के.पी. सिंह
लखनऊ। जून 1995 के लखनऊ के चर्चित गेस्ट हाउस कांड की मनहूस छाया से सपा के मुखिया अखिलेश यादव को बच- बच कर चलना पड़ रहा है। गठबंधन सहेजे रखने के लिए यह कितना जरूरी है अखिलेश इसको जानते हैं। पार्टी के कददावर नेता और राज्य सभा के सदस्य चंद्रपाल यादव के टिकट को मंजूरी देना उन्होंने प्रोफेसर साहब की तगड़ी सिफारिश के बावजूद गंवारा नही किया।
गेस्ट हाउस कांड हकीकत या प्रायोजित
2 जून 1995 को लखनऊ के मीराबाई गेस्ट हाउस में बसपा विधायक दल की बैठक मुलायम सिंह सरकार से समर्थन वापसी के लिए हो रही थी। इसी बीच सपा समर्थक वहां पहुंच गये और उन्होनें बसपा के विधायकों से झूमाझटकी की।
कहा तो यह जाता है कि मायावती उनका तांडव देखकर गेस्ट हाउस के कमरे में बंद हो गई थीं। फिर भी उन पर जानलेवा हमले की कोशिश की गई थी। इसके बाद क्या हुआ यह इतिहास सभी की जानकारी में है।
गेस्ट हाउस कांड की वास्तविकता को लेकर विवाद चलता रहा है। सपा के हमदर्दों का कहना है कि बसपा के कुछ विधायकों ने पैसा लेकर मुलायम सिंह को समर्थन देने का वायदा कर रखा था। लेकिन वे लोग भी पार्टी की बैठक में पहुंच गये जिसमें समर्थन वापसी का फैसला लिया जा रहा था।
इससे बौखलाये सपा समर्थक उन विधायकों को तलाशने गेस्ट हाउस में पहुंचे थे। भाजपा ने हमेशा के लिए सपा-बसपा गठबंधन तोड़ने को इसे तूल दे दिया। हालांकि मायावती अभी भी यही मानती है कि उस दिन उनकी खुश किस्मती रही जिससे उनके साथ कोई अनहोनी नही हो पाई।
अफसोस जाहिर न करने के बावजूद सजग है सपा नेतृत्व
गेस्ट हाउस कांड को लेकर सपा ने भी अभी तक कोई माफी मांगने या अफसोस जाहिर करने का कदम नही उठाया है। लेकिन इस पार्टी का नेतृत्व गेस्ट हाउस कांड की यादों से गठबंधन चोटिल न होने पाये इस ख्याल को लेकर बेहद सजग है।
झांसी-ललितपुर सीट गठबंधन में सपा के हवाले की गई है। इस सीट के लिए सपा में प्रत्याशिता के सबसे बड़े दावेदार चंद्रपाल सिंह यादव हैं। जिनका राज्य सभा सदस्य के रूप में कार्यकाल 25 नवंबर 2020 को समाप्त होने जा रहा है।
आसान नही था चंद्रपाल को दरकिनार करना
चंद्रपाल सिंह की मंशा को दरकिनार करना आसान नही था। इसीलिए झांसी-ललितपुर संसदीय सीट पर प्रत्याशी चयन में इतना विलंब हुआ। चंद्रपाल सिंह छात्र जीवन से ही सपा के संस्थापक मुलायम सिंह के सबसे चहेते लोगों में रहे हैं।
राजनीति की शुरूआत में चंद्रपाल सिंह को ब्लाक प्रमुख चुनाव के समय एसडीएम के साथ मारपीट के आरोप में रासुका में निरुद्ध कर दिया गया था। इस पर मुलायम सिंह ने बड़ा आंदोलन खड़ा करके वीर बहादुर सिंह सरकार को हिला दिया था। आखिर में सरकार को चंद्रपाल के खिलाफ रासुका वापस लेनी पड़ी थी।
मुलायम सिंह के सबसे दुलारे रहे चंद्रपाल
1989 में जनता दल का भाजपा से गठबंधन मुलायम सिंह के चंद्रपाल मोह के कारण खतरे में पड़ गया था। गरौठा विधानसभा की सीट पर सभी मानकों से भाजपा का अधिकार सिद्ध हो रहा था। लेकिन मुलायम सिंह ने कहा कि चाहे गठबंधन रहे या टूट जाये इस सीट पर उनकी ओर से चंद्रपाल चुनाव जरूर लड़ेगें।
