Tuesday - 29 October 2024 - 4:12 PM

माया को नापंसद है कांग्रेस की मोहब्बत

प्रीति सिंह

बॉलीवुड के तमाम फिल्मों में आपने एक तरफा प्यार के किस्से देखे होंगे, जिसमें एक पक्ष अपने प्यार का इजहार करने का मौका नहीं छोड़ता तो दूसरा पक्ष उसके प्यार को नकारने में पीछे नहीं हटता। ‘लव एंड हेट’ की स्टोरी आम जिदंगी में भी देखने को मिल जाती है लेकिन सियायत में यह कम ही दिखता है। फिलहाल उत्तर प्रदेश की सियासत में ऐसा ही एक रिश्ता परवान चढ़ रहा है।

उत्तर प्रदेश की सियासत में इस समय कांग्रेस और बसपा के ‘लव एंड हेट’ रिश्ते की चर्चा जोरों पर है। आलम यह है कि कांग्रेस की सहानुभूति भी मायावती को रास नहीं आ रही। कांग्रेस गठबंधन से जैसे ही अपनी नजदीकी दिखाती है मायावती तुरंत ही उसे बाहर का रास्ता दिखा देती हैं। कांग्रेस करीब आने का मौका नहीं छोड़ रही है और बसपा दूरी बनाने में देर नहीं कर रही है। 17 मार्च को कांग्रेस ने ऐलान किया कि मैनपुरी, कन्नौज, फिरोजाबाद, बागपत, मुजफ्फरनगर के साथ ही मायावती व अखिलेश यादव के खिलाफ अपने प्रत्याशी नहीं उतारेगी।

कांग्रेस के इस ऐलान के अगले दिन सुबह बसपा सुप्रीमो मायावती ने तल्ख लहजे में ट्विटर पर लिखा कि ‘बीएसपी एक बार फिर साफ तौर पर स्पष्ट कर देना चाहती है कि उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में कांग्रेस पार्टी से हमारा कोई भी किसी भी प्रकार का तालमेल व गठबंधन आदि बिल्कुल भी नहीं है। हमारे लोग कांग्रेस पार्टी द्वारा आये दिन फैलाये जा रहे किस्म-किस्म के भ्रम में कतई ना आयें।’ इतना ही नहीं अगले ट्वीट में कांग्रेस पर तंज करते हुए उन्होंने लिखा कि वह यूपी की सभी 80 सीटों पर चुनाव लडऩे को स्वतंत्र है। हमारा गठबंधन यहां समाजवादी पार्टी के साथ है जो कि भाजपा को हराने के लिए काफी है। कांग्रेस को यूपी में सपा-बसपा के लिए 7 सीटें छोडऩे की अफवाह फैलाकर गलत प्रभाव नहीं जमाना चाहिए। मायावती के ट्वीट के कुछ घंटे बाद अखिलेश ने भी ट्वीट कर मायावती की बात का समर्थन किया।


इसके पहले भी मायावती ने ट्वीट कर अपने लोगों को आगाह किया था कि कांग्रेस से बसपा का कोई गठबंधन नहीं है और न ही किसी राज्य में होने की उम्मीद है। यह ट्वीट उन्होंने तब किया था जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भीम आर्मी संस्थापक चंद्रशेखर आजाद से मिलने मेरठ गई थी। प्रियंका और चंद्रशेखर की मुलाकात माया को रास नहीं आई थी। बताया जाता है कि कांग्रेस के इस कदम से मायावती बहुत नाराज है। इस मुलाकात के बाद से वह कांग्रेस के प्रति काफी आक्रामक हो गई हैं।

प्रियंका ने दिया माया-अखिलेश को जवाब

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बसपा प्रमुख मायावती और अखिलेश के ट्वीट का जवाब देते हुए कहा कि हम किसी को परेशान नहीं करना चाहते। हमारा एक ही मकसद है, बीजेपी को हराना। हालांकि प्रियंका ने सबका एक मकसद बताकर मामले को टालने की कोशिश की लेकिन बसपा प्रमुख कांग्रेस के साथ कोई समझौता करने को तैयार नहीं है।

कांग्रेस से दूरी बनाने के पीछे क्या है कारण

राजनीतिक गलियारों के साथ-साथ आम लोगों में भी चर्चा है कि आखिर बसपा प्रमुख की ऐसी क्या मजबूरी है कि वह कांग्रेस से दूरी बनाए हुए हैं। उन्हें बार-बार सबको आगाह करना पड़ रहा है कि कांग्रेस से उनका कोई गठबंधन नहीं है और न ही अन्य किसी राज्य में करने का इरादा हैं। दरअसल 35 वर्ष पूर्व कांशीराम ने कांग्रेस पार्टी की नीतियों का विरोध करते हुए ही वर्ष 1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था। पहले दलित समाज और फिर मुस्लिम समाज के पार्टी बसपा से जुडऩे का ही नतीजा रहा कि कांग्रेस का जनाधार घटता गया और बसपा का बढ़ता गया। बसपा की नीतियों से दलित और मुस्लिम मतदाता प्रभावित हुए जिसका नतीजा हुआ कि उनका कांग्रेस से मोहभंग हो गया और वह बसपा के खेमे में आ गए।

बसपा के लिए कांग्रेस कभी नहीं रही फायदेमंद

बसपा प्रमुख मायावती की कांग्रेस से दूरी पर जानकारों का कहना है कि बहकावे में आकर भाजपा के साथ जाने वाला बीएपी का वोटर तो वापस उनके साथ आ जा सकता है लेकिन कांग्रेस से हाथ मिलाने पर खासतौर से दलित व मुस्लिम वोटर एक बार फिर उस ओर खिसक सकते हैैं जिससे बसपा के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है। कांग्रेस से दूरी बनाने के पीछे के कारणों पर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि कांग्रेस कभी भी बसपा के लिए फायदेमंद रही है और न ही हो सकती है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि कांग्रेस के विरोध पर ही बसपा खड़ी हुई।

बसपा के लिए सबसे निर्णायक होगा यह चुनाव

लोकसभा चुनाव 2019 बसपा प्रमुख मायावती के अब तक के राजनीतिक जीवन का सबसे निर्णायक चुनाव रहने वाला है। उनके सामने ‘करो या मरो’ की स्थिति है। उत्तर प्रदेश में इस लोकसभा चुनाव के नतीजे और उनकी पार्टी को मिलने वाली सीटों से ही उनका और उनकी पार्टी का राजनीतिक भविष्य निर्धारित होगा। कुल मिलाकर अपनी दरकती जमीन को बचाने के लिए मायावती जी-जान से लगी हुई हैं। ऐसे में यदि वह कांग्रेस से हाथ मिलाती है तो उनके मतदाताओं में गलत संदेश जा सकता है।

जानकारों के मुताबिक कांग्रेस गठबंधन के प्रति चुनाव तक विनम्र ही रहेगा। यदि कांग्रेस का लचीला रवैया रहता है तो क्या उम्मीद की जाए कि बॉलीवुड फिल्मों की तरह ये प्यार परवान चढ़ेगा या फिर चुनाव खत्म होते-होते सियासत में एक और हेट स्टोरी की शुरुआत हो चुकी होगी।

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