न्यूज डेस्क
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के कामकाज में पारदर्शिता की मांग बढ़ती जा रही है। लंबे समय से इसकी मांग की जा रही है। वहीं देश के भावी मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोबडे ने कॉलेजियम सिस्टम पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम में पर्याप्त पारदर्शिता है और कॉलेजियम की चर्चा का खुलासा करने की जरूरत नहीं है। यह सवाल गोपनीयता का नहीं बल्कि निजता के अधिकार का है।
18 नवंबर को जस्टिस अरविंद बोबडे देश के 47 वें सीजेआई बनेंगे और वह जस्टिस रंजन गोगोई का स्थान लेंगे। कॉलेजियम की पूरी चर्चा का खुलासा करने के मुद्दे पर जस्टिस बोबडे ने कहा कि इस मामले में रूढि़वादी दृष्टिकोण आवश्यक है, क्योंकि ‘लोगों की प्रतिष्ठा दांव पर है’। नागरिकों के जानने की इच्छा को सिर्फ संतुष्ट करने के लिए इसका बलिदान नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि जो शिकायतें आती हैं उनमें से आधी सच नहीं होती हैं और मुझे लगता है कि कॉलेजियम और अदालत को ऐसे मामलों में रूढ़िवादी होना चाहिए।
जस्टिस बोबडे का यह बयान महत्वपूर्ण है। बोबडे नौ न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया था।
न्यायिक कार्यों के लिए न्यायाधीशों की सोशल मीडिया पर आलोचना पर जस्टिस बोबडे ने अफसोस जताया और कहा कि अधिकतर न्यायाधीश जो ‘मोटी चमड़ी’ वाले नहीं हैं वे परेशान हो जाते हैं।
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मालूम हो कि सीजेआई के रूप में जस्टिस बोबडे का कार्यकाल 17 महीने से अधिक का होगा और वह 23 अप्रैल, 2021 को सेवानिवृत्त होंगे।
मुख्य न्यायाधीश नियुक्त होने के बाद दिए गए एक साक्षात्कार में जस्टिस बोबडे ने कहा कि, ‘इसलिए जब आप एक नागरिक के जानने की जरूरत के खिलाफ इस (गोपनीयता) पर गौर करते हैं, यदि आप सामान्य जिज्ञासा के खिलाफ तौलते हैं। एक आम व्यक्ति के लिए, यह एक तरह की जिज्ञासा है जिसे वह जानना चाहता है। यदि आप इन दोनों पर गौर करते हैं तो हर बात का खुलासा करने की तुलना में रूढ़िवादी होना महत्वपूर्ण है।’
कॉलेजियम द्वारा उच्चतर न्यायपालिका में जज के रूप में नियुक्ति या पदोन्नति के लिए जिन लोगों का चयन नहीं किया जाता, उनके निजता के अधिकार पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि उनके पास भी ‘जीने के लिए जीवन’ है और उनके नकारात्मक ब्योरों को क्यों सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
जस्टिस बोबडे ने कहा, ‘यह गोपनीयता का सवाल नहीं बल्कि निजता का सवाल है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हमें पुरानी पद्धति का सहारा लेना चाहिए, लेकिन मैं कह रहा हूं कि हाल ही में कॉलेजियम द्वारा एक निर्णय लिया गया कि हम उन सभी के नाम बताएंगे, जिन्हें हम नियुक्त करते हैं और उनके नाम नहीं बताएंगे जिन्हें खारिज कर दिया गया है और न ही अस्वीकृति के कारण बताएंगे।’
न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार 2017 में सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा ने कॉलेजियम की सिफारिशों को सार्वजनिक करने का निर्णय लिया था।
अगले सीजेआई के रूप में अपनी प्राथमिकताओं का जिक्र करते करते हुए जस्टिस बोबडे ने कहा, ‘किसी भी न्यायिक प्रणाली की सर्वोच्च प्राथमिकता न्याय होना है और किसी भी कीमत पर किसी और चीज के लिए इसका बलिदान नहीं किया जा सकता है क्योंकि अदालतें इसी के लिए हैं।’
उन्होंने यह भी कहा कि फैसले की आलोचना के बदले जजों की आलोचना मानहानि के समान है। जस्टिस बोबडे ने कहा कि लंबित संवैधानिक मुद्दों पर गौर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में स्थायी पांच सदस्यीय संविधान पीठ होने की संभावना है।
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