जुबिली न्यूज डेस्क
अहम सवाल-आखिर कब तक महिलाएं अपने ही पिता और पति के हाथों मारी जायेंगी? आखिर कब तक पतियों-पिताओं को महिलाओं की हत्या की छूट मिली रहेगी? ऐसे सवाल ईरान में इन दिनों जोर पकड़ रहा है। यह सवाल यूं ही नहीं उठ रहा है। सिर्फ जून माह में एक के बाद एक तीन महिलाओं की हत्या का मामला सामने आया। इन तीनों मामलों में एक जैसी बात यह रही कि इन तीनों के कातिल कोई बाहरी नहीं बल्कि अपने थे।
ईरान में जो हत्याएं हुई इसे ऑनर किलिंग माना जाता है। इनमें सबसे बड़ी बात यह है कि इन हत्यायों के कातिलों को अपराध साबित होने के बाद भी आम हत्यारे जैसी सजा नहीं मिलेगी।
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इन मामलों के सामने आने के बाद से ईरान में हत्या के कानून में सुधार करने को लेकर बहस तेज हो गई है। इस बारे में लोगों को
जागरुक करने की मांग काफी जोर पकड़ती दिख रही है।
ईरान के कानून के हिसाब से किसी महिला का हत्यारा यदि उसका पति, पिता या भाई हो तो उसे आम हत्यारे जैसी सजा नहीं मिलती। भले ही सुनने में ये अन्याय लगता हो लेकिन ईरान के कानून के हिसाब से यही न्याय है। दोषी साबित होने पर इन्हें केवल 3 से लेकर अधिकतम 10 साल तक की जेल हो सकती है।
ईरान में शरिया कानून के अंतर्गत आने वाले इस मामले में बेटी की हत्या के लिए पिता को मृत्यु दंड या उम्र कैद नहीं दी जा सकती जबकि इसी जुर्म में मां को ऐसी सजा मिल सकती है।
हत्यारों को नहीं है कानून का डर
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ईरान में एक मामले में कथित तौर पर हत्यारे पिता ने अपनी बेटी की जान लेने से कुछ हफ्ते पहले ही अपने वकील से बात कर इस बात की तसल्ली कर ली थी कि उसे इसके लिए कड़ी सजा तो नहीं झेलनी पड़ेगी। देश के कानून की नजर में अपनी हरकत की स्वीकार्यता के स्तर को समझते हुए उसने खून करने का फैसला लिया।
यह मामला एक 14 साल की लड़की रोमीना का था। उसके पिता ने ही सोते में उसका सिर कुल्हाड़ी से काट दिया। पिता ने हत्या का कारण अपनी इज्जत बताया। उसने कहा कि उसने अपनी “इज्जत” बचाने के लिए यह कदम उठाया, क्योंकि लड़की अपनी पसंद के लड़के साथ घर छोड़ कर भाग गई थी।
इसी माह में जो दूसरा मामला सामने आया उसमें 19 साल की फातिमा का कत्ल उसे पति ने किया। उसका पति रिश्ते में उसका चचेरा भाई लगता था। फातिमा की शादी उससे जबरन कराई गई थी। फातिमा की हत्या इसलिए हुई क्योंकि वह पति की बदसलूकी से परेशान होने के बाद घर से भागकर एक महीने से किसी शेल्टर होम में रही थी। इसी से नाराज होकर उसके पति ने उसे मौत के घाट उतार दिया और फिर चाकू लेकर खुद ही पुलिस के पास चला गया।
तीसरा मामला 22 साल की रेहाना का था। उसकी हत्या उसके पिता ने इसलिए कर दिया क्योंकि वह देर से घर लौटी थी।
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राजनीतिक मंचों और सोशल मीडिया पर हो रहा है विरोध
ईरान में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर लचर कानून है। यहां लंबे अर्से से घरेलू हिंसा को अपराध का दर्जा दिए जाने की मांग की जा है। आठ साल से कानून सुधार करने की तैयारी चल रही है पर अब इस पर सहमति नहीं बन पाई है। इसके अलावा कई नागरिक अधिकार कार्यकर्ता ईरान के इस्लामिक कानून में सुधारों की मांग को लेकर लंबे समय से काम करते आए हैं। उनकी मांग रही है कि किसी के खून के लिए हर खूनी को एक जैसी सजा मिलनी चाहिए।
वहीं ईरान की इस्लामी सरकार नहीं चाहती कि इन घटनाओं का संबंध देश में इस अपराध के लिए सजा के हल्का होने से जोड़ा जाए। वहीं देश भर के राजनीतिक मंचों और सोशल मीडिया पर तथाकथित सम्मान के नाम पर की जाने वाली ऐसी हिंसा की आलोचना देखने को मिली है।
यही कारण है कि देश के सर्वोच्च नेता खमेनेई के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से जारी बयान में उनके हवाले से लिखा है कि उन लोगों का मजबूती से मुकाबला किया जाना चाहिए जो “महिलाओं का अपमान अपना हक मानते हैं। ”
शरिया कानून पर बहस के लिए नहीं तैयार
इस माह में लगातार महिलाओं की हत्या के बाद सबसे पहले बड़े मामले पर छिड़ी देशव्यापी चर्चा के बाद जल्दी- जल्दी में देश में वो कानून पास किया गया जो पिछले 11 साल से लटका था। यह कानून बच्चों के अधिकारों से जुड़ा था जिसे लेकर ईरानी संसद की ताकतवर और संकीर्ण सोच वाली गार्डियन काउंसिल और दूसरे सुधारवादी धड़े के बीच सहमति नहीं बन पाई थी। लेेकिन हत्याकांड के बाद बने दबाव के कारण पास हुए इस कानून में भी वो शर्त नहीं बदली जा सकी कि बच्चों को जान से मारने वाले पिता को आम खूनी की तरह सजा नहीं दी जाएगी। इसका कारण यह है कि यह इस्लामिक शरिया कानून से निकली व्याख्या है जिस पर अब भी सरकार बहस के लिए तैयार नहीं है।
इस मामले में विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी हत्याओं की जड़ें उस गहरी पितृसत्तात्मक सोच से निकलती हैं जो महिलाओं को अपने से कमतर और उसके साथ अन्याय को आम मानता है। कई सदियों से ईरानी समाज ऐसी बीमार सोच की गिरफ्त में रहा है जिसे सुधारने के लिए ना केवल महिलाओं की हत्या जैसे जुर्म के लिए उनके रिश्तेदारों को भी कड़ी से कड़ी सजा दिलाने वाला कानून बनाना होगा बल्कि समाज में बड़े स्तर पर कई सालों तक लगातार जागरूकता अभियान चलाने होंगे।
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