Monday - 28 October 2024 - 2:18 PM

एक दौर वह भी था जब नेताओं के लिए पार्टी का आदेश सिर आंखों पर होता था

प्रीति सिंह

एक दौर वह भी था जब नेताओं को टिकट नहीं मिलता था तो उनका सिर्फ एक ही जवाब होता था-पार्टी का फैसला सिर आंखों पर। पार्टी ने जिसे उम्मीदवार बनाया है, हम उसे जीत दिलाएंगे।

अब परिस्थितियां बदल गई है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अब न तो राजनीतिक दलों की कोई निष्ठा व मूल्य हैं और न ही नेताओं की।

दरअसल अब न तो पहले जैसे राजनीतिक दल है और न ही नेता। प्रोफेशन बन चुका राजनीति शायद इसीलिए लोगों को ज्यादा आकर्षित कर रहा है। जैसे-जैसे राजनीतिक दलों ने अपना एजेंडा बदला वैसे-वैसे नेताओं का चरित्र भी बदलता गया। अब नेताओं के लिए सिर्फ एक ही मोटिब है चुनाव लड़ना । इसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं।

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पिछले कई चुनावों में यह देखने को मिल रहा है कि पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो नेता बगावत पर उतर आ रहे हैें। वह पार्टी छोड़ने और नई पार्टी का दामन थामने से भी बाज नहीं आ रहे हैं।

बिहार में इन दिनों ऐसा ही कुछ दिख रहा है। नेताओं का टिकट के लिए बगावत और दूसरी पार्टी में शामिल होने का सिलसिला थम नहीं रहा। यह हालात अमूमन हर पार्टी में हैं।

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नेता खुद को लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद से प्रभावित बता रहे हैं और टिकट के लिए पार्टी से लड़ रहे हैं। टिकट न मिलने पर निर्दलीय ताल ठोकने की ऐलान कर रहे हैं।

राजनीति पर लंबे समय तक काम करने वाले वरिष्ठï पत्रकार सुरेन्द्र दुबे कहते हैं, वह दौर अलग था जब पार्टी का फैसला नेता अपने सिर आंखों पर रखते थे। अब जबकि राजनीति में आने का मंतव्य ही चुनाव लड़ना है तो पार्टी का फैसला सिर आंखों पर नहीं सजाया जायेगा।

वह कहते हैं, आज राजनीति मुनाफे का पेशा हो गया है। इसमें माफिया का योगदान और पैसे का वर्चस्व बढ़ गया है। इसीलिए पार्टियां ऐसे ही लोगों पर दांव लगा रही है जो चुनाव जीतकर उनकी झोली में डाल दें।

पिछले दिनों भाजपा के एक वरिष्ठï नेता रामदेव महतो एक नारा लगा रहे थे। उनका नारा था-सच कहना अगर बगावत है तो…। महतो का यह नारा अपनी ही पार्टी के खिलाफ था। महतो बीजेपी की टिकट पर कई बार विधायक रह चुके हैं। चूंकि इस बार सीट वीआइपी के कोटे में चली गई। इसलिए उन्हें टिकट नहीं मिला। फिर क्या उन्होंने पार्टी के खिलाफ झंडा बुलंद कर दिया।

उन्होंने निर्दलीय चुनाव लडऩे के ऐलान के साथ ही बड़ा आरोप लगाया। उनकी माने तो पैसे के बल पर खेल हो गया है। ऐसे आरोप महतो जैसे कई नेताओं ने लगाया है। बस अंतर यह है कि कोई जदयू का है तो कोई आरजेडी का।

एक और नेता की बात कर लेते हैं। जेपी आन्दोलन के जरिए राजनीति में आए पूर्व विधायक विक्रम कुंवर कुछ दिन पहले तक राष्ट्रीय जनता दल में थे। पार्टी ने उन्हें टिकट मिलने का भरोसा दिया गया था, पर जैसे ही यह भरोसा टूटा उन्होंने पाला बदल लिया।

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विक्रम कुंवर ने पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी का दामन थाम लिया। राजद से पहले वह भाजपा में थे। अब जदयू के एक नेता की बात कर लेते हैं।

लालगंज के पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला का जदयू और नीतीश कुमार से पुराना लगाव रहा है। इसी पार्टी से वे खुद भी विधायक बने और अपनी पत्नी को भी बनाया। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में तो जदयू ने मुन्ना शुक्ला को वैशाली से उम्मीदवार भी बनाया था, लेकिन वह चुनाव हार गए पर पार्टी में बने रहे।

लेकिन अब उनका जदयू से मोहभंग हो गया है। 11 अक्टूबर को जैसे ही उन्हें पता चला कि पार्टी उन्हें उम्मीदवार नहीं बना सकती उन्होंने निर्दलीय चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी। यह कुछ आंकड़े तो सिर्फ एक बानगी हैं। पिछले कई चुनावों में ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है।

भाजपा ने तो टिकटों को लेकर मचे घमासान के बीच प्रदेश उपाध्यक्ष समेत पार्टी के नौ बागियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसका कारण था कि इन बागियों में से अधिकांश टिकट न मिलने की वजह से लोजपा के टिकट से चुनाव में ताल ठोक रहे हैं।

बीजेपी ने तर्क दिया है कि ये बागी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर कर सभी पार्टी विरोधी गतिविधि में शामिल हो गए हैं। उनके इस रुख-रवैये से भाजपा की छवि धूमिल हो रही है।

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इस मामले में वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं, यह राजनीति का सबसे खराब दौर है। इसमें मूल्य व निष्ठïा जैसी कोई चीज नहीं बची है। जैसी पार्टी की निष्ठïा है वैसे ही नेताओं की है।

वह कहते हैं अब राजनीतिक दलों को चुनाव जीतने वाला उम्मीदवार चाहिए। उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं है कि नेता का चरित्र कैसा है। वह अपराधी प्रवृत्ति का है या सफेदपोश। और इसके चक्कर में पार्टी के लिए जी-जान से काम करने वाले नेताओं को चुनाव में मौका नहीं मिल पा रहा है। जाहिर है ऐसे हालात में नेता का मनोबल टूटेगा ही और वह अन्य विकल्प पर विचार करेगा।

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