Tuesday - 29 October 2024 - 12:42 PM

डंके की चोट पर : यहाँ मर गया एक महानगर वहां आंकड़ों में सुधार है

शबाहत हुसैन विजेता

कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने जहां एक तरफ दर्द की नदी बहाई है तो वहीं दूसरी तरफ डर का समुद्र भी तैयार कर दिया है. एक तरफ मरीजों की सांसें टूट रही हैं तो दूसरी तरफ आपदा में अवसर तलाशने वाले व्यापारी दोनों हाथों से लूट में लग गए हैं. इस लूट में आक्सीजन सप्लायर, एम्बुलेंस, शव वाहन संचालक से लेकर दवा दुकानदार और अस्पताल तक सब बराबर से शरीक हैं. इन लुटेरों में यह तय करना मुश्किल है कि कौन ज्यादा बड़ा लुटेरा है.

कोरोना संक्रामक बीमारी है. पिछली लहर में जिन अस्पतालों में कोरोना के मरीजों का इलाज किया गया था. उन अस्पतालों में दोबारा से ओपीडी खुलने के बाद यह हालात थे कि मरीजों को देखने के लिए बैठे डॉक्टर इस कदर डरे हुए थे कि वह मरीजों को दो गज दूर से देखकर दवाएं लिखे दे रहे थे. सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर पर्चे पर जो दवाएं लिख रहे थे उस पर्चे को दवा देने वाले फार्मासिस्ट कैंची से पकड़ रहे थे. उन्हें हर मरीज़ में कोरोना नज़र आ रहा था.

दूसरी लहर आई तो तमाम प्राइवेट अस्पताल भी कोविड अस्पताल बन गए. सरकारी अस्पतालों में नये मरीजों के लिए जगह नहीं बची तो इन प्राइवेट अस्पतालों की चांदी हो गई. इलाज के लिए आने वाले मरीजों के परिवारों के साथ लूट का जो सिलसिला शुरू हुआ वह अब तक बदस्तूर जारी है.

कोरोना की दूसरी लहर बहुत आहिस्ता-आहिस्ता अपनी जगह बनाती जा रही थी, मरीजों की तादाद रोज़ाना बढ़ती जा रही थी थी मगर तब इस पर ध्यान देने की फुर्सत किसी के पास नहीं थी क्योंकि जिनके पास ज़िम्मेदारी थी वह लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव मना रहे थे. पांच सूबों में चुनाव की बयार बह रही थी. हज़ारों की भीड़ अपने जन नायकों को सुनने के लिए उमड़ी पड़ रही थी. जन नायक भी इतनी भीड़ देखकर दीवाने हुए जा रहे थे.

जैसे-तैसे चुनाव निबटा लेकिन तब तक कोरोना पूरी तरह से हमलावर हो चुका था. इंसानी जिंदगियां तेज़ी के साथ मौत के रास्ते पर दौड़ने लगी थीं. हर तरफ कराहों की आवाजें तेज़ होने लगी थीं. एक तरफ मौत बड़ी बेदर्दी से लोगों की साँसें छीनने में जुटी थी तो दूसरी तरफ अस्पताल आपदा में अवसर तलाशने निकल पड़े थे. प्राइवेट अस्पतालों में 24 घंटे के लिए बेड की कीमत तीस हज़ार रुपये तय कर दी गई थी. 12 सौ का रेमडेसिविर इंजेक्शन 20 से पैंतीस हज़ार रुपये में बेचा जा रहा था. आक्सीजन की कीमत सर चढ़कर बोल रही थी.

ज़िन्दगी भर की कमाई लगाकर लोग अपने रिश्तेदारों को बचाने में लगे थे और अस्पताल उस कमाई को लूटकर मरीजों को मरने के लिए छोड़े दे रहे थे. मरने वालों की तादाद रोजाना बढ़ रही थी और सरकार बता रही थी कि हालात बेहतर हो रहे हैं. न्यूयार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि हिन्दुस्तान में कोरोना से 43 लाख मौतें हुई हैं. 43 लाख मतलब एक महानगर मर गया.

जिन हाथों में हालात को ठीक करने की ज़िम्मेदारी थी वह लूट में लगे थे. पुलिस ने सिर्फ उत्तर प्रदेश में कोविड प्रोटोकाल तोड़ने वालों से जुर्माने की शक्ल में 175 करोड़ रुपये वसूल लिए. पूरे देश में वसूली गई यह रकम कितनी होगी इसका अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है. जुर्माने की शक्ल में वसूली गई यह रकम कहाँ खर्च की जायेगी बताने वाला कोई नहीं है.

