जुबिली न्यूज़ डेस्क
नई दिल्ली. आगरा के चश्मा व्यवसायी ने कोरोना काल में स्थगित की गई कर्ज़ की किस्तों पर ब्याज वसूले जाने को सुप्रीम कोर्ट में उठाया तो उसके पीछे वकीलों की कतार लग गई. तमाम छोटे कर्जदार इस व्यवसायी के साथ हो लिए. सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि व्यवसायी सही है. मामला व्यापार जगत से लेकर बैंकों से जुड़े लोगों की ज़बान पर है. 28 सितम्बर को सुनवाई जारी रहेगी.
कोरोना काल में लॉकडाउन किया गया तो व्यापारियों के कारोबार चौपट हो गए. सबसे ज्यादा मुश्किल में वह व्यापारी आये जिन्होंने बैंकों से क़र्ज़ ले रखा था. उनके सामने दिक्कत यह आयी कि जब बिजनेस ही लॉक हो गया तो फिर कर्जा कैसे लौटाएं. ऐसे मुश्किल वक्त रिजर्व बैंक ऑफ़ इण्डिया ने क़र्ज़ की क़िस्त वसूली को स्थगित करने को लेकर अधिसूचना जारी की. रिजर्व बैंक ने स्पष्ट कर दिया कि अगले छह महीने तक कर्ज़ वसूली न की जाए.
रिजर्व बैंक ने व्यापारियों को यह राहत न दी होती तो शायद तमाम व्यापारी दाने-दाने को मोहताज हो जाते और दीवालिया घोषित हो जाते. रिजर्व बैंक ने यह कदम इसलिए उठाया था क्योंकि अगर कर्ज़ लेने वाले ही दीवालिया घोषित हो जाते तो देश की अर्थव्यवस्था की हालत इतनी दयनीय हो जाती कि फिर संभलने का मौका भी नहीं मिला होता.
कोरोना काल के छह महीने गुज़र जाने के बाद जब बैंकों ने कर्ज़ वसूली शुरू की तो एक अजीब-ओ-गरीब मामला सामने आया. कर्ज़ छह की अदायगी छह महीने स्थगित रही तो छह महीने का ब्याज मूलधन में जोड़ दिया गया. ऐसा करने से बैंक को दी जाने वाली किस्तों का मूल्य भी बढ़ गया.
आगरा के चश्मा व्यवसायी गजेन्द्र शर्मा ने दस लाख रूपये का गृह ऋण लिया था. छह महीने किस्तें तो नहीं ली गईं लेकिन छह महीने का ब्याज उन किस्तों में जोड़ दिया गया. गजेन्द्र शर्मा ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. गजेन्द्र शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि जब रिजर्व बैंक ने छह महीने के लिए क़र्ज़ वसूली को स्थगित किया है तो फिर छह महीने का ब्याज क्यों माँगा जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि चुनौतीपूर्ण समय में जब कर्ज़ वसूली को स्थगित किया जा सकता है तो फिर ब्याज कैसे लिया जा सकता है.
गजेन्द्र शर्मा का यह मुकदमा हालांकि उनके व्यक्तिगत कर्ज़ का मुकदमा था लेकिन इस पर होने वाला फैसला पूरे देश के उन लोगों पर प्रभाव डालने वाला था जिन्होंने बैंकों से कर्ज़ ले रखा था. लिहाजा शर्मा की मुहीम से लोगों के जुड़ने का सिलसिला शुरू हो गया. बड़ी संख्या में वकील भी शर्मा के पक्ष में खड़े होने लगे. इस समय शर्मा के इस केस में 120 वकीलों ने अपना वकालतनामा लगा रखा है. साथ ही रियल स्टेट, शापिंग माल आदि के कर्जदार भी इस मुक़दमे में साझीदार बन गए. सभी की एक सुर में मांग है कि जिस दौर में व्यापार चौपट हो गए हैं उस दौर में इंटरेस्ट और कम्पाउंड इंटरेस्ट को खत्म कर देना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट शर्मा के केस की सुनवाई 28 सितम्बर को फिर करेगा. इधर केन्द्र सरकार ने भी पूर्व सीएजी राजीव महर्षि की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन कर लॉकडाउन के दौरान कर्ज वसूली को स्थगित किये जाने के मामले में इस अवधि के ब्याज पर फैसला लेने को कहा है.
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बैंकों का मानना है कि कर्ज़ दी गई राशि का छह महीने का ब्याज अगर माफ़ कर दिया जाए तो बैंकों को करीब 10 हज़ार करोड़ रूपये का नुक्सान होगा. लेकिन दूसरी तरफ उन व्यापारियों की दिक्कतों पर गौर करें जिनका पैसा व्यापार में तो फंस गया लेकिन आमदनी पूरी तरह से बंद हो गई. उनसे अगर कर्ज़ वसूली के साथ-साथ ब्याज भी वसूला गया तो उनकी कमर टूट जायेगी और उसका व्यापार पर ऐसा असर पड़ेगा कि उससे उबरने में बहुत लम्बा वक्त लग जाएगा.