श्रीश पाठक
5G से धीरे-धीरे समूचा ऑफलाइन, ऑनलाइन हो जाएगा। हर सौ मीटर पर रेडियेशन थूकते मिनीटावर अंततः हमारा प्राकृतिक स्पेस ही छीन लेंगे। इंसानों के साथ-साथ सभी वस्तुओं के साथ हमारे समस्त संबंधों का रिकॉर्ड इन्टरनेट कम्पनियों के पास होगा, जिसे वे मुनाफे के लिए इस्तेमाल करेंगी।
हाथ में बंधी घड़ी से उन्हें हमारे शरीर के बारे में सब पता होगा तो हमारे हर क्लिक से वे हमारे द्वारा किए जा सकने वाले अगले क्लिक की संभाविता बेच व्यापार को अगले लेवल पर ले जाएंगी।
दुनिया, कुछ बड़ी कंपनियों की गुलाम होगी, यह कुछ ग्लोबल कॉर्पोरेट इंपीरियलिज्म जैसा होगा, जिनके आगे सरकारें अंततः बेबस होंगी या सरकार ही कंपनियों की होंगी, जिसे बस तभी हराया जा सकेगा जब मानव अचानक बिजली और इन्टरनेट प्रयोग करना छोड़ दे, जो लगभग असंभव होगा।
मेरे देश में जबकि 5G के होने का अर्थ केवल ‘और अधिक नेट स्पीड’ ही समझा जाता है, ऐसे में यह राजनीतिक अपेक्षा कैसे रखें। हम सरकार से कि वह पहले इस पर राष्ट्रव्यापी विमर्श करायेगी कि हमें यह तकनीक चाहिए भी कि नहीं।
सरकार, 5G स्पेक्ट्रम की बोली लगाने को बेताब है बिना यह समझाये कि यह नागरिकों के सभी स्पेस की बोली होने वाली है। इस तकनीकी शक्ति के समक्ष यों तो अमेरिका जैसे देश भी बेबस हैं और उनकी सरकार भी पूंजीपतियों के हाथ में बस नाचती ही है, लेकिन कम से कम वहाँ 5G के नुकसानों पर एक डिबेट तो है।
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मै यहाँ से एक दारुण भविष्य देखता हूँ। जिस वक्त हम एक व्यक्ति के तौर पर उस गुमान में होंगे कि लगभग सभी संबंधित चीजों पर हमारी नज़र है और वे हमारे नियंत्रण में हैं, उसी वक्त हम सभी के हर छोटे-बड़े नियंत्रणों का नियंत्रण किसी एक-दो बड़ी कंपनी के हाथ में होगा। अपनी जीवन की सारी जमा-पूंजी लगा हम किसी बड़ी गूगल जैसी कंपनी द्वारा बनायी गए खास तरह से डिजाईन हुए छोटे-छोटे घरों में रहने को बाध्य होंगे, क्योंकि बाहर का वातावरण रेडिएशन, प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग के चपेट में होगा।
उस छोटे से घर में हम 3D-7D तकनीक से अतीत का सुंदर मनोरम वातावरण जीने की कोशिश करेंगे और अधिकांश वक्त वर्चुअल स्पेस में ही बिताने को मजबूर होंगे।पूरी दुनिया में कुछ बेहद खास जगहें जानबूझकर बचाई गई होंगी जहाँ दुनिया के बेहद अमीर प्राकृतिक जीवन जिएंगे, इन्टरनेट, बिजली से बेहद दूर एक ग्रामीण जीवन, जिस जीवन को आज हम बेहद पिछड़ा समझते हैं। हमें बिजली और इन्टरनेट के बिना जीने की कोशिश शुरू करनी चाहिए। आज गाँधी होते तो उन्हें यह मुहिम शुरू करनी पड़ती।