स्पेशल डेस्क। रंगों का अनोखा पर्व होली पूरे देश में हर्षोल्लास और परंपराओं के साथ मनाया जाता है, लेकिन ब्रज की होली अपनी अनूठी और अनोखी परंपराओं के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध है। कहीं लट्ठमार होली, कहीं फूलों की होली, तो कहीं अंगारों की होली को देखने के लिये यहां भारत के अलग-अलग हिस्सो के अलावा विदेशों से भी लोग आते हैं।
ब्रज में होली की शुरुआत बसंत पंचमी से हो जाती है। इसी दिन से ब्रज के सभी कृष्ण मंदिरों में ठाकुर जी के श्रृंगार में गुलाल का प्रयोग होने लगता है और होलिका दहन के लिए विभिन्न स्थानों पर डंडे गाड़ दिए जाते हैं। ब्रज में होली की विधिवत शुरुआत फाल्गुन कृष्ण के एकादशी को मथुरा से 18 किमी दूर मानसरोवर गांव में लगने वाले राधा-रानी के मेले से होती है।
लट्ठमार होली और प्रेमभरी गालियां
फाल्गुन शुक्ल की नवमी को बरसाना में नंदगांव के हुरियारों और बरसान की स्त्रियों के बीच लट्ठमार होली होती है। इस होली में नंदगांव में गुसाईं अपने को श्रीकृष्ण का प्रतिनिधि मानकर नंदगांव के गुसाइयों को रंग की बौछारों के बीच प्रेम भरी गालियां देते हैं और हंसी-मजाक करते हैं। बरसाना की महिलाएं अपने घूंघटों की ओट से नंदगांव के हुरियारों पर लाठियों की बौछार करती हैं।
अगले दिन फाल्गुन शुक्ल की दशमी को इसी तरह की लट्ठमार होली नंदगांव में खेली जाती है, जहां नंदगांव की स्त्रियों बरसाना के गुसाइयों पर लाठियां चलाती हैं।
लड्डू और जलेबी की होली
नंद गांव की होली होने के बाद एकादशी के दिन ब्रज के प्रायः सभी मंदिरों में ठाकुर जी के समक्ष रंग-गुलाल, इत्र-केवड़ा और गुलाब जल आदि की होली होती है। कुछ मंदिरों में राधा और कृष्ण की झांकियां भी निकलती हैं। इन झांकियों के साथ बड़ी मात्रा में रंग-अबीर और गुलाल रूपी प्रसाद चलता है। यह प्रसाद लोगों पर इस तरह उड़ाया जाता है कि देखते ही देखते ब्रज का हर कोना इंद्रधनुषी हो जाता है।
फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णमासी तक पूरे पांच दिन वृंदावन के ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में सुबह-शाम गुलाल, टेसू के रंग, इत्र और गुलाब जल के साथ पारंपरिक ढंग से होली खेली जाती है और कहीं-कहीं लड्डू और जलेबी की होली भी खेली जाती है।
फूलों की होली
बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही ब्रज के बगीचों में अलग-अलग प्रकार के फूल खिलते हैं। इन रंग-बिरंगे महकते ताजे फूलों से भी यहां होली खेली जाती है। फूलों की यह होली वृंदावन में रासलीलाओं के दौरान राधा और उनकी सखियां, कृष्ण और उनके सखा फूलों से इस तरह होली खेलते हैं कि राधा-कृष्ण फूलों के अंदर ढक से जाते हैं।
तब फूलों के इस ढेर से बाहर निकलते हुए राधा-कृष्ण अपने दोनों हाथों से इन फूलों को चारों ओर उछालते हैं, यह दृश्य देखने लायक होता है। फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा की रात होलिका-दहन होता है। इस दिन मथुरा, फालैन और जटवारी गांव में जगह-जगह रंगों की होली खेली जाती है।
अंगारों की होली
मथुरा से लगभग 53 किमी दूर फालैन गांव में फाल्गुन शुक्ल की पूर्णमासी को विशालकाय होली सजाई जाती है। इस होली को यहां के प्रह्लाद मंदिर के पंडा प्रह्लाद कुंड में स्नान करने के बाद अग्नि प्रज्जवलित करते हैं लेकिन उसके पैरों और शरीर के किसी भी हिस्से पर कोई खरोच नहीं आती है। होलिका-दहन के अगले दिन यानी धुलेंडी पर सारे ब्रज में रंग-गुलाल की बहुत बेहतरीन होली खेली जाती है।
