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आखिर क्यों पंजाब में छाई आप, जानिए क्या हैं इसके कारण

जुबिली न्यूज डेस्क

फिलहाल अभी तक के रूझानों से साफ है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी क्लीन स्वीप करने जा रही है। अब सवाल उठता है कि आखिर वो कौन से जिसने सात साल पुरानी पार्टी को पंजाब में सत्ता की कुर्सी तक पहुंचा दिया।

चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक सुबह 11.10 बजे आम आदमी पार्टी पंजाब विधानसभा की 117 में से 89 सीटों पर आगे चल रही है। कांग्रेस अब तक 15 सीटों पर आगे चल रही है, तो वहीं दो पारंपरिक दल, कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) – की पंजाब में बुरी तरह हार रही है। आखिर इसका कारण क्या है? तो चलिए जानते हैं क्या वो फैक्टर।

कांग्रेस में मची रार

सितंबर 2021 में कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री पद से हटने से पंजाब में कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ीं। नेतृत्व संकट से लेकर नवजोत सिंह सिद्धू, चरणजीत सिंह चन्नी और सुनील जाखड़ के बीच शीर्ष पद के लिए खूब विवाद हुआ, और ऐसा लगा कि आलाकमान इससे अनजान रहा। इसका फायदा आम आदमी पार्टी ने उठाया।

्रकांग्रेस में अंदरूनी कलह ने मतदाताओं को जमीन पर उलझा दिया है। रुझानों की मानें तो चन्नी के आने से भी कांग्रेस को दलित वोट को मजबूत करने में मदद नहीं मिली।

भगवंत मान फैक्टर

साल 2017 के विधानसभा चुनावों में जब आम आदमी पार्टी ने पंजाब में 112 सीटों में से 20 पर जीत हासिल की (23.7 फीसदी वोट शेयर के साथ), तो पार्टी को मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा नहीं करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा था।

उस समय कहा गया था कि इस कदम के पीछे का कारण अरविंद केजरीवाल की पंजाब के मुख्यमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षाएं थीं। मौजूदा वक्त के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने इसी तरह का आरोप लगाया था।

लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में आप पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरी। आप ने संगरूर के सांसद भगवंत मान को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था। दरअसल पार्टी का एक लोकप्रिय सिख चेहरा मान मालवा क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय हैं।

किसानों आंदोलन का प्रभाव

पिछला एक साल चलने वाले किसानों के विरोध को पंजाब चुनावों के लिए सबसे निर्णायक कारकों में से एक बताया गया था। ऐसे में जहां विरोध की भावना बीजेपी के खिलाफ खिलाफ थी, कांग्रेस जमीनी स्तर पर भावना को भुनाने में असमर्थ रही है।

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दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और राघव चड्ढा जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के रूप में किसानों के साथ परिचित हो गई, जो नियमित रूप से जमीन पर प्रदर्शनकारियों का दौरा करते थे।

परिवर्तन के लिए बेचैन पंजाब

पंजाब में, अब तक सत्ता पारंपरिक रूप से शिअद और कांग्रेस के बीच रही है। दोनों दलों ने दशकों तक पंजाब की सत्ता पर राज किया है, लेकिन राजनीतिक तौर पर धुर विरोधी अकाली के खिलाफ कांग्रेस ने इस बार नरम रुख अख्तिार किया।

मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से पहले प्रदेश में कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर बादल के खिलाफ आरोपों में नरमी के कारण अकालियों के साथ गठजोड़ करने का आरोप लगाया गया था, जिससे यह धारणा बनी कि कांग्रेस और अकाली एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

इस बार पूरे पंजाब, खासकर मालवा के लोगों ने बदलाव के पक्ष में वोट किया। पूरे राज्य में यह संदेश गूंज रहा था कि मतदाताओं ने दो बड़ी पार्टियों को 70 साल तक शासन करते देखा है, लेकिन उन्होंने परिणाम नहीं दिया है। इसलिए समय आ गया है कि किसी और पार्टी को मौका दिया जाए।

आप का नारा “इस बार न खावंगे धोखा, भगवंत मान ते केजरीवाल नू देवांगे मौका” पूरे राज्य में गूंज उठा क्योंकि लोग यथास्थिति और गिरती आय का स्तर से तंग आ चुके थे।

दिल्ली मॉडल बना प्रभावी

आप संरक्षक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने पंजाब के लोगों के सामने अपना दिल्ली मॉडल रखा। उन्होंने दिल्ली शासन मॉडल के चार स्तंभों – सस्ती दरों पर गुणवत्तापूर्ण सरकारी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी को लेकर लोगों से वादे किए।

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दरअसल पंजाब एक ऐसा राज्य है जो बिजली की महंगी दरों से जूझता रहा है, और जहां स्वास्थ्य और शिक्षा का ज्यादातर निजीकरण किया गया था। इसीलिए लोगों ने अरविंद केजरीवाल के दिल्ली मॉडल को हाथों हाथ लिया।

सत्ता विरोधी लहर का फायदा

इसके अलावा आप को कांग्रेस के खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर से भी बड़ा लाभ हुआ है। पार्टी ने सफलतापूर्वक चुनावी एजेंडा को बढ़ती बेरोजगारी, कोरोना महामारी के दौरान जीर्ण-शीर्ण स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे, महंगाई, शिक्षा और अन्य नागरिक मुद्दों को लोगों के सामने उठाया।

केजरीवाल के प्रसिद्ध ‘दिल्ली मॉडल ऑफ गवर्नेंस’ ने मौजूदा कांग्रेस पार्टी को कड़ी टक्कर दी। आप को उन युवा और महिला मतदाताओं का समर्थन मिला जो एक नई पार्टी और ‘आम आदमी’ को मौका देना चाहते थे। इसी तरह, राज्य में महिलाओं के खातों में प्रति माह 1,000 रुपये की राशि जमा करने के ्र्रक्क के वादे ने उन्हें इस वर्ग के लिए पसंदीदा बना दिया।

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