राजीव तिवारी
दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार का आज अंतिम दिन है। इस चुनाव पर न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरे देश और दुनिया की निगाहें हैं। केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा इस चुनाव को प्रतिष्ठा बना लेने से ये चुनाव अन्य राज्यों के चुनाव से ज्यादा चर्चा में है।
भाजपा के लिए ये प्रतिष्ठा का सवाल इसलिए भी है कि अभी चंद माह पूर्व ही देश की जनता ने भारी बहुमत से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को दुबारा केंद्र में मौका दिया है। इस चुनाव में दिल्ली वालों ने भी केंद्र के लिए भाजपा को ही पसंद किया था। मगर अब जब दिल्ली विधानसभा के लिए चुनाव की बारी है तो भाजपा का दिल सबसे ज्यादा धड़क रहा है क्योंकि पिछली बार के नतीजों में भाजपा आम आदमी पार्टी के तूफान में तिनके की तरह उड़ गयी थी। जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में 2019 की ही तरह नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा केंद्र में भारी बहुमत से आयी थी।
लिहाजा भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव आक्रामक तरीके से चुनाव लड़ने का फैसला किया। इसके तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह समेत केंद्र सरकार के लगभग सभी मंत्री, सांसद, भाजपा सरकार वाले सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, लगभग सभी मंत्री और विधायकगण के अलावा पार्टी और इससे जुड़े तमाम संगठनों के नेता और कार्यकर्ताओं को चुनाव में उतार दिया गया जो भी चुनाव जिताने लायक रत्ती भर भी लायक दिखे।
इतना ही नहीं भाजपा नेतृत्व आक्रामक रूप से हर वो तरीका अपनाने से पीछे नहीं हट रहा जिनसे उन्हें चुनाव जीतने में मदद मिले। इनमें हिंदू मुसलमान ध्रुवीकरण और भारत पाकिस्तान फैक्टर प्रमुख रूप से शामिल है। इतना ही अपने प्रभाव वाले मीडिया संस्थानों का भी भरपूर सहयोग लिया जा रहा है।
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दूसरी ओर पांच साल के अपने कामकाज के आधार पर दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में चुनाव मजबूती से लड़ रही है। शुरूआत में भाजपा के आक्रामक प्रचार के जाल में फंसती दिखी आम आदमी पार्टी ने समय रहते अपने रवैये में बदलाव किया और बदली हुई रणनीति के तहत केजरीवाल एंड कंपनी अब हिंदू मुसलमान और भारत पाकिस्तान के मुद्दों से बचते हुए बिजली पानी स्कूल और अस्पताल के मुद्दों पर वोट मांग रही है। इसका उन्हें फायदा भी होते दिख रहा है। फायदे का मतलब भाजपा के आक्रामक प्रचार से शुरूआत में आम आदमी पार्टी को जो नुकसान होते दिख रहा था उतना नुकसान अब नहीं होगा।
बगैर किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त चुनावी विश्लेषकों और दिल्ली के ऐसे लोग जो राजनीति की समझ रखते हैं और निष्पक्ष टिप्पणी करते हैं, उनकी मानें तो इस बार भी आम आदमी पार्टी दिल्ली में फिर से सरकार बनाने लायक बहुमत से कहीं ज्यादा सीटें पा रही है हां पिछली बार के जादूई आंकड़े 67 को नहीं पाने जा रही। वजह पूछे जाने पर ये केजरीवाल सरकार द्वारा आम जनहित में किये गये कार्यों का हवाला देते हैं साथ ही ये कहने से नहीं चूकते कि भाजपा के आक्रामक प्रचार और केजरीवाल को घेरे जाने के तरीके से आम जनता में केजरीवाल के प्रति सहानुभूति ही बढ़ी है।
जिसका फायदा आम आदमी पार्टी को ही मिलेगा। इसके अलावा देश के लोगों का बदलता वोटिंग ट्रेंड भी है जिसमें वे लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनावों का अंतर बखूबी समझते हुए राज्य के स्तर पर ऐसी सरकार को चुनना पसंद कर रहे हैं जिसमें आम जनता के कामकाज आसानी से होते हों, उनकी शिकायतें सुनी जाती हों और शिकायतों पर कार्रवाई होती हो। इस मामले में दिल्ली में आम आदमी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के बनिस्पत जनता की पसंदीदा बनी हुई है।
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अंत में एक लाइन जो काफी दिलचस्प है वो ये कि दिल्ली में लड़ाई पार्टी के स्तर पर तो भाजपा और आप में है ही, इसकी गहराई देखें तो जमीनी स्तर पर वाकयी ये भारतीय जनता पार्टी के नेताओं कार्यकर्ताओं और दिल्ली के आम आदमी के बीच है। जिसमें आम आदमी “आप” के साथ दिख रहा है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)
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