चुनाव के पहले ही कांग्रेस को सत्ता से हटाने का मंसूबा मुलायम सिंह की जिद के कारण लड़खडाता देख जनता दल नेतृत्व की हवाईयां उड़ गईं थीं। बाद में जनता दल के शीर्ष नेताओं ने भाजपा नेताओं के हाथ-पैर जोड़े जिसके बाद गरौठा में जनता दल और भाजपा के उम्मीदवारों के बीच मित्रतापूर्ण मुकाबले का फार्मूला मंजूर हुआ, तब कही जाकर गठबंधन बच पाया। हालांकि तब चंद्रपाल सिंह यादव को इस सीट पर मात्र पांच हजार वोट मिल पाये थे।
पूरे बुंदेलखंड का बनाया था सरताज
इसके बाद भी मुलायम सिंह को न तो कोई अफसोस हुआ और न कोई शर्मिंदगी। इसके उलट चंद्रपाल सिंह की पूरे बुंदेलखंड में सूबेदारी स्थापित करने के लिए झांसी की जनसभा में पहुंचकर वे उन्हें इस अंचल का मिनी मुख्यमंत्री सार्वजनिक रूप से घोषित कर गये।
1993 में जब समाजवादी पार्टी बनी तो तमाम सीनियर सोशलिस्ट सहयोगियों को दरकिनार कर मुलायम ने उन्हें अपनी नई पार्टी का कोषाध्यक्ष नियुक्त कर दिया। जिससे रातों-रात उनका कद राष्ट्रीय स्तर का हो गया। बाद में वे समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बनाये गये।
अंदाजा लगाया जा सकता है कि चंद्रपाल सिंह यादव की इच्छा को ठुकराना अखिलेश के लिए कितना भारी रहा होगा। एक ओर तो प्रोफेसर रामगोपाल यादव की अवहेलना उन्हें करनी पड़ी। दूसरी ओर इस फैसले से नेता जी के नाराज होने की आशंका को भी उन्हें नजर अंदाज करना पड़ा।
सपा के हिस्से की सीटों में भी बसपा का दखल
समाजवादी पार्टी के हिस्से की सीटों में भी बसपा सुप्रीमों मायावती का वीटो चल रहा है। इसीलिए न केवल चंद्रपाल को टिकट नही मिल पाया बल्कि उनके द्वारा विकल्प में सुझाये गये पूर्व विधायक दीपनारायण यादव का नाम भी मंजूर नही किया गया। मायावती के संकेत के कारण ही श्याम सुंदर पारीक्षा के नाम पर टिकट के लिए अखिलेश ने मुहर लगाई। जिनका चंद्रपाल से 36 का आंकड़ा सर्वविदित है।
इसी तरह उन्नाव में पार्टी के दिग्गजों को दरकिनार कर अखिलेश ने पूजा पाल को उम्मीदवार बनाया है। क्योंकि बुआ जी ने उन पर इसके लिए दबाव डाला था। गौरतलब है कि पूजा पाल दो बार बसपा के टिकट पर प्रयागराज से विधायक रहीं हैं। इसके पहले उनके पति राजू पाल बसपा से विधायक चुने गये थे। जिनकी हत्या का आरोप पूर्व सांसद अतीक अहमद पर लगाया गया था।
यह संयोग है कि अतीक अहमद उस समय न केवल सपा में थे बल्कि वे भी गेस्ट हाउस कांड के आरोपित थे। गेस्ट हाउस कांड के खलनायकों को दंडित करने का मतलब है कि अखिलेश यादव बसपा के साथ गठबंधन को तात्कालिक तौर पर ही सीमित नही रखना चाहते बल्कि वे चाहते है कि यह गठबंधन दूर तक चलता रहे।
इकतरफा नही लिहाज
उम्मीदवारों के चयन में अखिलेश द्वारा मायावती का लिहाज इकतरफा नही है। मायावती ने भी अखिलेश की मंशा की उपेक्षा नही होने दी। जालौन-गरौठा-भोगिनीपुर संसदीय क्षेत्र में मायावती ने पहले पूर्व सांसद घनश्याम अनुरागी की उम्मीदवारी की घोषणा कर दी थी। लेकिन अखिलेश यादव की जबर्दस्त अनिच्छा की वजह से ही उन्हें अपना यह फैसला वापस लेना पड़ा।