नदीम एस अख्तर
केंद्र सरकार की भक्ति में आप टीवी पे चाहे कुछ भी दिखा दें या चला दें पर एक सवाल है कि क्या पीएम मोदी और बीजेपी दुबारा सत्ता में आ पाएगी ? चूंकि ये देश बहुत बड़ा है, सो इस सवाल के जवाब के लिए मोटे तौर पर तीन ऐसे मुद्दें हैं जिन पे गौर करना जरूरी है।?
1. क्या किसान नरेंद्र मोदी को वोट देंगे ?
ये बहुत मुश्किल सवाल है पर जवाब उतना ही आसान है। अतीत के पन्ने पलटेंगे तो आप पाएंगे कि किसानों को ना तो अपनी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिला और ना ही कोई और सुविधा सरकार ने उन्हें दी। कर्ज के बोझ से दबे किसान पिछले पांच सालों में आत्महत्याएं करते रहे पर मोदी सरकार ने उनकी सुध तक नहीं ली।
उल्टे देश के कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने एक ऐसा शर्मनाक बयान दिया, जिसने किसानों के जख्मों पे नमक नहीं, पूरी मिर्ची मल दी। कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा कि किसानों की खुदकुशी का कारण प्रेम प्रसंग, दहेज और नपुंसकता जैसे विषय हैं। ये बहुत गंभीरता से सोचने की बात है कि जिस देश का कृषि मंत्री किसानों की जर्जर हालत से हमदर्दी रखने की बजाए उनके बारे में घटिया बयान दे, वो किसानों का दर्द क्या समझेगा और उनके भले के लिए काम क्या करेगा ? आश्चर्य तो ये रहा कि पीएम मोदी ने ये सब सुनने के बावजूद कृषि मंत्री को ना तो डांट पिलाई और ना ही उन्हें अपने पद से हटाया।
अगर कोई विकसित देश होता और कृषि मंत्री देश के किसानों के बारे में ऐसा बेतुका और शर्मनाक बयान देते तो उन पे मुकदमा चलाया जाता। पर सरकार की जी हुजूरी करने में लगे ज्यादातर टीवी चैनल आपको ना कृषि मंत्री का वह शर्मनाक बयान सुनाएंगे और ना ही उस पे कोई प्राइम टाइम बहस कराएंगे। उल्टे सरकार ने किसानों पर जुल्मो-सितम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने आए किसानों को सरकार ने दिल्ली में घुसने तक नहीं दिया। उनको दिल्ली बॉर्डर पर ही रोक दिया गया और बेरहमी से उन पर लाठियां भांजी गईं। लाल बहादुर शात्री के जय जवान, जय किसान- के नारे की धज्जियां उड़ गईं। सरकार के आदेश पे सुरक्षा में लगे पुलिस के जवानों ने ही किसानों पे लाठियां बरसाईं। ये देश का दुर्भाग्य था।
लाचार और निहत्थे किसानों की बात सुनने की बजाय सरकार उन पे डंडे चलवा रही थी। उस दिन दुखी, कुढ़ा हुआ और टूट चुका किसान दिल्ली दरबार से खाली हाथ तो लौट गया पर उसने एक कसम जरूर खायी। वो ये कि अब मोदी सरकार को उखाड़ फेंकेंगे और जान लीजिए कि धरती का सीना चीरकर फसल उगाने वाला किसान जब कोई कसम खाता है ना, तो भगवान भी उनके आगे नतमस्तक हो जाते हैं।
सो अगर ये सवाल पूछा जाता है कि क्या किसान इस बार मोदी सरकार यानी बीजेपी यानी एनडीए को वोट देंगे तो आप क्या कहेंगे? यही कहेंगे ना कि नहीं देंगे! तो फिर 2019 में बीजेपी के साथ यही होने वाला है। अब चुनाव सिर पर हैं तो बीजेपी चाहे लाख किसानों की चौखट पे जाकर नाक रगड़ ले पर किसानों ने फैसला कर लिया है। जब सरकार की चौखट से किसान बेइज्जत होकर दिल्ली से लौटा था, उसी दिन उसने प्रण कर लिया था कि मोदी सरकार के दिन पूरे हुए। चुनाव नतीजे आने दीजिए, किसानों का गुस्सा आपको दिख जाएगा।
2. क्या छोटे और मंझोले व्यापारी बीजेपी को वोट देंगे ?
