शबाहत हुसैन विजेता
56 भोग, 56 इंच की छाती, अब तक 56 और अब 56 गालियाँ। यह वक्त के बदलाव का ग्राफ है। इस ग्राफ को ध्यान से देखें तो आज़ाद हिन्दुस्तान में बदलते दौर की तस्वीर बहुत साफ़ दिखाई देती है। इस तस्वीर में गुज़रे हुए ज़माने के साथ ही मौजूदा दौर और आने वाले दौर के हालात भी बहुत साफ़-साफ़ नज़र आ जाते हैं।
हर 56 की लम्बी चौड़ी दास्तान है। हर 56 पर उपन्यास लिखा जा सकता है। हर 56 पर फिल्म बन सकती है और हर 56 स्कूल में पढ़ाया जाने वाला एक इंट्रेस्टिंग सब्जेक्ट हो सकता है।
जब राजा-महाराजाओं को दौर था। तब 56 भोग के चर्चे गरीबों की बस्तियों में हुआ करते थे। धन्ना-सेठों की पार्टियों में 56 भोग बना करते थे। पैसे वालों की बेटियों की शादियों में भी 56 भोग की धूम हुआ करती थी। अब वक्त ने तंगहाली दे दी तो हमने एक ख़ास मिठाई का नाम 56 भोग रख दिया और ख़ास मौकों पर उसे खरीदकर अपने दस्तरख्वान पर सजा लिया करते हैं।
जब क़ानून व्यवस्था तार-तार हो गई थी। जब बदमाश खुलेआम खाकी वर्दी को चुनौती देने लगे थे। तब एक वर्दी वाले ने अकेले ही हालात को सुधारने की कसम खाई थी। इस वर्दी वाले ने एक-एक कर 56 इनकाउन्टर कर डाले। बदमाश उसके नाम से खौफ खाने लगे। उसका जिस शहर में भी ट्रांसफर होता बदमाश शहर छोड़कर भाग जाते। इस वर्दी वाले की दिलेरी पर एक फिल्मकार की भी नज़र गई और उसने उस पर फिल्म बना डाली अब तक 56।
जब राजनीति अपने संक्रमण काल से गुज़र रही थी। जब सरकारों पर आरोपों के गट्ठर लदे थे, तब गुजरात की सरज़मीन से एक नेता उठा। उसने खुद को सत्ता के शिखर का सबसे योग्य कैंडीडेट बताया। उसने वादा किया कि वह हर साल दो करोड़ लोगों को नौकरियां देकर पांच साल में बेरोजगारी खत्म कर देगा। उसने वादा किया कि देश का जो धन कालेधन के रूप में स्विस बैंक में जमा है उसे वह निकालकर लाएगा और हर हिन्दुस्तानी के खाते में 15-15 लाख रुपये जमा करवाएगा। उसने वादा किया कि उसे सत्ता मिल गई तो वह पाकिस्तान की मुश्कें कस देगा और उसे देखते ही आतंकवाद अपना दम तोड़ देगा। उसने साफ़ कर दिया कि वही यह सब कर सकता है क्योंकि यह सब करने के लिए 56 इंच की छाती की ज़रुरत होती है। जो अकेले उसी के पास है।
कई जगमगाते 56 देखने वाले हिन्दुस्तान ने 56 इंची छाती वाले को मुल्क की बागडोर सौंप दी। मुल्क की बागडोर मिलते ही वह नये-नये सूट पहनकर इस देश से उस देश के चक्कर लगाने लगा। भारतीय वायुसेना का जहाज़ कभी इस देश में नज़र आता और कभी उसे देश में नज़र आता। 56 इंची छाती का दुनिया में डंका बजने लगा।
चार बरस हवा में उड़ते बीत गए। उसने साबित किया कि दुनिया को जब चाहे छोटा किया जा सकता है। उसने यह भी साबित किया कि पैसे वाले घरों में पैदा होने वालों ने भी राहुल सांकृत्यायन को उस संजीदगी से नहीं पढ़ा जितना कि उसने रेलवे के इस प्लेटफार्म से उस प्लेटफार्म तक जाते हुए पढ़ लिया।
