अभिषेक श्रीवास्तव
मतदान का पहला चरण आ चुका था, लेकिन पूरी काशी को अब भी एक बाज़ीगर का इंतज़ार था। कौन बनेगा बाज़ीगर? कौन खड़ा होगा हारने के लिए और हार कर भी खुद को जीता हुआ बताएगा? पिछली बार ऐसे कई बाजीगर मार्केट में थे। किसी की जमानत ज़ब्त हो गई, तो कोई मुंह काला करवा कर दिल्ली लौट गया। इन सब की नैतिक जीत हुई थी। सबने नैतिक जीत के सामूहिक यज्ञ में अपनी-अपनी कुव्वत के हिसाब से निजी आहुति दी थी।
इस बार हालांकि छटपटाहट थोड़ा अलग सी थी। फासीवाद पांच साल का हो चुका था। अपनी-अपनी ढपली बजाने का वक्त जा चुका था। सब एक-दूसरे का मुंह देख रहे थे। अकेले बड़े लाल सुर्ख सुबह का सपना देख रहे थे।
चेले ने आवाज देकर नींद तोड़ी, ‘’कमरेट, उठबा कि सुतले रहबा? बोटिंग सुरू हो गयल हौ।‘’ बड़े लाल लुंगी संभालते हुए बड़बड़ाए, ‘’हम काहे बोटिंग करब बे? तू जो घाटे…।‘’ चेले ने स्पष्ट किया, ‘’हम कहत हइला कि टीबी देखा, चोनाव सुरू गयल हौ। आज इग्यारह तारीख हौ।‘’
बड़े लाल एक झटके में चादर फेंक कर उठ गए। उन्हें लगा कि ऐतिहासिक भूमिका निभाने का वक्त आ चुका है। उन्हें सन् नब्बे में पार्टी क्लास में पढ़ा रसूल हमज़ातोव का वाक्य याद हो आया। अब अतीत को गाली देने का कोई मतलब नहीं है। आज और अभी जन कार्रवाई करनी होगी वरना भविष्य उन पर गोले बरसाएगा।
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कमरेट ने हबड़-तबड़ में मोबाइल फोन उठाया, कार्यालय सचिव छोटे लाल का नंबर मिलाया। उधर से आवाज़ आयी, ‘’कामरेड महादेव।‘’ बड़े लाल ने बिना किसी भूमिका के आदेश ताना, ‘’मीटिग बुलाओ।‘’ और दिमाग में ऐतिहासिक बदलाव की योजनाएं बनाते हुए निवृत्त होने के लिए सुरती रगड़ने लगे।
छोटे लाल को समझ नहीं आया कि भोरे भोर किस बात की मीटिंग। उसने पूछना मुनासिब नहीं समझा। आखिर स्टेट सेक्रेटेरियट से आए फोन का कुछ तो मतलब होता है। उसने आनन-फानन में भाजपा के बाएं पड़ने वाले सभी उपलब्ध नंबरों पर फोन मिला दिया और बैठक आहूत कर दी। बैठक की अध्यक्षता के लिए बड़े लाल ने विधायकजी को फोन किया।
विधायकजी उस वक्त पार्टी के विधायक रहे जब गूगल नहीं आया था। ये बात अलग है कि विधायकी जाने के बाद बनारस से एमएलए का चुनाव लड़कर वे उस जमाने में भी दूसरे नंबर पर ही रहे थे। ये तब की बात है जब देश में निजी बैंक नहीं आए थे। बाबरी मस्जिद तक दुरुस्त खड़ी थी। उस जमाने में लाल होने की अधिकतम अहर्ता सेकुलर होना नहीं हुई थी। बुजुर्ग विधायकजी वाकई पुराने जमाने के लाल थे। मना कैसे करते। आखिर बड़े दिन बाद स्टेट सेक्रेटेरियट में कोई सजातीय पावर में आया था।
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नियत समय पर शहर के गणमान्य परिवर्तनकामी बुजुर्ग विश्वनाथ गली के सामने पहली मंजिल पर जमा हुए। पार्टी का झंडा नब्बे साल के संघर्ष की धूल फांके हुए अब भी दृश्य था। गोलिया कर सब बैठ गए। ‘’का करे के हौ? काहे बोलवला?” शहर के सबसे बेचैन बुजुर्ग ने पहला सवाल दागा, जिनका वज़न बाकी सब से इसलिए भारी था क्योंकि उनके पास राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत थी। बड़े लाल ने बगैर कोई भूमिका बांधे कहा, ‘’साथी, फासीवाद आ चुका है। अब हम सबको एक होना है। हमारी पार्टी ने तय किया है कि हम एक साझा उम्मीदवार को समर्थन देंगे और अपना प्रत्याशी खड़ा नहीं करेंगे।‘’
