विवेक अवस्थी
समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए आने वाले दिन और अधिक अशांत होने वाले हैं, क्योंकि अटकलें तेज हैं कि उसके दो और राज्यसभा सांसद पार्टी से इस्तीफा देने और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने के लिए तैयार हैं।
कानपुर के रहने वाले चौधरी सुखराम सिंह यादव और बांदा से विशंभर प्रसाद निषाद, सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के वफादार माने जाते रहे हैं , फिलहाल ये दोनो ही अखिलेश यादव के नेतृत्व से नाखुश हैं और कहा जाता है कि वे भी जल्द ही समाजवादी जहाज से कूदेंगे।
यादव और निषाद को 5 जुलाई, 2016 को संसद के उच्च सदन में नामांकित किया गया था और 4 जुलाई, 2022 को उनका कार्यकाल समाप्त होने वाला है।
12 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव और 2022 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए यादव और निषाद नेता को अपने पाले में करना भगवा पार्टी के लिए निश्चित रूप से फायदेमंद होगा। यह राज्य में वोटों की सोशल इंजीनियरिंग में पार्टी की मदद करेगा।
सूत्रों के अनुसार, यादव और निषाद दोनों ने दिल्ली में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ कई बैठकें की हैं और यह आने वाले कुछ दिनों में ही हो सकता है कि पहले वे इस्तीफा दे और फिर भगवा ब्रिगेड में शामिल हों जाएं ।
यूपी से राज्यसभा सदस्य मनोनीत करने के मामले में फिलहाल भाजपा बहुत मजबूत विकेट पर है। राज्य में अपनी वर्तमान ताकत के साथ, पार्टी को कम से कम 10 सीटें मिलना निश्चित है, और 2022 में खाली होने वाली कुल 12 सीटों में से 11 सीटें फिलहाल उसके पास नहीं थी ।
दूसरी ओर, यह समाजवादी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका होगा, जिसने राज्य में अपने नेताओं के बड़े पैमाने पर पलायन को देखा है। समाजवादी पार्टी के 14 राज्यसभा सांसद थे, लेकिन अमर सिंह के दलबदल के बाद से इसकी संख्या लगातार कम होती गई।
अमर सिंह, जो पहले अपने नाम के आगे “चौकीदार” लगाते थे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की खुलेआम प्रशंसा करते देखे गए। यहां तक कि उन्होंने रामपुर से भाजपा की लोकसभा उम्मीदवार जया प्रदा के लिए प्रचार किया।
समाजवादी खेमे को बड़ा झटका देने वाले दिवंगत प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर थे, वह बलिया से 2019 के लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए पार्टी के टिकट से वंचित होने के कारण अखिलेश यादव से नाराज थे।
दलबदल की इस कड़ी को बढ़ाने में गुर्जर नेता सुरिंदर नागर और पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष संजय सेठ भी शामिल थे। सेठ मध्य उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख बिल्डर हैं और कहा जाता है कि वह पिता-पुत्र की जोड़ी के करीबी थे।
राज्य सभा में समाजवादी पार्टी अब केवल 10 सदस्यों के साथ बची है और दो और नेताओं के इस्तीफे हुए तो इसकी ताकत घटकर सिर्फ आठ रह जाएगी। वास्तव में, समाजवादी पार्टी के भीतर सभी जानते हैं कि अपनी कमजोर ताकत के की वजह से पार्टी 2022 में एक या अधिकतम दो नेताओं को उच्च सदन में भेजने की स्थिति में होगी ।
हालांकि सपा के पास प्रत्याशियों की एक लंबी सूची है जिसमे राम गोपाल यादव, जया बच्चन, बेनी प्रसाद वर्मा, तज़ीन फ़ातमा और रेवती रमन सिंह शामिल हैं ।
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इनके साथ ही मुलायम परिवार के कई राजनेता, जो 2019 में लोकसभा चुनाव हार गए थे अब राज्यसभा की सीट पर उत्सुक होंगे जिनमे अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव और चचेरे भाई, धर्मेंद्र यादव और अक्षय यादव है ।
जबकि राज्यसभा बर्थ के लिए कई दावेदार हैं, पार्टी उच्च सदन में सिर्फ एक सदस्य को नामित करने की स्थिति में है। और इस अकेली बर्थ के लिए, पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए सिर्फ एक व्यक्ति का नाम रखना एक कठिन कदम होगा। स्थिति उसके लिए एक गोल छेद में एक चौकोर खूंटी को फिट करने की तरह है।
(विवेक अवस्थी बिजनेस टेलीविजन इंडिया के वरिष्ठ राजनीतिक संपादक हैं)
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