कृष्णमोहन झा
जम्मू कश्मीर में स्थित वैष्णो देवी मंदिर में नए साल के पहले दिन की पूर्व रात्रि में हुए हृदय विदारक हादसे में 13 श्रद्धालुओं की दुखद मृत्यु हो गई और लगभग इतने ही लोग घायल हो गए।
यह हादसा उस समय हुआ जब भीड में शामिल कुछ युवकों के बीच एक दूसरे से आगे निकलने में होड़ में कहासुनी हो गई जिसने कुछ ही समय में ऐसे अप्रिय विवाद का रूप ले लिया जिसकी परिणति ह्रदय विदारक हादसे में हुई।
बताया जाता है उक्त अप्रिय विवाद के बाद ही मंदिर में भगदड़ की स्थिति निर्मित हो गई थी जो अनेक श्रद्धालुओं के हताहत होने का कारण बनी। गौरतलब है कि देश के अनेक धार्मिक स्थलों में प्रति वर्ष नये साल की शुरुआत में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ एकत्र होती है जो न ए साल की सुखद शुरुआत की मनोकामना के साथ इन मंदिरों में अपने आराध्य के दर्शन हेतु पहुंचते हैं।
न ए साल के पहले दिन मां वैष्णो देवी से आशीर्वाद लेकर न ए साल की शुरुआत करने की मनोकामना के साथ प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ मंदिर में पहुंची थी परंतु भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार प्रशासन से शायद अपनी जिम्मेदारी का सही तरीके से निर्वहन करने में कहीं कोई चूक रह गई और यह दुर्भाग्यपूर्ण हादसा घटित हो गया।
जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल ने उक्त हादसे की जांच के आदेश दे दिए हैं और हताहतों के परिजनों के लिए मुआवजे की घोषणा भी कर दी गई है परंतु यह हादसा अपने पीछे उसी तरह के कई सवाल छोड़ गया है जो सवाल धार्मिक और पर्यटन स्थलों पर पहले हुए दुर्भाग्यपूर्ण हादसों के बाद भी उठते रहे हैं।
इस हादसे के बाद भी सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि हादसों से सबक न लेने की मानसिकता का परित्याग आखिर हम क्यों नहीं कर पाते। कोई भी हादसा आखिर हमारे मन-मस्तिष्क को इतना क्यों नहीं झकझोर पाता कि हम देश के किसी भी हिस्से में उस हादसे की पुनरावृत्ति न होने देने का संकल्प लेने के लिए प्रेरित हो सकें।
वैष्णो देवी मंदिर में जिस वक्त उक्त हादसा हुआ उसके कुछ समय पूर्व भी वहां कुछ युवकों के बीच विवाद की स्थिति बन चुकी थी जिसके बाद उन युवकों को समझा बुझाकर शांत कर दिया गया था और दर्शनों का क्रम सुचारू रूप से चलने लगा था।
सवाल यह उठता है कि वहां जिन प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों पर वहां व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी थी उन्हें पहली बार के विवाद के बाद ही अतिरिक्त सतर्कता बरतने की अपरिहार्यता क्यों महसूस नहीं हुई।
पहले दुर्भाग्यपूर्ण हादसा फिर उसकी जांच का यह अंतहीन सिलसिला न जाने कब से चला आ रहा है परंतु हम कभी यह दावा करने की स्थिति में नहीं आ सके हैं कि अब ऐसा कोई हादसा हम नहीं होने देंगे। साथ ही यह कहना भी ग़लत नहीं होगा कि केवल प्रशासन तंत्र को ही हर दुर्भाग्य पूर्ण हादसे के लिए जिम्मेदार ठहराकर हम अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते।
दरअसल धार्मिक स्थलों में एक दूसरे से आगे निकल कर पहले दर्शन कर लेने की बेताबी भी हादसे का एक बड़ा कारण बन जाती है । प्रथम दृष्टया वैष्णो देवी मंदिर में हुए हादसे के भी यही कारण प्रतीत होता है ।
इसमें कोई संदेह नहीं कि विशेष अवसरों पर धार्मिक स्थलों पर एकत्र होने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ में ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम होती है परंतु कई बार मुट्ठी भर लोग ही कानून व्यवस्था के लिए गंभीर संकट पैदा कर देते हैं जिनकी परिणिति दुर्भाग्यपूर्ण हादसों में होती है।
यह भी गौरतलब बात है कि वैष्णो देवी मंदिर परिसर में जो हादसा हुआ उसके लिए प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से इंकार कर रहा है । पुलिस का कहना है कि यह घटना दो युवकों के बीच हाथापाई की वजह से हुई जिसके कारण कुछ लोगों के गिरने से भगदड़ मच गई। माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड ने भी यही कहा है कि दो समूहों के बीच हाथापाई के बाद मची भगदड़ के कारण यह दर्दनाक हादसा हुआ। इस हादसे के वक्त वहां मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों का आरोप है कि मंदिर के गेट पर एकत्र भारी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस कर्मियों ने जब भीड़ पर डंडे बरसाना शुरू कर दिया तो भगदड़ मच गई जिसमें तेरह लोगों की मौत हो गई और लगभग इतने ही लोग घायल हो गए। बताया जाता है कि घटना के वक्त वहां लगभग 15 हजार लोगों की भीड़ थी ।
जबकि वहां एक समय में दस हजार से अधिक लोगों की भीड़ को संभालना मुश्किल हो जाता है। गौरतलब है कि वैष्णो देवी मंदिर में माता के दर्शन हेतु हर साल के आरंभ में लगभग पचास हजार श्रद्धालु पहुंचते हैं।
सवाल यह उठता है कि इतनी बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए क्या वहां पर्याप्त इंतजाम किए गए थे। अगर प्रशासन ने कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पर्याप्त इंतजाम किए थे तो फिर यह हादसा कैसे हो गया।
अब जबकि देश में जल्दी ही कोरोना की तीसरी लहर का आना तय हो चुका है तब वैष्णो देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को एकत्र होने की अनुमति देने पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
बताया जाता है कि वहां श्रद्धालुओं को बेरोकटोक आने की अनुमति मिल चुकी थी। भारी भीड़ में यह भी सुनिश्चित नहीं किया जा सकता था कि कितने श्रद्धालुओं का टीकाकरण हो चुका है ।
घटना के कारणों का पता तो निष्पक्ष जांच से ही चल सकेगा परंतु इसमें संदेह ही है कि इस हादसे का कोई सबक हमारे मन-मस्तिष्क पर दीर्घ काल तक अंकित रह पाएगा| अतीत के अनुभव तो यही बताते हैं कि ऐसे हादसों की जांच के नतीजों से प्रायः कुछ हासिल नहीं होता ।
अल्पकालीन सावधानी के बाद सब कुछ वैसा ही चलता रहता है जैसा पहले चल रहा था। कोई भी हादसा अंतिम साबित नहीं होता। हर हादसा पहले हो चुके दर्दनाक हादसों की टीस को ताजा करके चला जाता है।