Tuesday - 29 October 2024 - 5:05 PM

‘एनआरसी भविष्य के लिए एक आधार दस्तावेज’

न्यूज डेस्क

असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की मौजूदा कवायद को लेकर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने बड़ा बयान दिया है। यदि यह कहें कि उन्होंने एनआरसी का जोरदार बचाव किया है तो गलत नहीं होगा।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि भविष्य के लिए एनआरसी एक आधार दस्तावेज होगा। उन्होंने कहा कि इससे पहले असम में अवैध प्रवासियों की संख्या को लेकर ‘अनुमान’  लगाया जाता था जिससे भय, घबराहट और हिंसा तथा अराजकता के दुष्चक्र को बल मिलता था।
गौरतलब है कि जस्टिस गोगोई उच्चतम न्यायालय की उस पीठ के अध्यक्ष हैं जो असम में एनआरसी की प्रक्रिया की निगरानी कर रही है।

जस्टिस गोगोई ने एनआरसी का विरोध करने वालों पर भी निशाना साधा और कहा कि ऐसे लोगों को जमीनी हकीकत की जानकारी नहीं है। ऐसे लोग न केवल जमीनी हकीकत से दूर हैं, बल्कि विकृत तस्वीर भी पेश करते हैं। इसी वजह से असम और उसके विकास का एजेंडा प्रभावित हुआ है।

गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश गोगोई असम के ही रहने वाले हैं। एनआरसी पर उन्होंने कहा कि एनआरसी का विचार कोई नया नहीं है, क्योंकि 1951 में ही इसका जिक्र किया गया था। मौजूदा कवायद 1951 की एनआरसी को अपडेट करने का एक प्रयास है।

जस्टिस गोगोई ने यह बातें वरिष्ठ पत्रकार मृणाल तालुकदार की किताब ‘पोस्ट कोलोनियल असम (1947-2019)’ के विमोचन के मौके पर कही।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि, ‘एनआरसी विवादों के बिना नहीं है। मैं इस मौके पर स्पष्ट कर दूं। एनआरसी कोई नया या अनोखा विचार नहीं है। इसका जिक्र 1951 में और खासकर 1985 में हुआ जब असम समझौते पर हस्ताक्षर किया गया। वास्तव में, मौजूदा एनआरसी 1951 की एनआरसी को अपडेट करने का एक प्रयास है।’

मीडिया पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि कुछ मीडिया संस्थानों की लापरवाह और गैर जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग ने स्थिति को और खराब कर दिया। गोगोई ने एनआरसी की तैयारी के लिए विभिन्न समय-सीमाओं को बड़े दिल से स्वीकार करने के लिए असम के नागरिकों की प्रशंसा की।

मालूम हो कि असम में अपडेट की गई अंतिम एनआरसी 31 अगस्त को जारी की गई थी जिसमें 19 लाख से अधिक आवेदकों के नामों को शामिल नहीं किया गया था।

एनआरसी कवायद के बारे में उन्होंने कहा, ‘यह चीजों को उचित परिप्रेक्ष्य में रखने का एक अवसर है। एनआरसी फिलहाल के लिए कोई दस्तावेज नहीं है। 19 लाख या 40 लाख कोई मायने नहीं रखता। यह भविष्य के लिए एक आधार दस्तावेज है। यह ऐसा दस्तावेज है जिसका भविष्य में दावों के लिए उल्लेख किया जा सकता है। यह मेरी समझ में एनआरसी का स्वाभाविक मूल्य है।’

आगे जस्टिस गोगोई ने कहा, ‘इसे बताने और रिकॉर्ड में लाने की जरूरत है कि जिन लोगों ने इन कट ऑफ तारीख सहित आपत्तियों को उठाया है, वे आग से खेल रहे हैं। इस निर्णायक क्षण में हमें यह ध्यान में रखने की जरूरत है कि हमारे राष्ट्रीय संवाद में ‘जमीनी हकीकतों से अनजान टिप्पणीकारों (आर्मचेयर कमेंटेटरों)’ के उद्भव को देखा गया है, जो न केवल जमीनी वास्तविकताओं से दूर हैं, बल्कि बेहद विकृत तस्वीर पेश करना चाहते हैं।’

उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के उद्भव और इसके उपकरणों ने इस तरह के ‘जमीनी हकीकतों से अनजान टिप्पणीकारों’ के इरादे को हवा दी है, जो अपनी दोहरी भाषा के माध्यम से फलते-फूलते हैं।’

जस्टिस गोगोई ने कहा, ‘वे लोकतांत्रिक कामकाज और लोकतांत्रिक संस्थानों के खिलाफ निराधार और दुर्भावना से प्रेरित अभियान चलाते हैं. उन्हें चोट पहुंचाने और उनकी उचित प्रक्रिया को पलटने की कोशिश करते हैं. ये टिप्पणीकार और उनके घृणित इरादे उन स्थितियों में अच्छी तरह से बचे रहते हैं जहां तथ्य नागरिकों से काफी दूर रहते हैं और अफवाह तंत्र फलता-फूलता है. असम और इसके विकास का एजेंडा ऐसे ‘जमीनी हकीकतों से अनजान टिप्पणीकारों’  का शिकार रहा है।’

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लोगों को ‘हर जगह गलतियां और कमियां ढूंढने’ की इच्छा तथा ‘संस्थानों को नीचा दिखाने’ की इच्छा को रोकना चाहिए।

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