उत्कर्ष सिन्हा
चौकीदार चोर है के नारे पर नरेंद्र मोदी आक्रामक हो चले हैं। ठीक वैसे ही जैसे 5 साल पहले चाय वाले विशेषण पर हुए थे। तब उन्होंने चाय वालों से खूब बात की और भाजपा ने गली निक्कड़ पर “चाय पर चर्चा” नाम से आयोजनों की झड़ी लगा दी। इस बार चाय वाले की जगह चौकीदार ने ले ली है।
बुधवार को मोदी ने देश के 25 लाख चौकीदारों से वीडियो के जरिये संवाद किया। मीडिया में भी इस पर चर्चा खूब हुई , तो भला सड़क किनारे की चटिया इस चर्चा से कैसे अछूती रहती , सो वहां भी चर्चा जोरो पर थी।
लेकिन इसी चर्चा के बीच कुछ लोगो के चेहरे पर उदासी भी है। चौकीदार को सम्मान मिलने के तर्क भी इस उदासी को दूर नहीं कर पा रहे। ये लोग असली चौकीदार थे। बैंको के एटीएम की पहरेदारी करने वाले गार्ड। फिलहाल ये सारे बेरोजगार है क्यूंकि अपना खर्चा काम करने की मुहीम में बैंको से करीब करीब सभी एटीएम के बाहर से चौकीदारों को हटाने का फरमान जारी कर दिया है।
इस बात की तस्दीक बैंक के अफसर भी करते हैं। आल इंडिया बैंक आफिसर्स कन्फेडरेशन यानी आईबॉक के पदाधिकारी सौरभ श्रीवास्तव बताते हैं की बीते दिनों कई राष्ट्रीय बैंको ने यह फैसला किया है कि वे अपने गार्डो की संख्या में बड़ी कटौती करेंगे।
गार्डो की नौकरिया ख़त्म करने वाले बैंको में स्टेट बैंक आफ इण्डिया , यूनियन बैंक , देना बैंक और बैंक आफ इंडिया आगे हैं। इन बैंको ने तो अपने कई ब्रांचो से भी गार्ड की नौकरी ख़त्म कर दी है।
एक बैंक अधिकारी इस फैसले का बचाव करते हुए कहते हैं – “असल में हमने रिस्क की रेटिंग की है और उस हिसाब से गार्डो की कटौती की है। ” सीसीटीवी कैमरा होना भी गार्ड हटाने का एक दूसरा तर्क है।
महज 2 महीने पहले तक 15 हजार महीने की नौकरी करने वाले ये गार्ड फिलहाल दूसरी नौकरियों की तलाश में हैं या चुपचाप अपने घर वापस चले गए हैं। ये लोग इतने सक्षम नहीं हैं कि वे खुद का कारोबार कर सकें।
नौकरी खोने वाले गिरीश पाठक भी इनमे से एक हैं। फिलहाल वे लखनऊ के एक पाश इलाके में किरणे की दूकान पर 7 हजार में सेल्समैन की नौकरी कर रहे हैं। गिरीश कहते हैं – एक झटके में मेरी आमदनी आधी हो गयी. बेटी की फीस भरना भी मुश्किल है , कमरे का किराया भी , इसलिए परिवार को गाँव भेज दिया है. और चारा भी क्या है ? गिरीश पाठक का ये सवाल प्रधानमंत्री तक शायद नहीं पहुंचेगा।
सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइ) की रिपोर्ट बताती है कि बीते 2018 में भारत में भारत में करीब 1.10 करोड़ लोगों ने नौकरियां गवां दी हैं . सीएमआइइ की रिपोर्ट कहती है कि दिसंबर 2018 में देश में रोजगार का आंकड़ा 397 मिलियन था जबकि एक साल पहले दिसंबर 2017 में यह आंकड़ा 407.9 मिलियन था. इस लिहाज से देश में नौकरियों की संख्या में 10.9 मिलियन की कमी आयी है.
बैंको में गार्ड की नौकरी करने वाले भी इन्ही में से एक है। सामाजिक अर्थशास्त्री डॉ. योगेश बंधू कहते हैं कि गर्व की राजनीती से इन गार्डो के दर्द को ढंकने की कोशिश की जा रहे है। कुछ ऐसा ही चायवालों के साथ भी हुआ था। चुनावो के वक्त चाय वाले महत्वपूर्ण थे मगर चुनावो के बाद स्मार्ट सिटी बनाने की प्रक्रिया में ये भी शिकार बन गए।सडको के किनारो और नुक्कड़ों की चाय के खोखे नो वेंडिंग जोन से बाहर कर दिए गए।
नरेंद्र मोदी को समझने वाले ये बखूबी जानते हैं कि वे प्रतीकों का बखूबी इस्तेमाल करने के माहिर हैं। फिलहाल चौकीदार एक प्रतीक है उससे ज्यादा कुछ नहीं। निर्मम राजनीति के दौर में भावना की जगह नहीं होती, भावनात्मक राजनीति के दौर में नौकरियां चुनावी मुद्दा बन सकेंगी ये सवाल शायद बैंको से बाहर हुए चौकीदारों के मन में भी होगा।