सुरेन्द दुबे
आज सुबह से ही केशरी नंदन हनुमान जी की बहुत याद आ रही है। वही हनुमान जी जो 11वें रुद्रावतार माने जाते है। आज जेठ का दूसरा बड़ा मंगल है जो उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक बड़े पर्व के रूप में मनाया जाता है। जेठ में चाहे 4 मंगल हों या 5 मंगल हों, पूरी राजधानी अन्न क्षेत्र में बदल जाती है।
हर 100 गज़ की दूरी पर भण्डारा। भंडारे मैं सुबह से ही हनुमान चालीसा के पाठ के बीच चहल पहल। ऐसा लगता था जैसे पूरी राजधानी हनुमान जी के स्वागत में लग गयी है।
बड़ा मंगल की पूरे उत्तरभारत में मान्यता है। पर भंडारों की धूम सिर्फ लखनऊ में देखने को मिलती थी। आज जब जेठ की आग बरसती दुपहरी में लांखों प्रवासी मजदूरों को नंगे पांव भूखे पेट कदम ताल करते देखा तो हमारे सामने वो दृश्य तैर गये जब हम अपने हाथों से मजदूरों को भोजन कराकर धन्य समझते थे।
भंडारे भी अलग अलग ढंग के, कहीं पूड़ी सब्जी तो कहीं कढ़ी चावल। कहीं डोसा इडली तो कहीं छोले भटूरे। कहीं चाट बताशा तो कहीं आइसक्रीम। यानी हर भंडारे की अपनी रेसिपी।
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आज बड़ा मंगल तो है। हनुमान जी भी हैं। बस भंडारे नहीं सजे है। सूनी सूनी गालियां इन भंडारों की बाट जोह रही हैं। उन मज़दूरों के लिए आंसू बहा रही है जो भंडारों में लाइन लगाने के बजाय देश के किसी कोने में पुलिस की लाठियां खा रही या फिर अपने ही प्रदेश की सीमा में घुसने देने के लिए पुलिस के सामने गिड़गिड़ा रही है। अफसरों के मन में भी कभी कभी पीड़ा उभरती है। पर सत्ता के सामने बेबस हैं। वही हस्तिनापुर वाली मजबूरी। द्रौपदी की तरह मज़दूरों का चीर हरण हो रहा है और भीष्म पितामह खामोश बैठे हैं। महाभारत काल में भीष्म पितामह अपने को कम से कम लज्जित तो महसूस कर रहे थे। अब तो भीष्म पितामह दुर्योधन के साथ मिलकर चीर हरण पर अट्टहास कर रहे हैं।
फिर बड़ा मंगल पर लौटते है। भंडारों पर लौटते हैं। क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि एक दिन के लिये मजदूरों को पैदल ही सही लखनऊ आ जाने दिया जाता।हम उनके स्वागत में भंडारे सजा कर उन्हें इतना जिमा देते और इतना बांध देते कि फिर वो किसी न किसी तरह अपनों के बीच पहुंच जाते। उनका संकल्प पूरा हो जाता और हमारी स्वर्ग में सीट बुक हो जाती। लोग कह सकते हैं कि इससे सोशल distancing नहीं रह पाती और कोरोना का संक्रमण बढ़ जाता। पर ऐसा तो रोज हो रहा है। रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन या जिलों की सीमाओं पर मजदूर एक दूसरों के निकट खड़े होकर बीमारी को दावत दे रहे है।
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कोई व्यवस्था नही बन सकी है। अव्यवस्था व्यवस्था का पर्याय बन गयी है। रोज नये नियम और कानून। आकाशवाणी से रोज इन नियमों का प्रसारण होना चाहिए। ताकि जब रोज मजदूर सड़क पर निकले तो उसे पता रहे कि आज पुलिस की लाठियों से कैसे बचना है। पग डंडियों से भागना है या रेल पटरी पर विचरण करना है। उसे ये भी पता होना चाहिये की कौन राज्य आज उसे अपनी सीमा में नहीं घुसने देगा इसका पता तो उसे होना चाहिये कि अभी उसे कितने दिन और जलील होना है। जब रोज इतने नियम बन रहे हैं तो बड़ा मंगल के दिन कुछ छूट क्यों नहीं दे दी जाती है। लखनऊ वालों का मान सम्मान बढ़ जाता।
मजदूरो को एक दिन ही सही भर पेट भोजन मिल जाता। हमारा बड़ा मंगल मन जाता। सरकार का भी मंगल हो जाता। आखिर हनुमान जी तो हमेशा काम आते हैं भले ही उनकी जात कुछ भी हो। हनुमान जी की भी बल्ले बल्ले हो जाती। मजदूर गाते घूमते ‘ कवंन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसे नहिं जात है टारो “। ये सोचते सोचते नींद खुल गयी। सपना टूट गया। कोरोना काल में पहली बार पाजीटिव सपना देखा। चलो अगले मंगल का इंतज़ार करते हैं।