पॉलिटिकल डेस्क
संत कबीर नगर यूपी के 75 जिलों में से एक है जिसका प्रशासनिक मुख्यालय खलीलाबाद शहर है। संत कबीर की निर्वाण स्थली ‘मगहर’ इसी क्षेत्र में है। घाघरा और राप्ती के किनारे बसा संत कबीर नगर बस्ती मंडल का हिस्सा है।
यह जिला पूर्व में गोरखपुर, पश्चिम में बस्ती, उत्तर में सिद्धार्थ नगर और दक्षिण में आंबेडकर नगर से घिरा है। 2006 में इस जिले को पंचायती राज मंत्रालय ने देश के 250 पिछड़े जिलों में से एक घोषित किया था।
यह यूपी के 34 जिलों में से एक है जिसे अति पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि के तहत विशेष सहायता मिलती है। संत कबीर नगर हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। यहां मगहर, हैंसार, बखिरा वन अभयारण्य और खलीलाबाद जैसे कई कई पर्यटन स्थल है। ‘मगहरÓ वो भूमि जहां संत कबीर ने अपनी आखिरी सांसे ली।
आबादी/ शिक्षा
इस लोकसभा सीट में उत्तर प्रदेश विधानसभा की पांच सीटें आती है जिसमें अलापुर, घनघटा, मेंहदावल, खलीलाबाद और खजनी शामिल है। इनमे अलापुर, घनघटा और खजनी की विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
2011 की जनगणना के मुताबिक संत कबीर नगर की आबादी 17,15,183 लाख है जिनमें पुरुषों की संख्या 8,69,656 और महिलाओं की संख्या 8,45,527 है।
राज्य का औसत लिंगानुपात 912 की तुलना में यहां प्रति 1000 पुरुषों पर 972 महिलायें है। औसत साक्षरता दर 55.68 प्रतिशत है जिनमें महिलाओं की साक्षरता दर 45.85 प्रतिशत और पुरुषों की आबादी 65.21 प्रतिशत है। कुल आबादी में 21.52 प्रतिशत हिस्सा अनुसूचित जाति और 0.09 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति है।
संत कबीर नगर मुख्य रूप से हिन्दू बाहुल्य क्षेत्र है। यहां की 75.83 प्रतिशत आबादी हिन्दू और 23.58 प्रतिशत आबादी इस्लाम में आस्था रखती है।
राजनीतिक घटनाक्रम
2002 में गठित परिसीमन आयोग की सिफारिश के बाद संत कबीर नगर निर्वाचन क्षेत्र 2008 में अस्तित्व में आया। अस्तित्व में आने के बाद से ही यह सीट सामान्य श्रेणी की रही है।
2009 में यहां हुए पहले आम चुनावों में बहुजन समाज पार्टी के भीमशंकर तिवारी समाजवादी पार्टी के भालचंद्र यादव को लगभग चालीस हजार वोटों से हराकर संत कबीर नगर के पहले सांसद बने।
वर्तमान में यहां से भारतीय जनता पार्टी के शरद त्रिपाठी सांसद है। पहली बार लोकसभा पहुंचे शरद त्रिपाठी सोलहवीं लोकसभा में विदेश मामलों से सम्बन्धी स्थाई समिति के सदस्य है। जहां एक ओर सदन में उपस्थिति का राष्ट्रीय औसत 80 प्रतिशत और राज्य का औसत 86 प्रतिशत है वहीं स्थानीय सांसद की उपस्थिति 98 प्रतिशत है।