राजेंद्र कुमार
यों तो इतिहास में 9 जनवरी की तारीख में सैकड़ों ऐतिहासिक फैसले हुए हैं, लेकिन ऐसे फैसलों में यूपी का नाम नहीं था। परन्तु अब 9 जनवरी के इतिहास में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए गए फैसले को भी जगह मिलेगी। क्योंकि यूपी सरकार ने आज नोयडा के एसएसपी वैभव कृष्ण को निलंबित करते हुए उन पांच आईपीएस अफसरों को भी उनके पद से हटा दिया, जिनके भ्रष्टाचार के बाबत वैभव ने सरकार को पत्र लिखा था।
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के बाद बीते कई सालों में योगी आदित्यनाथ ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं, जिन्होंने भ्रष्टाचार के मामले में इतने आईपीएस अफसरों के खिलाफ ऐसा एक्शन लिया है।
जो नेता या पत्रकार सरकार के कामकाज पर नजदीकी नजर रखते हैं, उन्हें पता है, योगी सरकार के लिए नोयडा के एसएसपी वैभव कृष्ण के खिलाफ एक्शन लेना आसान फैसला नहीं था। वैभव की छवि एक ईमानदार अफसर होने के साथ ही साथ डीजीपी से लेकर केंद्रीय मंत्री तक उनके संबंध थे। यही वजह थी कि बीते दो माह से वैभव का पत्र सरकार में मिलने और उसके बाद वैभव के उस पत्र को लीक करने के बाद से मीडिया में सरकार के खिलाफ लिखी जा रही खबरों के बाद भी कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा था। लेकिन जैसे ही इस मामले में एडीजी जसवीर सिंह ने एसएसपी नोएडा वैभव कृष्ण की रिपोर्ट के आधार पर पांच आईपीएस अफसरों के खिलाफ नोएडा के सेक्टर 20 थाने में रजिस्टर्ड डाक से तहरीर भेजी। और इसके साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आरोपित अफसरों को उनके निलंबित करने तथा उनके खिलाफ अलग से एफआईआर दर्ज करने की मांग की है। योगी सरकार हरकत में आ गई। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले को लेकर डीजीपी से पूछताछ की। बस फिर क्या था? आनन फानन में आईजी मेरठ आलोक सिंह लखनऊ तलब कर लिए गए।
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यहां आते ही आलोक ने वायरल वीडियो को लेकर हुए बखेड़े के मामले में नोएडा के एसएसपी वैभव कृष्ण का स्पष्टीकरण डीजीपी ओपी सिंह को सौंप दिया। इसके अलावा उन्होंने एक महिला से चैट की वायरल वीडियो की गुजरात के फोरेंसिक लैब से मिली रिपोर्ट भी शासन को सौंपी।
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फोरेंसिव लैब की रिपोर्ट में वह वीडियो और चैट सही पाई गई जिसे वैभव कृष्णा ने फर्जी बताया था। फोरेंसिक जांच में सामने आय़ा कि वीडियो एडिटेड और मार्फ्ड नहीं था। सूत्रों के अनुसार जैसी ही यह जानकारी मुख्यमंत्री को दी गई, उन्होंने तत्काल इस मामलें में करवाई करने का आदेश दिया, और इसके बाद ही वैभव कृष्ण को निलंबित करने के साथ ही आईपीएस अजयपाल शर्मा, आईपीएस सुधीर सिंह, आईपीएस हिमांशु कुमार, आईपीएस राजीव नारायण मिश्र व आईपीएस गणोश साहा के खिलाफ करवाई की गई। इसके साथ ही इस मामले में दिवाकर खरे जो मुख्य सचिव के दफ्तर में निदेशक मीडिया के पद पर तैनात हैं के किलाफ करवाई करते हुए उन्हें सूचना एवं जनसंपर्क विभाग (मुख्यालय) / मंडलायुक्त कार्यालय लखनऊ से संबंद्ध कर दिया गया। इनके खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकारी नियमावली (अनुशासन एवं अपील) नियमावली 1999 के अंतर्गत आरोप पत्र निर्गत करते हुए विभागीय अनुशासनिक कार्रवाई संस्थित करते हुए प्रकरण की जांच की जाएगी।
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सरकार के उच्चधिकारियों के अनुसार बीते ढ़ाई महीने से जिस मामले को डीजीपी से लेकर गृह विभाग के अधिकारी तक फैसला लेने से टाल मटोल कर रहे थे, उस पर त्वरित फैसला लेने के पीछे एडीजी जसवीर सिंह का लिखा पत्र है। इस पत्र के मिलते ही मुख्यमंत्री सचिवालय इस मामले में तेजी से हरकत में आया क्योंकि सीएम ने इस मामले हुई कार्रवाई के बाबत पूछ लिया।
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फिर न्याय विभाग ने कहा कि जसवीर के पत्र पर यदि एक्शन लेने में विलंब हुआ तो कोई इस मामले को लेकर न्यायालय में याचिका दाखिल कर सकता है और ऐसा होने पर सरकार की छवि खराब होगी। इस राय के बाद ही वैभव सहित कई आईपीएस पर सरकार गाज गिर गई। कहा यह भी जा रहा है कि अब जल्दी ही वैभव पर महिला उत्पीड़न और आईपीएस अजयपाल शर्मा, आईपीएस सुधीर सिंह, आईपीएस हिमांशु कुमार, आईपीएस राजीव नारायण मिश्र व आईपीएस गणोश साहा के बाबत ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर जो आरोप वैभव ने लगाये हैं, उन्हें लेकर एक्शन लिया जाएगा। क्योंकि इस मामले में भी जसवीर सिंह ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कार्यवाही करने का आग्रह किया है। इसलिए इस मामले में भी जल्दी एक्शन लिया जायगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)