पॉलिटिकल डेस्क
रामपुर लोकसभा क्षेत्र उत्तर प्रदेश लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रों में सातवां है। यह जिला कई तरह के उद्योग की वजह से जाना जाता है। यहां के रामपुर राजा पुस्तकालय में 12,000 से ज्यादा दुर्लभ मनुस्मृतियां और मुगल लघु चित्रों का संग्रहालय है। रामपुर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय रामपुर में है। रामपुर अपने रामपुरी चाकू की वजह से काफी प्रसिद्ध है।
मध्यकालीन इतिहास के अनुसार रामपुर दिल्ली का भाग हुआ करता और बदौन व सम्भल से बंटा हुआ था। कठेरिया राजपूतों के द्वारा शासन किये जाने के कारण 4 गावों के समूह का नाम कठार था।
पहले नवाब ने इसका नाम फैजाबाद रखने का प्रस्ताव रखा था मगर इस नाम से कई और नगर होने के नाते इसका नाम मुस्तफाबाद अलियास रामपुर रखा गया। 1775 में नवाब फैजुल्लाह खान ने रामपुर किले की नींव रखी थी और इस तरह रामपुर नगर का निर्माण हुआ। फैजुल्लाह खान से 20 सालों तक यहां शासन किया।
आबादी शिक्षा
रामपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधान सभा क्षेत्र आते हैं जिसमें सुआर, चमरुआ, बिलासपुर, रामपुर और मिलक शामिल है। 2011 की जनगणना के अनुसार रामपुर की कुल आबादी 2,335,398 है जिसमें 52 प्रतिशत पुरुष और 48 प्रतिशत महिलाएं हैं। यहां प्रति 1000 पुरुषों पे 909 महिलाएं हैं।
रामपुर की साक्षरता दर केवल 53.34 प्रतिशत है जिसमें 61.40 प्रतिशत साक्षर पुरुष और 44.44 प्रतिशत साक्षर महिलाएं हैं। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 1,616,972 है जिसमें महिला मतदाता 744,534 और पुरुष मतदाता की संख्या 872,075 है।
राजनीति घटनाक्रम
आजादी के बाद से ही इस सीट की गिनती मुस्लिम बहुल सीटों में से होती रही। 1952 में हुए चुनाव में यहां से कांग्रेस की ओर से डॉ. अबुल कलाम आजाद ने जीत दर्ज की थी। 1952 से लेकर 1971 तक इस सीट पर कांग्रेस ने ही जीत दर्ज की, 1977 में एक बार भारतीय लोकदल के प्रत्याशी यहां से जीते, लेकिन दोबारा कांग्रेस का दबदबा इस सीट पर रहा।
कांग्रेस के जुल्फिकार अली खान ने लगातार तीन बार यहां से चुनाव जीता। जुल्फिकार कुल 5 बार इस सीट से सांसद रहे। 1991 और 1998 में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की। 1998 में मुख्तार अब्बास नकवी यहां से जीते थे।
उसके बाद 2004 और 2009 में समाजवादी पार्टी की तरफ से बॉलीवुड अभिनेत्री जयाप्रदा यहां से सांसद चुनी गई थीं। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव दौरान इस सीट पर कांटे की टक्कर देखने को मिली थी।
बीजेपी के नेपाल सिंह को 37.5 फीसदी और समाजवादी पार्टी के नसीर अहमद खान को 35 फीसदी वोट मिले थे। नेपाल सिंह की जीत का अंतर मात्र 23,435 वोटों का ही था। यहां हुए कुल 16 चुनाव में से दस बार कांग्रेस जीती है।