हद तो यह है कि अपने रिश्तेदारों की लाशें जलाने के लिए श्मशान आने वालों की कारें नगर निगम की गाड़ी से उठवा ली गईं. लाश जलाकर निकले लोगों ने अपनी गाड़ियों का जुर्माना भरा तब अपने घरों को गए.

मरीजों से लूट में एक तरफ अस्पताल लगे थे तो दूसरी तरफ पुलिस और नगर निगम को लगाया गया था. सरकार बता रही थी कि लॉकडाउन कर दिया है, अब सब ठीक हो रहा है.

कोरोना मरीजों के इलाज के लिए जिन अस्पतालों को दोनों हाथों से लूटने का मौका दिया गया था उनमें से कुछ अस्पताल तो ऐसे हैं जिन पर पहली लहर में मरीजों से बेहिसाब लूट के साथ-साथ उनके अंग निकाल लेने का भी इल्जाम लगा था. इस दूसरी लहर में भी तमाम अस्पतालों पर ज़रूरत से ज्यादा पैसा वसूली का इल्जाम है. सिर्फ लखनऊ में ही छह अस्पतालों पर इसकी एफआईआर दर्ज की गई है.

राजधानी लखनऊ में हरदोई रोड पर एक छोटा सा नर्सिंग होम है. यह अस्पताल इस बार कोविड अस्पतालों की लिस्ट में है. इस अस्पताल में कोविड मरीज़ के बेड का प्रतिदिन का किराया 30 हज़ार रुपये है. रेमडेसिविर इंजेक्शन यहाँ बहुत आसानी से मिल जाता है लेकिन एक इंजेक्शन के बदले 20 हज़ार रुपये अदा करने पड़ते हैं.

इस अस्पताल पर भी मरीजों के रिश्तेदारों से लूट के इल्जाम हैं. यहाँ के डॉक्टरों की लूट में पुलिस के कुछ दरोगा भी मदद करते हैं. जो रिश्तेदार यह इल्जाम लगाता है कि ज्यादा पैसे मांगे जा रहे हैं उससे आगे की बात एक दरोगा करता है. वह एफआईआर दर्ज करने की धमकी देता है.

ऐसे अस्पतालों की तादाद बहुत बड़ी है जो मरीजों को तब तक अपने पास रखते हैं जब तक कि उनके रिश्तेदार दोनों हाथों से पैसा लुटा सकें. जब मरीज़ की मौत तय हो जाती है तब यह अस्पताल हाथ खड़े कर देते हैं और किसी बड़े अस्पताल में ले जाने की बात कह देते हैं. इसके बाद की लूट बड़े अस्पताल करते हैं.

इंटरनेट पर ऐसे सैकड़ों आडियो मौजूद हैं जिसमें कोरोना मरीजों के रिश्तेदारों को इलाज का रेट बताया जा रहा है. एक आडियो में अस्पताल का मालिक एडवांस में 20 लाख रुपये जमा करने को कहता है. वह मरीज़ का दस दिन का खर्च तेरह लाख रुपये बताता है.

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कई अस्पतालों ने मुंहमांगे पैसे लेकर मरीज़ को भर्ती किया और बदले में रिश्तेदारों को लाश थमाई. बीते कुछ महीनों में कोरोना से जंग के बीच सौदागरों की मंडी नज़र आयी है. अस्पताल में भर्ती से लेकर मरीज़ के बाहर आने तक सिर्फ सौदे होते नज़र आये हैं. सरकारी बुलेटिन बता रहे हैं कि कोरोना पर काबू पा लिया गया है. हालात तेज़ी से सुधर रहे हैं. भर्ती होने वालों से ज्यादा ठीक होकर लोग बाहर निकल रहे हैं. सब कुछ आंकड़ेबाजी का खेल बन चुका है मगर आंकड़ेबाज़ी में जो एक चीज़ नहीं बदल पा रही है वह मौतों की तादाद. तीन-चार हज़ार लोग रोज़ मर ही जाते हैं. ज़िम्मेदारों के लिए यह आंकड़े हैं मगर जिन घरों के चिराग गुल हो रहे हैं उन घरों में तो रौशनी की उम्मीद भी खत्म हुई जा रही है.

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