पोई की दुकान पर अकसर पाए जाने वाले एक पुराने लोहियाइट ने कहा, ‘’खड़ा कर भी देबा त कवनो फरक न पड़ी।‘’ सब हंस पड़े। अध्यक्षजी ने हस्तक्षेप किया, ‘’तोहार किडि़च-पों करे क आदत न जाई गुरु। चुपचाप सुनबा कि…।‘’ बाकी लोगों ने मन ही मन रिक्त स्थान की पूर्ति कर दी।
काफी थुक्का फजीहत के बाद तय हुआ कि कम से कम आज एक साझा बयान जारी कर दिया जाए। जाहिर है, बैठक पार्टी ने बुलायी है तो बयान भी पार्टी के लेटरहेड पर ही जारी करना होगा। ‘’छोटे लाल, तइ टाइप करा त…‘’, बड़े लाल ने आदेश ताना। ‘’कहां?” सवाल सुनकर बड़े लाल भड़क गए, ‘’अपने कपारे पर…अरे बयान लिखिए, मैं बोल रहा हूं।‘’
छोटे लाल ने मुंह खोला, ‘’कामरेड, ऊ टइपरइटरवा यूएनआइ वाले ले गए, कह रहे थे उनका कंप्यूटर खराब हो गया है अउर दिल्ली से दू साल से पइसवे नहीं आया है। आप बोलिए, हम हाथ से लिख लेंगे।‘’ बड़े लाल ने तकनीक की आस में इधर उधर निगाह घुमायी, सबके पास नोकिया का पुराना वाला बेसिक फोन दिखा। वही उनके पास भी था। अंतत: अध्यक्षजी की अनुमति से खुद बडे लाल ने हस्तलिखित प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी।
अंत में जब सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करने वालों का नाम दर्ज हो रहा था तो छोटे लाल ने टोका, ‘’कामरेड, वो पुरोहित महासभा से फोन आया रहा। बोले हैं उनका नाम भी डाला जाए। ऊ लोग भी मोदी का बिरोध कर रहे हैं।‘’ प्रस्ताव सदन में उछाला गया। सबने एक स्वर में कहा कि इस संकट की घड़ी में जो साथ आए वह स्वागतयोग्य है। विधायकजी ने सूत्रीकरण दिया, ‘’मित्रवत अंतर्विरोधों को हम बाद में सुलझा लेंगे।‘’
विज्ञप्ति का अंतिम पैरा नामों की सूची से थोड़ा लंबा हो गया। कोने में जगह निकालकर बड़े लाल ने एक दस्तखत मारा और छोटे लाल को थमा दिया। छोटे लाल ने अपनी ऊर्जा को बगैर खर्च किए चुपचाप वह प्रेसनोट यूएनआइ वालों को थमा दिया।
अगले दिन अमर उजाला में खबर छपी, ‘’बड़े लाल ने कहा है उनकी पार्टी काशी से अपना प्रत्याशी खड़ा नहीं करेगी।‘’ मामला काशी का था और लाल पार्टी का मुख्यालय दिल्ली में, लेकिन बवाल बेगूसराय में कट गया क्योंकि सारे शीर्ष पदाधिकारी वहीं डेरा डाले हुए थे। बाल पार्टी का टेम्पो वहां हाइ चल रहा था। बाल पार्टी के महासचिव ने लाल पार्टी के महासचिव से कड़ी असहमति जतायी। वह कतई साझा उम्मीदवार बरदाश्त नहीं कर सकती थी। उसने आनन-फानन में वहीं से एक दूरदर्शी बयान जारी किया, ‘’मोदी भले बनारस से लड़ रहे हों लेकिन उनकी हार बेगूसराय में होगी।‘’
बनारस के निर्दोष प्रबुद्ध जन अब तक इस उद्घोष का आशय पकड़ने में लगे हुए हैं।
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं , इस लेख में बनारस की स्थानीय बोली का प्रयोग किया गया है )