इसका जवाब भी बहुत आसान है। नहीं देंगे। वैसे पब्लिक का ध्यान दाल-रोटी से हटाने के लिए दरबारी बन चुके ज्यादातर न्यूज चैनल्स दिन रात ये कोशिश कर रहे हैं कि जनसरोकार की बहस का रुख हिन्दू-मुसलमान और पाकिस्तान की तरफ मोड़कर इसे साम्प्रदायिक रंग दे दिया जाए पर जनता चुपचाप सब देख रही है। केंद्र सरकार और दरबारी अखबारों-चैनलों की कोशिश है कि जनता नोटबन्दी को भूल जाए। पर नोटबंदी के चलते जिन-जिनके पेट पे लात पड़ी है, वो इसे कैसे भूल सकता है भला !
मोदी सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के ऐतराज के बावजूद नोटबन्दी करके इस देश की जीडीपी को दो फीसद से ज्यादा नीचे गिरा दिया। इसका मतलब ये हुआ कि करोड़ों की तादाद में असंगठित क्षेत्र के मजदूर ना सिर्फ बेरोजगार हुए, बल्कि शहरों में काम ना होने की वजह से गांव लौट गए। उनके घर का चूल्हा बुझ गया। इधर छोटे और मंझोले व्यापारियों का धंधा चौपट हो गया। उनका ज्यादातर धंधा कैश पर चलता था, बाजार से कैश सूख गया, तो धंधा भी ढल गया। ऊपर से गलत तरीके से लाई गई जीएसटी ने कोढ़ में खाज का काम किया। व्यापारी इसी जद्दोजहद में लगे रहे कि जीएसटी कैसे भरें, सरकार ने बदल के फिर नई दर क्या कर दी और तमाम तरह के टंटे। व्यापारी खून के आंसू रोए. वे मोदी सरकार से कितने नाराज हैं जिसका अंदाजा भी कइयों को नहीं। उनको राज्य सरकारों से शिकायत नहीं, मोदी सरकार से है।
उनके सपने में दो ही चीजें आती हैं, जिसके बाद घबराकर वो नींद से जग जाते हैं। एक नोटबन्दी और दूसरा जीएसटी। वे धंधा पानी बन्द करके हिमालय जाना चाहते हैं ताकि दुनियादारी से पिंड छूटे। पर जाने से पहले वे एक बार वोट जरूर देना चाहते हैं ताकि देश के विद्वान ‘अर्थशास्त्री’ और गुणी वित्त मंत्री अरुण जेटली व मोदी सरकार को सबक सिखा सकें। उनका इंतह्लार खत्म हुआ, चुनाव की घड़ी आ गयी। वे वोट देने निकलेंगे और बता देंगे कि वे व्यापारी हैं और व्यापार में धोखा बर्दाश्त नहीं किया जाता। मोदी जी ने गलत तरीके से नोटबंदी और जीएसटी लगा के जिस तरह उनका धंधा चौपट किया है, वे भी बीजेपी को सब कुछ सूद समेत वापस करना चाहते हैं।
3. क्या युवा मोदी जी को वोट देगा?
