जुबिली न्यूज डेस्क
मई 2019 में जब मोदी सरकार का गठन हुआ तब बिहार के मुख्यमंत्री व जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार काफी तिलमिलाए हुए थे। तिलमिलाहट की वजह थी कि भाजपा ने उनकी मांग को नहीं माना था।
बुधवार को तमाम सियासी अटकलों और कयासों के बीच मोदी कैबिनेट का विस्तार हुआ जिसमें जनता दल यूनाइटेड यानी जदयू की एंट्री हुई है। मंत्रिमंडल विस्तार में एनडीए के घटक दल जेडीयू के एक मात्र नेता रामचंद्र प्रसाद सिंह यानी आरसीपी सिंह को जगह मिली।
दो साल पहले जदयू कोटे से तीन-चार मंत्री पद की मांग करने वाले नीतीश कुमार को इस बार एक ही पद से संतोष करना पड़ा है। अब सवाल उठता है कि 2019 में एक पद के लिए इनकार करने वाले नीतीश को अब वही एक पद कैसे स्वीकार हो गया?
राजनीतिक पंडितों की माने तो इसके पीछे बीते दो सालों के सियासी घटनाक्रम हैं, जिसकी वजह से नीतीश कुमार को केंद्र में एक ही मंत्री पद से संतुष्ट होना पड़ा है।
साल 2019 में भाजपा की ओर से केंद्रीय कैबिनेट में एक मंत्री पद के ऑफर को नीतीश कुमार ने ठुकरा दिया था। उस वक्त नीतीश ने चार मंत्री पद की मांग की थी, लेकि मोदी ने उनकी मांग पर भाव नहीं दिया तो नीतीश कुमार ने शामिल होने से साफ इनकार कर दिया और कहा था कि उनकी पार्टी सांकेतिक तौर पर मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होगी।
अब हालात बदल गए है। दो साल बाद जब मोदी के मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ तब भी जदयू को एक ही मंत्री पद मिला। दरसअल उस समय से लेकर अब तक में बहुत कुछ बदल गया है।
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साल 2019 में नीतीश कुमार काफी मजबूत स्थिति में थे और उस समय वह फ्रंटफुट से खेल रहे थे, क्योंकि उनके पास विधायकों की संख्या भाजपा की तुलना में अधिक थी। लेकिन आज वह खुद बिहार में भाजपा के रहमोकरम पर मुख्यमंत्री हैं।
इसलिए इस बार उनका तेवर देखने को नहीं मिला। बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार की जदयू एनडीए गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में थी, मगर चुनाव के नतीजे आने के बाद बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में आ गई।
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2020 विधानसभा चुनाव में जेडीयू महज 43 सीट जीतने में सफल हो पाई, वहीं भाजपा ने 73 सीटों को जीतकर जदयू के काफीप समय से बढ़े सियासी भाव को एक झटके में कम कर दिया।
लोकसभा चुनाव तक नीतीश कुमार का तेवर अलग ही दिखता था। उस समय 2019 में नीतीश कुमार ने भाजपा की ज्यादा सीटों की मांग को मानने से इनकार कर दिया था और बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर भाजपा और जदयू ने फिफ्टी-फिफ्टी फॉर्मूला पर चुनाव लड़ा था।
बीजेपी और जदयू जहां 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ी, वहीं 6 सीटे लोजपा के खाते में गई थी। इस चुनाव में जदयू, बीजेनी से एक सीट कम ही जीत पाई। उसके बाद से ही बीजेपी के सामने नीतीश कुमार की सियासी धमक कम होती दिखने लगी।
बहरहाल, जब केंद्रीय कैबिनेट को लेकर बुधवार को पत्रकारों ने उनसे सवाल किया तो उनकी भाषा में पुराना वाला तेवर नहीं दिखा। जदयू कोटे से मंत्री बनने के सवाल पर वह झेपते नजर आए और आरसीपी सिंह का हवाला देकर बचते दिखे।
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नीतीश कुमार ने कहा कि बीजेपी से बातचीत के लिए जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ही अधिकृत हैं और वही फैसला लेंगे। इस बार नीतीश कुमार के एक मंत्री पद स्वीकार करने की अंदरखाने एक और वजह बताई जाती है कि कम संख्या के बाद भी नीतीश कुमार को बीजेपी ने मुख्यमंत्री बनाकर रखा है, इसलिए भी अब नीतीश कुमार पहले की तरह बार्गेनिंग करने की स्थिति में नहीं हैं।