भारत में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गोवा सहित कई दक्षिण भारतीय राज्यों में गुड़ी पड़वा पर्व हिन्दू नववर्ष शुरू होने की खुशी में मनाया जाता है।
इस बार गुड़ी पड़वा का पर्व नवरात्रि के साथ ही 6 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस त्योहार को लेकर हिंदू धर्म में मान्यता है, कि इस दिन ब्रह्मा जी ने पूरी सृष्टि की रचना की थी।
इस दिन सबसे पहले ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है। घर के आंगन में रंगोली बनाकर गुड़ी सजाई जाती है और दरवाजे पर आम के पत्तों से बंदनवार सजाते हैं। पूजन के दौरान ब्रह्मा से हाथ जोड़कर निरोगी जीवन, घर में सुख-समृद्धि व धन की प्रार्थना की जाती है।
क्या अर्थ है गुड़ी पड़वा का ?
‘गुड़ी’ शब्द का अर्थ ‘विजय पताका’ और पड़वा का अर्थ प्रतिपदा होता है। यही कारण है कि इस पर्व के दौरान लोग अपने घर में विजय के प्रतीक स्वरूप गुड़ी सजाते हैं।
क्या हैं मान्यतायें ?
इस पर्व से जुड़ी एक मान्यता काफी प्रचलित है. कहा जाता है कि इस दिन शालिवाहन नाम के एक कुम्हार-पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। यही वजह है कि इस दिन से शालिवाहन शक का प्रारंभ भी होता है।
गुड़ी पड़वा से जुड़ी एक मान्यता है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। मान्यता है कि इसी दिन से सतयुग की शुरुआत भी हुई थी।
गुड़ी पड़वा से जुड़ी पौराणिक कथाओं से जुड़ी एक मान्यता है, कि इस दिन प्रभु श्रीराम ने बालि का वध करके दक्षिण भारत में रहने वाले लोगों को उसके आतंक से मुक्त करवाया था। इसके बाद यहां की प्रजा ने खुश होकर अपने घरों में विजय पताका फहराई थी। जिसे गुड़ी के नाम से जाना जाता है।
इस दिन क्या होता है खास ?
इस त्योहार पर नाना-प्रकार के मिष्ठान बनाए जाते हैं। खास बात तो यह है कि गुड़ी पड़वा के दिन महाराष्ट्रीयन परिवारों में श्रीखंड का भोग लगाना अनिवार्य माना जाता है।
इसके अलावा इस दिन कुछ परिवारों में पूरण या गुड़ की रोटी बनाने की प्रथा है। इसके बिना यह त्योहार अधूरा माना जाता है। इस दिन महिला-पुरुष सभी नए परिधान धारण करते हैं।