझे रिहा नहीं किया जा रहा है। इन लोगों को कुछ न कुछ जरूर मुझसे डर होगा।