Thursday - 31 October 2024 - 3:32 PM

38 दिन बाद भी बर्खास्त हजारों शिक्षकों के धरने पर गतिरोध बरकरार

जुबिली न्यूज डेस्क

पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में पिछले 38 दिन से नौकरी से बर्खास्त हजारों शिक्षक इस कड़कड़ाती ठंड में धरने पर बैठे हैं। इस दौरान धरना कर रहे शिक्षकों में से दो की मौत हो चुकी है तो एक शिक्षिका ने कथित रूप से आत्महत्या कर ली है। बावजूद इसके अब तक इस धरने पर गतिरोध बना हुआ है।

हालांकि मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब और शिक्षा मंत्री रतन लाल नाथ ने इन शिक्षकों से धरना वापस लेने की अपील की है, लेकिन शिक्षकों के वैकल्पिक रोजगार का इंतजाम नहीं होने तक धरना खत्म नहीं करने की जिद के चलते इस मुद्दे पर गतिरोध जस का तस है।

इस कड़कड़ाती ठंड में शिक्षकों के साथ उनके घरों के बच्चे और महिलाएं भी धरने पर बैठे हैं। राज्य की पूर्व लेफ्टफ्रंट सरकार की कथित गलत नियुक्ति प्रक्रिया के तहत नियुक्त 10,323 शिक्षकों को लंबी अदालती लड़ाई के बाद बर्खास्त कर दिया गया है।

अब तक 81 शिक्षकों की हुई मौत

शिक्षकों के आंदोलन का नेतृत्व करने वाली ज्वायंट मूवमेंट कमिटी के नेता सत्यजित के मुताबिक, “बर्खास्त शिक्षकों में अब तक 81 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। बीते शनिवार को मानसिक अवसाद से पीडि़त रूमी दे नामक शिक्षिका ने आत्महत्या कर ली। इससे पहले दो जनवरी को दक्षिण त्रिपुरा जिले में 32 साल के उत्तम त्रिपुरा ने भी आत्महत्या कर ली थी।”

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दरअसल, 2010 और 2014 में तत्कालीन लेफ्टफ्रंट सरकार ने संशोधित रोजगार नीति के तहत इन शिक्षकों की नियुक्ति की थी। लेकिन हाईकोर्ट ने इन नियुक्तिों को रद्द कर दिया थ। इसके बाद में शीर्ष अदालत ने भी हाईकोर्ट का फैसला बहाल रखा था।

लेकिन अदालत ने एडहॉक आधार पर मार्च 2020 तक इन शिक्षकों से काम कराने की अनुमति दी थी। अब उसके बाद तमाम शिक्षक बेरोजगार हो चुके हैं। इसलिए राज्य की बीजेपी सरकार ने अब शीर्ष अदालत से इन लोगों को चपरासी के पद पर नियुक्त करने की अनुमति मांगी है।

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दरअसल इन शिक्षकों की नियुक्ति महज मौखिक इंटरव्यू के जरिए की गई थी, लेकिन सात मई 2014 को त्रिपुरा हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था। उसके बाद 29 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी थी।

शीर्ष अदालत ने उसी साल 31 दिसंबर को कहा था कि आगे से तमाम ऐसी नियुक्तियां नई नीति बना कर की जाएं।

अदालती निर्देश के बाद सरकार ने साल 2017 में एक नई नीति बनाई और बर्खास्त शिक्षकों को तदर्थ आधार पर बनाए रखा। उसकी दलील थी कि राज्य में शिक्षकों की भारी कमी है। उसके बाद नवंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने बर्खास्त शिक्षकों को तदर्थ आधार पर 31 मार्च 2020 तक काम करने की अनुमति दे दी थी।

अदालत के आदेश के बाद सरकार ने बर्खास्त शिक्षकों को दूसरे पदों पर नियुक्त करने का प्रस्ताव रखा और 1200 पदों पर नियुक्तियां भी हो गई, लेकिन शीर्ष अदालत ने सरकार को अदालत की अवमानना का नोटिस भेज दिया। उसके बाद ऐसी नियुक्तियां रोक दी गईं और मार्च 2020 में इन सबकी सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं।

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शिक्षकों के हितों के खिलाफ

मौजूदा समस्या के लिए शिक्षा मंत्री रतन लाल नाथ राज्य की पूर्व लेफ्टफ्रंट सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं। वे कहते हैं, “सरकार इंटरव्यू और दूसरी औपचारिकताओं के बिना किसी को नौकरी नहीं दे सकती। सुप्रीम कोर्ट ने इन शिक्षकों को सरकारी नौकरियों के लिए तय उम्र सीमा में छूट दे दी है। इन लोगों को इसका लाभ उठाना चाहिए।”

दूसरी ओर, पूर्व मुख्यमंत्री और अब विधानसभा में विपक्ष के नेता मानिक सरकार कहते हैं, “त्रिपुरा हाईकोर्ट और उच्चतम न्यायालय की ओर से इन शिक्षकों की नियुक्तियां रद्द होने के बाद तत्कालीन लेफ्टफ्रंट सरकार ने इन सबको वैकल्पिक रोजगार मुहैया कराने के लिए 13 हजार पदों का सृजन किया था। 2018 के चुनावों के दौरान भाजपा ने सत्ता में आने पर इन पदों पर नियुक्त शिक्षकों की नौकरी नियमित करने का वादा किया था, लेकिन उसने कुछ भी नहीं किया।

उधर, शिक्षा मंत्री दलील देते हुए कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की वजह से सरकार के हाथ बंधे हुए हैं। वह इस मामले में कुछ नहीं कर सकती। नाथ कहते हैं, “हमें इन शिक्षकों से पूरी सहानुभूति है, लेकिन सरकारी नौकरियों के लिए उनको इंटरव्यू में शामिल होना पड़ेगा।”

दोनों पक्षों की दलीलों और कानूनी पेचीदगियों से साफ है कि इस गतिरोध के शीघ्र खत्म होने के आसार कम ही हैं।

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