Tuesday - 29 October 2024 - 12:15 AM

तो क्या होगा यदि बनारस में उतरी प्रियंका

प्रीति सिंह

एक बार फिर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बनारस से चुनाव लड़ने की इच्छा जतायी है। उन्होंने कहा कि राहुल चाहेंगे तो वह बनारस से चुनाव लड़ेंगी। प्रियंका अब तक तीन बार सार्वजनिक मंच से बोल चुकी है। हालांकि अभी तक कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी या सोनिया गांधी ने इस पर कुछ नहीं कहा है। यहां सवाल उठता है कि क्या सच में प्रियंका बनारस से चुनाव लड़ेंगी या यह सिर्फ प्रियंका का सिर्फ चुनावी पैतरा है।

यह सौ फीसदी सच है कि यदि प्रियंका बनारस से चुनाव लड़ती हैं तो निश्चित ही यह अब तक के चुनाव का सबसे बड़ा मुकाबला होगा। बनारस में उनका मुकाबला पीएम मोदी से होगा। मोदी बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा है तो प्रियंका कांग्रेस का। ऐसे में मुकाबला रोचक होना तय है।

प्रियंका के लड़ने से कांग्रेस को होगा फायदा

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जिस उद्देश्य से प्रियंका को राजनीति में उतारा उसमें वह काफी हद तक सफल है। उनके सक्रिय राजनीति में आने से मृत कांग्रेस जिंदा हो गई है। कार्यकर्ता जोश में है।

प्रियंका भी ताबड़तोड़ रैली कर रही है और कार्यकर्ताओं से मिल रही है। वह कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित कर रही हैं। प्रियंका की अपील काम कर रही है। इसका असर क्षेत्र में दिख भी रहा है। ऐसे में यदि वह बनारस से चुनाव लड़ती हैं तो कांग्रेस को इसका फायदा बनारस के आस-पास की सीटों पर भी हो सकता है।

बनारस में प्रियंका के लिए राह आसान नहीं लेकिन मुश्किल भी नहीं

प्रियंका गांधी के लिए बनारस में जीत का डंका बजाना आसान नहीं होगा। भले ही उनकी रैली या चुनावी सभाओं में भीड़ जुट रही हो, लोग उन्हें सुन रहे हो, लेकिन इन्हें वोट में तब्दील करना आसान नहीं है। यदि वह बनारस से ताल ठोकती हैं और उनके समर्थन में सपा-बसपा गठबंधन अपना प्रत्याशी नहीं उतारती है तो क्या स्थिति होगी आंकड़ों से समझा जा सकता है। लेकिन राजनीति संभावनाओं का खेल है। इसकी बिसात पर कब कौन बाजी मार ले जाए कहा नहीं जा सकता।

2014 के चुनाव में मोदी को कुल 5,81,022 वोट मिले थे और कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय को 75,614 वोट, बीएसपी को 60 हजार 579 वोट और सपा को 45291 वोट मिले थे। अगर कांग्रेस-सपा-बसपा के वोटों का कुल जोड़ निकाला जाए तो यह 1 लाख 80 हजार के करीब बैठता है यानी नरेंद्र मोदी से लगभग 4 लाख वोट कम। हालांकि इसमें केजरीवाल के लगभग 2 लाख 10 हजार वोट शामिल नहीं हैं। अगर इन वोटों को जोड़ भी लिया जाए तो भी प्रधानमंत्री मोदी को मिले वोटों की बराबरी नहीं की जा सकती है।

बड़े नेताओं के लिए टूटा है समीकरण

2014 का चुनाव कांग्रेस विरोध और मोदी लहर के नाम था तब बनारस ने नरेंद्र मोदी को तीन लाख से अधिक वोटों से जिताया। इससे पहले के चुनावों में बीजेपी को इतने बंपर वोट नहीं मिले हैं। लेकिन चुनावों में बड़े नेताओं के लिए समीकरण टूटा है।

बनारस में तकरीबन 15 लाख 32 हजार मतदाता हैं जिनमें लगभग 82 फीसदी हिंदू, 16 फीसदी मुसलमान और बाकी अन्य हैं। हिंदुओं में 12 फीसदी अनुसूचित जाति और एक बड़ा तबका पिछड़ी जाति से संबंध रखने वाले मतदाताओं का है। अगर उम्मीदवार बड़ा राजनेता हो तो समीकरण टूटते हैं। इस बात को एक दूसरे उदाहरण से भी समझा जा सकता है।

2014 में मोदी लहर के बावजूद सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मुलायम सिंह जैसे दिग्गज नेताओं ने जीत दर्ज की है। ऐसे में प्रियंका के लिए भी सकारात्मक सोचा जा सकता है, क्योंकि वह कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा हैं। बनारस में खुद मोदी ने इन बने बनाए आंकड़ों को तोड़ा और उन्हें 2014 में उन्हें 56 फीसदी से अधिक वोट मिला। इसका इसका मतलब है कि उम्मीदवार तगड़ा हो तो जातिगत समीकरण कई बार टूट जाते हैं।

कांग्रेस के लिए नोटबंदी, जीएसटी और एससी/एसटी संशोधन बिल हो सकते हैं कारगर

जातिगत समीकरण की बात करें तो वाराणसी में बनिया मतदाता करीब 3.25 लाख हैं जो कि बीजेपी के कोर वोटर हैं। अगर नोटबंदी और जीएसटी के बाद उपजे गुस्से को कांग्रेस भुनाने में कामयाब होती है तो यह वोट कांग्रेस की ओर खिसक सकता है।

इसके अलावा ढ़ाई लाख के करीब ब्राह्मण मतदाता हैं। माना जाता है कि विश्वनाथ कॉरीडोर बनाने में जिनके घर सबसे ज्यादा हैं उनमें ब्राह्मण ही हैं और इन लोगों में एससी/एसटी संशोधन बिल को लेकर भी नाराजगी है।इस मुद्दे को कांग्रेस भुना पाती है तो निश्चित ही उसके लिए फायदेमंद होगा।

मुस्लिम वोट बैंक का साथ मिले तो हो सकती है नैया पार

वाराणसी में मुस्लिमों की संख्या तीन लाख के आसपास है। यह वर्ग उसी को वोट करता है जो बीजेपी को हरा पाने की कुवत रखता हो। इसके बाद पटेल 2 लाख, भूमिहार 1 लाख 25 हजार, राजपूत 1 लाख, चौरसिया 80 हजार, दलित 80 हजार और अन्य पिछड़ी जातियां 70 हजार हैं। अगर इनके वोट थोड़ा बहुत भी इधर-उधर होते हैं तो सीट का गणित बदल सकता है।

इसके अलावा यादवों की संख्या डेढ़ लाख है। इस सीट पर पिछले कई चुनाव से यादव समाज बीजेपी को ही वोट कर रहा है, लेकिन सपा प्रियंका को समर्थन करती है तो इसमें सेंध लग सकती है। आंकड़ों के इस खेल को देखने के बाद अगर साझेदारी पर बात बनी और जातीय समीकरण ने साथ दिया तो प्रियंका गांधी मोदी को टक्कर दे सकती हैं।

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