Thursday - 31 October 2024 - 11:19 AM

राम के बाद अब बजरंग बली भी हुए सियासी!

प्रीति सिंह

भारतीय राजनीति में भगवान के नाम पर सियासत नई नहीं है। तीन दशक से हर चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा प्रमुखता से उठाया जाता रहा है। इस चुनाव में भी राम मंदिर निर्माण का मुद्दा है। फिलहाल भारतीय राजनीति में एक और भगवान का प्रवेश हो गया है।

कुछ माह पूर्व पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव के दौरान हनुमान जी का आगमन हुआ था। उस चुनाव में नेताओं ने बजरंग बली की जाति पर बड़ा रिसर्च किया था। अब जब देश में लोकसभा चुनाव हो रहा है तो एक बार फिर बजरंग बली सियासत में आ गए हैं। बजरंग बली के नाम पर सियासत जारी है।

भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास के नाम पर चुनाव नहीं लड़ा जाता, बल्कि धर्म, आस्था और भगवान के नाम पर लड़ा जाता है। जिस गति से देश में साक्षरता दर बढ़ रही है उसी दर से चुनावों में भगवान-अल्ला और मंदिर-मस्जिद के मुद्दे बढ़ते जा रहे हैं। चुनावों प्रचार के दौरान मंदिरों में मत्था टेकने से लेकर हवन आदि सामान्य बात हो गई है।

देश की राजनीति इतनी बदल गई है कि बीजेपी को टक्कर देने के लिए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी मंदिर जाने को विवश हो गई। पिछले दो साल में जिन राज्यों में चुनाव हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी उन राज्यों के मंदिरों में माथा टेकना नहीं भूले। राहुल के मंदिर जाने से बीजेपी खेमे में हलचल मच गई थी और बीजेपी राहुल गांधी पर निशाना साधने लगी।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी पिछले दिनों जब उत्तर प्रदेश में अपने चुनाव प्रचार के लिए उतरी तो शुरुआत मंदिर से मत्था टेकने से ही हुआ। इलाहाबाद में गंगा में डुबकी लगाने से लेकर वनारस तक पड़ने वाले सभी बड़े मंदिरों में वह जाना नहीं भूली। वनारस पहुंची तो बाबा भोलेनाथ के दर पर भी मत्था टेकने पहुंची।

मेरठ से शुरु हुई बजरंग बली पर सियासत

इस लोकसभा चुनाव में बजरंग बली की एंट्री भी रोचक है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने मेरठ में जनसभा को संबोधित करते हुए मुसलमानों से अपील की कि बीजेपी को वोट न देकर सपा-बसपा गठबंधन को दें।

फिर क्या, जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 9 अप्रैल को मेरठ में एक जनसभा को संबोधित करने पहुंचे तो गठबंधन पर निशाना साधते हुए कहा कि उनके पास अली है तो हमारे पास बजरंग बली। इस मामले में योगी आदित्यनाथ और मायावती को चुनाव आयोग की नोटिस भी मिल चुकी है।

बजरंग बली पर सियासत यहीं नहीं रूकी। इसे आगे बढ़ाया सपा नेता व रामपुर के उम्मीदार आजम खां ने। उन्होंने तो बजरंग बली और अली पर एक नारा ही दे दिया।

रामपुर में 11 अप्रैल को एक जनसभा को संबोधित करते हुए सपा उम्मीदवार ने कहा कि, ‘मेरा तो दिल कमजोर नहीं हुआ योगी जी। आपने कहा था कि हनुमान जी दलित थे। फिर किसी ने कहा हनुमान जी ठाकुर थे। फिर पता चला कि वे ठाकुर नहीं थे, वे जाट थे। फिर किसी ने कहा कि वे हिंदुस्तान के थे ही नहीं, वे तो श्रीलंका के थे।

एक मुसलमान एमएलसी ने कहा कि हनुमान जी मुसलमान थे। तब जाकर झगड़ा ही खत्म हो गया। अब हम अली और बजरंग एक हैं।’ इसके बाद उन्होंने कहा- ‘बजरंग अली तोड़ दो दुश्मन की नली, बजरंग अली ले लो जालिमों की बलि।’

सियासत में भगवान पर वरिष्ठ पत्रकार सुशील कुमार वर्मा कहते हैं, राजनीतिक दल लोगों की भावनाओं से खेलती है। भारत के लोगों की ईश्वर, धर्म में अगाध आस्था है। नेता उनकी आस्था का ही फायदा उठा रहे हैं। रहा सवाल बीजेपी का तो वह शुरु से मंदिर, राम, हिंदुत्व के नाम पर सियासत करती रही है। चूंकि राम और मंदिर पुराना हो गया है तो अब हनुमान जी को ले आया जा रहा है।

योगी ने पहले हुनमान जी को बताया था दलित

सियासत में हनुमान जी को लाने का श्रेय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जाता है। योगी की गिनती कट्टर हिंदुत्व छवि वाले नेताओं में होती है। वह अक्सर अपने भाषणों में हिंदुत्व, मंदिर, हिंदू-मुस्लिम की बात करते रहते हैं।

अपने आक्रामक भाषण की वजह से ही वह बीजेपी के स्टार प्रचारक भी है। नवंबर-दिंसबर 2018 में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान ही बजरंग बली सियासत में आए। 29 नवंबर 2018 को राजस्थान के अलवर में एक रैली को संबोधित करते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि

‘बजरंगबली एक ऐसे लोक देवता हैं, जो स्वंय वनवासी हैं, निर्वासी हैं, दलित हैं, वंचित हैं। भारतीय समुदाय को उत्तर से लेकर दक्षिण तक पुरब से पश्चिम तक सबको जोड़ने का काम बजरंगबली करते हैं।’ 

फिर क्या था। हनुमान जी की जाति पर विमर्श होने लगा। जितने लोग उतनी बातें। सासंद कीर्ति आजाद ने कहा था हनुमान जी चीनी थे तो बीजेपी सांसद उदित राज ने हनुमान को आदिवासी बताया था। उत्तर प्रदेश के धर्मार्थ कार्य मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने विधान परिषद में बहस के दौरान हनुमान को जाट बताया था।

सबसे अनोखा बयान बीजेपी विधायक बुक्कल नवाब ने दिया था। उन्होंने कहा कि हनुमान मुस्लिम थे, इसलिए मुसलमानों के नाम रहमान, रमजान, फरहान, सुलेमान, सलमान, जिशान, कुर्बान पर रखे जाते हैं।

वोट क्या न करवाये। वोट ने ही लोगों को जाति-धर्म में बांटा और वोट ने मंदिर-मस्जिद को जन्म दिया। लंबे समय से देश की सियासतदान वोट की खातिर समाज को टुकड़ों में बांट रहे हैं और जनता भी उनके मंसूबों का पूरा करने में जी-जान से लगी हुई है।

तीन दशक से हर चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा प्रमुखता से उठा और अब भी है। फिलहाल सियासत में हनुमान जी आ गए हैं। अब देखना होगा वह कब मुद्दा बनते हैं।

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com