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1957 में तीन सीटों से अटल ने आजमाई थी किस्मत

 

जुबिली पॉलीटिकल डेस्क

आम चुनाव की शुरुआत से ही कई नेताओं ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा है। ऐसे ही नेताओं में शुमार है पूर्व प्रधानमंत्री व बीजेपी नेता स्व. अटल बिहारी वाजपेयी।

1957 के चुनाव में जनसंघ ने उन्हें तीन सीटों पर उतारा था। इसके अलावा वाजपेयी देश के एकमात्र ऐसे राजनेता हैं, जो चार राज्यों की छह लोकसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी कर चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 1952 से लेकर 2004 तक लोकसभा चुनाव लड़े। इस दौरान उन्होंने कई कीर्तिमान स्थापित किए, लेकिन पांच लोकसभा सीटों पर उन्हें हार का मुंह भी देखना पड़ा था।

वाजपेयी देश के एकमात्र ऐसे राजनेता हैं, जो चार राज्यों की छह लोकसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के लखनऊ और बलरामपुर, गुजरात के गांधीनगर, मध्य प्रदेश के ग्वालियर और विदिशा और दिल्ली की नई दिल्ली संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाले वाजपेयी एकलौते नेता हैं।

पहली बार लखनऊ से उतरे थे मैदान में

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार 1952 में लखनऊ लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में उतरे थे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। कांग्रेस की शिवराजवती नेहरू से जनसंघ से चुनाव लड़ रहे अटल बिहारी वाजपेयी को हार मिली। दिलचस्प बात ये है कि वाजपेयी तीसरे नंबर पर रहे।

1957 में पहली बार हाथ लगी सफलता

1957 का चुनाव वाजपेयी के लिए कई मायनों में रोचक था। वह एक साथ तीन सीट से किस्मत आजमाए। 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। जहां लखनऊ में कांग्रेस के पुलिन बिहारी बनर्जी ने जनसंघ प्रत्याशी अटल बिहारी वाजपेयी को मात दी वहीं मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई।

कांग्रेस से चौधरी दिगंबर सिंह और सोशलिस्ट पार्टी के राजा महेंद्र प्रताप सिंह भी मथुरा से चुनाव लड़ रहे थे। वाजपेयी के समर्थन में पंडित दीनदयाल उपाध्याय और नानाजी देशमुख ने एक दिन में 14-14 सभाएं की। इसके बाद भी अटल बिहारी वाजपेयी हार गए। उन्हें राजा महेंद्र प्रताप सिंह के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा। हालांकि बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे।

1962 में लखनऊ में मिली हार

वाजपेयी तीसरे लोकसभा चुनाव 1962 में लखनऊ सीट से उतरे। कांग्रेस के बीके धॉन से उनका मुकाबला हुआ और यहां भी उन्हें हार मिली। इसके बाद वे राज्यसभा सदस्य चुने गए। इसके बाद 1967 में फिर लोकसभा चुनाव लड़े और लेकिन जीत नहीं सके। इसके बाद 1967 में ही उपचुनाव हुआ, जहां से वे जीतकर सांसद बने।

1971 में पांचवें लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश के ग्वालियर संसदीय सीट से उतरे और जीतकर संसद पहुंचे। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में 1977 और फिर 1980 के मध्यावधि चुनाव में उन्होंने नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

1984 में ग्वालियर में वाजपेयी को सिंधिया के हाथों मिली करारी हार

1984 में अटल बिहारी ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर से लोकसभा चुनाव का पर्चा दाखिल कर दिया और उनके खिलाफ अचानक कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को खड़ा कर दिया, जबकि माधवराव गुना संसदीय क्षेत्र से चुनकर आते थे। सिंधिया से वाजपेयी पौने दो लाख वोटों से हार गए।


बता दें कि अटल बिहारी ने एक बार जिक्र भी किया था कि उन्होंने स्वयं संसद के गलियारे में माधवराव से पूछा था कि वे ग्वालियर से तो चुनाव नहीं लड़ेंगे। माधवराव ने उस समय मना कर दिया था, लेकिन कांग्रेस की रणनीति के तहत अचानक उनका पर्चा दाखिल करा दिया गया।

इस तरह वाजपेयी के पास मौका ही नहीं बचा कि दूसरी जगह से नामांकन दाखिल कर पाते। ऐसे में उन्हें सिंधिया से हार का सामना करना पड़ा।

1991 में लखनऊ और एमपी के विदिशा से लड़े चुनाव

इसके बाद वाजपेयी 1991 के आम चुनाव में लखनऊ और मध्य प्रदेश की विदिशा सीट से चुनाव लड़े और दोनों ही जगह से जीते। बाद में उन्होंने विदिशा सीट छोड़ दी।

वहीं 1996 में हवाला कांड में अपना नाम आने के कारण लालकृष्ण आडवाणी गांधीनगर से चुनाव नहीं लड़े। इस स्थिति में अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ सीट के साथ-साथ गांधीनगर से चुनाव लड़ा और दोनों ही जगहों से जीत हासिल की। इसके बाद से वाजपेयी ने लखनऊ को अपनी कर्मभूमि बना ली। 1998, 1999 और 2004 का लोकसभा चुनाव लखनऊ सीट से जीतकर सांसद बने।

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