लखनऊ डेस्क। देशभर में होली के त्योहार को लेकर हर्षौल्लास का माहौल है। गुरुवार को लोग रंगोत्सव में सराबोर नजर आएंगे। वहीं भद्रा के अधिक समय रहने के कारण इस बार होलिका दहन बुधवार की रात्रि नौ बजे के बाद हो सकेगा। बता दें कि ज्योतिषाचार्य पं. उपेन्द्र तिवारी के अनुसार, होलिका दहन का मुहूर्त किसी भी त्योहार के मुहूर्त से अधिक महत्वपूर्ण है। इसलिए होलिका दहन के मुहूर्त को लेकर अधिक सजग रहने की आवश्यकता होती है।
भद्रा काल में होलिका दहन होता है विघ्नकारक
पंडित उपेन्द्र तिवारी ने बताया कि भद्रा काल में होलिका दहन नहीं होता है। भद्रा को विघ्नकारक माना जाता है। इस दौरान होलिका दहन से हानि एवं अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसीलिए भद्रा काल छोड़कर होलिका दहन किया जाता है। विशेष परिस्थितियों में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन किया जाता है। मगर इस वर्ष अच्छी बात यह है कि भद्रा रात के दूसरे पहर में ही समाप्त हो जाएगी।
ऐसे होता है होली का पूजन
होलिका की पवित्र आग में लोग जौ की बाल, सरसों की उबटन, गुझिया, फल, मीठा, गुलाल से होली का पूजन करते हैं। राग और रंग होली के दो प्रमुख अंग हैं। सातों रंगों के अलावा, सात सुरों की झंकार इसका उल्लास बढ़ाती है। गीत, फाग, होरी, धमार, रसिया, कबीर, जोगिरा, ध्रुपद, छोटे’बड़े ख्यालवाली ठुमरी होली की पहचान है।