जब मौका लगा तब उसने इस बात को साबित कर दिखाया कि सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ, ज़िन्दगी भी गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ।
अपनी 56 इंची छाती लिए वह दुनिया को नापता रहा। अपोजीशन हमेशा की तरह से शोर मचाता रहा। उसके बारे में अपशब्द बोलता रहा। उसे वायरस, खून का सौदागर, खुजली वाला कुत्ता, गंदी नाली का कीड़ा और नीच जैसे लफ़्ज़ों से नवाजता रहा लेकिन वह जहाज़ से उतरकर कपड़े चेंज करता और फिर से नयी जगह के लिए उड़ जाता।
अपोजीशन समझता रहा कि वह सुन ही नहीं रहा। जनता महंगाई-महंगाई चिल्लाती रही, पेट्रोल के दामों को लेकर आंसू बहाती रही लेकिन न उसने कुछ कहा, न कुछ बोला। सबको यही शिकायत कि यह तो कुछ सुनता ही नहीं।
पांच साल के बाद जब एक्जाम की शक्ल में फिर इलेक्शन आया तो उसने बताया कि वह कान बंद नहीं किये था, सबकी सुनता था। पांच साल में मिलीं सारी गालियाँ उसने मंचों से सुनाईं। उसने कहा कि मुझे 56 गालियाँ मिली हैं।
मुझे थप्पड़ मारने को कहा गया है। उसने चाहा कि अपोजीशन के गालीबाज़ लोगों से जनता वोटों के ज़रिये बदला ले। उसने चाहा कि उसके पांच साल के काम की समीक्षा से पहले उससे पहले वाली सरकारों के काम की समीक्षा हो।
तीस साल पहले जो प्रधानमन्त्री था उसके भ्रष्टाचार पर बहस हो। पैंतीस साल पहले प्रधानमन्त्री के क़त्ल के बाद हुई हिंसा के ज़िम्मेदार पर कार्रवाई हो। उसने चाहा कि 71 साल पहले महात्मा गांधी का क़त्ल करने वाले की मंशा पर मंथन हो और उसे भी महात्मा वाला सम्मान मिले।
हिन्दुस्तान में चुनावी यात्रा बड़ी तेज़ी से गुज़र रही है। जो पर्चा बाकी रह गया है उसी की ज़ोरों की तैयारी चल रही है। जो पेपर हो चुके उन किताबों को जला दिया गया है। इस बार दूसरे परीक्षार्थियों ने भी बराबर की मेहनत की है।
दूसरे परीक्षार्थी भी रिज़ल्ट में मेरिट में आने का ख़्वाब देख रहे हैं लेकिन पिछली बार टॉप करने वाला भीड़ से घिरा है और अपोजीशन की तरफ उंगली उठाकर चिल्ला रहा है कि मुझे नीच कहा, मुझे गंगू तेली कहा, मुझे स्टुपिड कहा, मुझे कायर कहा। एक्जामिनर परेशान है।
वह समझ नहीं पा रहा है कि जो 56 गालियाँ उसे मिली हैं उसके आधार पर उसे नम्बर दिए जाएँ या फिर उसी से पूछ लिया जाए कि विकास का मकान कहाँ एलाट हुआ है? नीरव मोदी कब तक भारत पहुँच जाएगा?
शेर और बकरी तो एक घाट पर पानी नहीं पी सकते मगर क्या हिन्दू और मुसलमान भी अपने लिए अलग-अलग घाट तलाश लें? मुल्क को हिन्दू और मुसलमान में बाँट दिया तो कैसे मज़बूत रह पायेगा मुल्क और कैसे मजबूर नज़र आएगा दुश्मन।