ब्रज के अलावा भी भारत के कई हिस्सों में होली कुछ अलग अंदाज में मनायी जाती है-
दिल्ली की होली
दिल्ली की होली काफी चर्चित है। यहां होली के मौके पर कई इवेंट ऑर्गेनाइज किए जाते हैं, जिसमें बड़े सिंगर आते हैं और आपके होली के अनुभव को यादगार बना देते हैं।
महाराष्ट्र की होली
महाराष्ट्र में होली नायाब अंदाज में मनाई जाती है। यहां ज्यादातर सूखे रंगो का प्रयोग किया जाता है और व्यंजन में पूरन पोली परोसी जाती है और धुलेंडी के बाद रंगों से खेलने की परंपरा है।
बंगाल के पुरुलिया की होली
पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में होली का त्योहार होली से एक दिन पहले मनाया जाता है। यहां के पारंपरिक नृत्य में देखने को मिलती है. होली के मौके पर छाउ डांस, दरबारी झूमर डांस किया जाता है और वहां के मशहूर म्यूजिशियन खूबसूरत गाने गाते हैं, जिसमें बंगाल की सभ्यता की झलक देखने को मिलती है। पुरुलिया में यह त्योहार तीन दिनों तक मनाया जाता है और दूर-दूर से लोग इसका हिस्सा बनने आते हैं।
मणिपुर का याओसांग फेस्टिवल
मणिपुर में होली पांच दिन तक चलने वाला त्योहार है जिसे याओसांग फेस्टिवल कहा जाता है। इन पांच दिनों में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और बॉनफायर भी जलाया जाता है। इस त्योहार को मनाते समय वहां के स्थानीय लोग एक कुटिया को जलाते हैं और उसके बाद सभी बच्चे घर-घर जाकर चंदा इकट्ठा करते हैं। दूसरे दिन मंदिरों में बैंड का आयोजन किया जाता है और सभी नांचते हैं। आखिरी दो दिन पानी और रंगों से होली खेली जाती है।
गोवा का शिगमो-उत्सव
गोवा में होली का मतलब है मस्ती और धमाल। यहां पांच दिनों तक शिगमो-उत्सव चलता है जिसमें कई प्रकार की परेड निकलती हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। उत्सव के अंतिम दिन गोवा के सभी बीचों को रंगों से सजाया जाता है और वहां लोग गुलाल से होली खेलते हैं। यह उत्सव गोवा के पंजिम, वास्को और मडगांव में मनाया जाता है।
उदयपुर की शाही होली
उदयपुर में होली शाही अंदाज में मनाई जाती है। इस त्योहार में मेवाड़ के राजा सभी अतिथियों का स्वागत करते हैं और उन्हें रॉयल सिटी पैलेस लेकर जाते हैं, जहां पहले दिन होलिका दहन किया जाता है। इस शाही होली की खास बात यह है कि यहां राजस्थान की पूरी सभ्यता और परंपरा देखने को मिलता है। लोग राजस्थानी कपड़े पहते हैं और उनके परंपरिक लोकगीत की धुन पर नांचते हैं। वहां आए सभी अतिथियों को शाही भोज करवाया जाता है और बाद में आतिशबाजी होती है।
पंजाब का होला मोहल्ला
पंजाब में होला मोहल्ला त्योहार बहुत प्रचलित है, इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस त्योहार का आयोजन पंजाब के आनंदपुर साहिब में हर साल किया जाता है। यहां रंगों से नहीं तलवार बाजी, घुड़ सवारी और मार्शल आ आर्ट से होली का त्योहार मनाया जाता है। इसके बाद जगह-जगह लंगर लगाए जाते हैं और सभी को हलवा, पूरी, गुजिया और मालपुआ परोसा जाता है। होला मोहल्ला की शुरुआत सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने की थी, जिसे सालों से 6 दिन तक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।