अविनाश भदौरिया
सपा की परंपरागत सीट कन्नौज से इस बार फिर डिंपल यादव उम्मीदवार है। फिलहाल कन्नौज में इस बार भी मोदी जादू चलना मुश्किल दिख रहा है। डिंपल यादव को चुनौती दे पाना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा। 2014 लोकसभा चुनाव में ‘मोदी लहर’ के बावजूद डिंपल ने यहां से जीत दर्ज की थी और उन्हें 489164 (43.89 फीसदी) वोट मिला था।
डिंपल के चुनाव न लड़ने के तमाम कयासों के बीच सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आठ मार्च को कन्नौज के लिए डिंपल के नाम का ऐलान किया था। दरअसल कन्नौज सपा की पारंपरिक सीट है। 2014 के लोकसभा चुनाव में ‘मोदी लहर’ के बावजूद डिंपल ने बीजेपी प्रत्याशी को कड़ी टक्कर देते हुए जीत दर्ज की थी।
डिंपल को पिछले चुनाव में 43.89 फीसदी (489164) वोट मिले थे, जबकि बीजेपी प्रत्याशी को 42.11 फीसदी (469257) वोट मिले थे। वहीं बीएसपी को 11.47 फीसदी (127785) वोट और चौथे नंबर पर रही इनेलो को 0.51 फीसदी वोट मिले थे।
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इस बार सपा से गठबंधन के बाद बीएसपी यहां पर अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगी। जिसका सीधा मतलब है कि बीएसपी को मिलने वोट सपा के ही खाते में ट्रांसफर होंगे। इस तरह से देखा जाए तो बीजेपी या अन्य किसी पार्टी का कन्नौज में डिंपल यादव को हरा पाना एक तरह से नामुमिक होगा। हालांकि पिछली बार जीत का अंतर काफी हो गया था।
डिंपल यादव सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी है। साल 1998 से समाजवादी पार्टी लगातार 7 बार लोकसभा का चुनाव यहां से जीत चुकी है। इस सीट से अखिलेश यादव तीन बार और उनके पिता मुलायम सिंह यादव एक बार सांसद चुने जा चुके हैं।
कन्नौज के जातीय समीकरण को देखें तो यहां 16 फीसदी यादव मतदाता हैं, वहीं मुस्लिम वोटर करीब 36 फीसदी हैं। इसके अलावा ब्राह्मण मतदाता 15 फीसदी के ऊपर हैं और करीब 10 फीसदी राजपूत हैं तो वहीं ओबीसी मतदाताओं में लोधी, कुशवाहा, पटेल बघेल मतदाता अच्छे खासे हैं।