इसका भी सीधा, सरल और सपाट सा जवाब है, नहीं देगा। क्यों? तो कारण सबको पता है। मोदी जी ने भ्रष्टाचार हटाने, कला धन लाने और हर साल लाखों रोजगार पैदा करने का वादा किया था। इससे 2014 में युवा उनके प्रति आकर्षित हुए, बीजेपी को वोट दिया पर मोदी जी ने काम एकदम इसके उलट किया।
भ्रष्टाचार तो हटा नहीं, उल्टे राफेल खरीद और नीरव मोदी-विजय माल्या कांड ने मोदी सरकार की छवि को इस कदर नुकसान पहुंचाया कि इसकी भरपाई नहीं हो सकती। युवा इससे बिदका हुआ है। काला धन क्या वापस आएगा, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की संपत्ति ही सरकार में आने के बाद तीन गुनी हो गयी। उनके बेटे का व्यापार भी अप्रत्याशित तरीके से बढ़ गया। इस पे मीडिया में खबरें भी आईं।
देश में जो कुछ हो रहा है, उसकी मलाई खाने का हक सिर्फ बड़े उद्योगपतियों को मिला। नोटबन्दी ने कैश की बजाय ऑनलाइन ट्रांजैक्शन करने वाली कम्पनियों का धंधा चमका दिया। देश का पैसा लेकर भाग रहे विजय माल्या पहले देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली से मिले और फिर आराम से हवाई जहाज में बैठकर रफूचक्कर हो गए। सरकार और उसकी एजेंसियां मुंह ताकती रह गईं। इन सब घटनाओं से देश के युवाओं में बेचैनी है। उसे समझ नहीं आ रहा कि इस देश में उनका भविष्य क्या है? देश अगर रसातल में जाता है तो उनकी आगे की पूरी जिंदगी बर्बाद है। ऊपर से बेरोजगारी ने उनकी कमर तोड़ रखी है।
चपरासी के पद के लिए पीएचडी और इंजीनियरिंग की डिग्री वाले युवा आवेदन दे रहे हैं। ऊपर से प्रधानसेवक कहते हैं कि पकौड़े तलो। ये भी एक रोजगार है। अब युवाओं को ये समझ नहीं आ रहा कि जब उन्हें पकौड़े तल के ही रोजी रोटी चलानी थी तो इतना पढ़े-लिखे काहे ? सरकारी नौकरी है नहीं, नोटबन्दी ने जीडीपी को पीछे धकेल दिया तो नई नौकरियां बनी नहीं।
प्राइवेट सेक्टर कराह रहा है और छंटनी कर रहा है। सो नौकरी कर रहा युवा भी बेरोजगार हो रहा है। कुल मिलाकर युवाओं की नाराजगी मोदी सरकार को महंगी पड़ेगी । वे सिर्फ बोलते रहे, जमीन पे कोई काम दिखा नहीं। सिर्फ स्किल इंडिया और मेक-इन-इंडिया का शोर रहा। इससे देश के युवाओं में घोर निराशा है. ऐसा लग रहा है कि इस बार युवा बड़ी तादाद में वोट देने निकलेंगे। इस उम्मीद में कि अगली सरकार उद्योगपतियों को छोड़कर शायद उनकी सुध ले। यानी ज्यादातर युवा सरकार बदलने के पक्ष में दिख रहे हैं।
ऊपर मैंने मोटे तौर पे जो तीन श्रेणियां बताई हैं, इनके अंदर भी कई उप श्रेणियां हैं जो अलग-अलग वजहों से मोदी सरकार से नाराज हैं। तो जरा सोचिए कि अगर इतनी बड़ी तादाद में जनता मोदी सरकार के खिलाफ वोट देगी तो टीवी पे लाख तमाशों और इंडिया शाइनिंग दिखाने के बावजूद क्या मोदी सरकार दुबारा सत्ता में आ पाएगी? मुझे तो मुश्किल दिखता है।
जमीन पे जाकर लोगों से बात कीजिये। आपको सच्चाई पता चल जाएगी। यहां तक कि बीजेपी के कार्यकर्ता और पदाधिकारी भी पार्टी से नाराज हैं। संगठन में उन्हें पूछने वाला कोई नहीं। पार्टी में पूरा दिल्ली दरबार कल्चर बन गया है। पार्टी अध्यक्ष से मिलने का टाइम लेते-लेते कार्यकर्ताओं के पसीने छूट जाते हैं। सो हताश कार्यकर्ता जमीन पे मेहनत नहीं करेगा, ऐसा लगता है। हालांकि संघ का कैडर इस खाई को थोड़ा पाटेगा पर बीजेपी कार्यकर्ताओं में ऊर्जा कम हुई है। लब्बोलुबाब ये है कि नरेंद्र मोदी की दुबारा सत्ता में वापसी मुश्किल राह है। कम से कम मुझे तो यही दिखता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये इनके निजी विचार हैं )