प्रीति सिंह
भारतीय राजनीति में पहले गरीबी, विकास सहित कुछ गिने-चुने मुद्दों पर चुनाव होता रहा है। समय बदलनेके साथ इन मुद्दों की जगह जाति धर्म, हिंदू-मुस्लिम, मंदिर ने ले ली। राजनीतिक पार्टियों जनता को जाति-धर्म में बांटकर आराम से अपनी रोटी सेक रही हैं। जनता भी इनके छलावे में पूर्ण रूप से आ चुकी है। वह भी अपनी बुनियादी जरूरतों को भूल जाति-धर्म में फंसकर उनके हाथ की कठपुतली बनी हुई हैं।
देश में प्रदूषण कितनी बड़ी समस्या है। इस समस्या में हर साल इजाफा हो रहा है, लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा। इससे हम सभी दो-चार हो रहे हैं, लेकिन इसे कोई मुद्दा नहीं बना रहा। पर्यावरण मंत्रालय इस दिशा में क्या कर रहा है यह तो वहीं जाने लेकिन बुधवार को जारी एक वैश्विक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2017 में करीब 12 लाख लोगों की असमय मौत हुई। यहां सवाल उठता है कि जब राजनीतिक पार्टियां इंसेफेलाइटिस को मुद्दा बना सकती है तो इसे क्यों नहीं।
स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर, 2019 रिपोर्ट के मुताबिक, लंबे समय तक घर से बाहर रहने या घर में वायु प्रदूषण की वजह से 2017 में स्ट्रोक, मधुमेह, दिल का दौरा, फेफड़े के कैंसर या फेफड़े की पुरानी बीमारियों से पूरी दुनिया में लगभग 50 लाख लोगों की मौत हुई।
रिपोर्ट में बताया गया है, ‘ इनमें से तीस लाख मौतें सीधे तौर पर पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 से जुड़ीं हैं। इनमें से करीब आधे लोगों की मौत भारत व चीन में हुई है। साल 2017 में इन दोनों देशों में 12-12 लाख लोगों की मौत इसी वजह से हुई।’ इसमें बताया गया है कि भारत में स्वास्थ्य संबंधी खतरों से होने वाली मौतों का तीसरा सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण और इसके बाद धूम्रपान है।
इससे पहले ‘द लैंसेट काउंटडाउन: ट्रैकिंग प्रोग्रेस ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेंट चेंज’ की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में घरों के भीतर वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2015 में 1.24 लाख लोगों की असामयिक मौत हुई थी।
रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में अल्ट्राफाइन पीएम 2.5 की मौजूदगी के कारण वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2015 में 5,24,680 लोगों की असामयिक मौत हुई और इन मौतों का सबसे बड़ा कारण घरों के भीतर वायु प्रदूषण है जिसके कारण 1,24,207 लोगों की असामयिक मौत हुई। अन्य स्रोतों में, कोयला बिजली संयंत्रों, परिवहन और उद्योगों के उत्सर्जन के कारण क्रमश: 80,368 लोगों, 88,091 लोगों और 1,24,207 लोगों की मौत हुई।
साल 2017 में यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत सहित दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण से एक साल से कम उम्र के 1.22 करोड़ शिशुओं के मानसिक विकास पर असर पड़ सकता है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यूनिसेफ ने कहा था कि वायु प्रदूषण के संकट से लाखों भारतीय बच्चे प्रभावित हो रहे हैं।
दिल्ली है सबसे प्रदूषित शहर
राजधानी दिल्ली दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची कई बार पहले पायदान पर आ चुकी है। एक बार फिर दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित शहरों में पहले पायदान पर है, जबकि दिल्ली में पूरी सरकार बैठती है। लगाम कसने वाले शीर्ष के सारे अधिकारी यही बैठते हैं, लेकिन यहां की हवा शुद्ध नहीं हुई।
पर्यावरण पर काम करने वाली एनजीओ ग्रीनपीस इंडिया द्वारा किए गए अध्ययन में खुलासा हुआ था कि ग्लोबल एयर पॉल्यूशन 2018 की रिपोर्ट में दिल्ली को दुनिया के 62 प्रदूषित शहरों में पहला स्थान दिया गया है। यह रिपोर्ट मंगलवार को जारी की जायेगी। रिपोर्ट में वायु गुणवत्ता को पीएम 2.5 के संदर्भ में मापा गया है।
इस रिपोर्ट के अनुसार चीन के शहरों की हवा सुधरी है और वहां सुधार देखने को मिला है, लेकिन भारत की हालत में कोई सुधार नहीं है, जबकि यह समस्या आज की नहीं है।
70 लाख लोग असमय मौत के मुंह में चले जायेेंगे
रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण अगले साल तक करीब 70 लाख लोग समय से पहले मौत के मुंह में चले जाएंगे। इसके अलावा इसका अर्थव्यस्था पर भी बड़ा असर पड़ेगा।
दुनिया के 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में है। पिछले साल सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में 10वें नंबर पर लाहौर, 11 नंबर पर दिल्ली और 17वें नंबर पर ढाका है।
राजनीतिक पार्टियां इसे नहीं लेती गंभीरता से
हर साल 12 लाख लोगों की वायु प्रदूषण से मौत विचलित करने वाली है, लेकिन हमारे देश में राजनीतिक दल कोई बात नहीं करते। दरअसल यह सबकी समस्या है, शायद इसीलिए परहेज करते हैं। ये लोग तो जाति-बिरादरी देखकर मुद्दे उठाते हैं। पर्यावरण का मुद्दा उठाने से उन्हें वोट नहीं मिलेगा फिर क्यों इस तरफ सोचे।
नहीं कारगर साबित हुई स्वच्छ भारत मिशन
मई 2014 में सरकार बनने के बाद पीएम मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन बड़े जोर-शोर से शुरु किया था। इस मिशन से देश की जानी मानी हस्तियों को जोड़ा गया लेकिन इसका परिणाम कुछ नहीं निकला। अलबत्ता अरबों रुपए इस मिशन पर बर्बाद जरूर हो गए ।