मल्लिका दूबे
गोरखपुर। पूरे विश्व को प्रेम, सद्भाव, अहिंसा और शांति का पैगाम देने वाले संतकबीर की निर्वाणस्थली में सियासी जूतमपैजार इस बार के लोकसभा चुनाव में प्रकारांतर में अहम मुद्दा रहेगा। भाजपा सांसद शरद त्रिपाठी द्वारा अपनी ही पार्टी के विधायक राकेश सिंह बघेल की प्रभारी मंत्री की मौजूदगी में की गयी जूतों से पिटाई की कीमत इस चुनाव में कहीं पार्टी को न अदा करनी पड़ जाए। जहां तक बात शरद द्वारा अदा की जाने वाली कीमत की है तो उनके टिकट पर संकट के बादल जूताकांड के पहले ही मंडरा रहे हैं।
चुनाव से पहले ही BJP के लिए खतरे की घंटी बज गई
संतकबीरनगर की संसदीय सीट पर चुनाव से पहले ही भाजपा के लिए खतरे की घंटी बज गयी है। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी के पुत्र शरद त्रिपाठी को जीत वर्ष 2014 के चुनाव में मोदी लहर में मिली। इसके पहले वर्ष 2009 में वह बसपा प्रत्याशी भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी से हार गये थे। यहां जातीय समीकरणों के आधार पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की स्थिति मजबूत रही है।
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वर्ष 1999 और 2004 के चुनाव में भालचंद यादव क्रमश: सपा और बसपा कैंडीडेट के रूप में सांसद बने थे। वर्तमान चुनाव में दोनों दलों का गठबंधन हो चुका है और सीट बंटवारे के फार्मूले के तहत यह सीट बसपा के पाले में हैं। यहां से पूर्व सांसद भीष्मशंकर उर्फ कुशल तिवारी की प्रत्याशिता भी तय है।
जातीय समीकरण के खेल में कौन मारेगा बाजी
सपा-बसपा के वोट बैंक के साथ कुशल तिवारी की लगातार कोशिश सजातीय वोटरों को सहेजने पर है। यह स्थिति भाजपा के लिए पहले से सिरदर्द बढ़ाने वाली थी। इस बीच सांसद शरद त्रिपाठी और विधायक राकेश सिंह बघेल के बीच हुए बवाल ने पार्टी की मुसीबत और बढ़ा दी है। इस बवाल के बहाने भाजपा के अंदरखाने में चल रही ठाकुर-ब्रााह्मण वर्चस्व की जंग सतह पर आ गयी है। पार्टी इन दोनों जातियों को अपना वोट बैंक समझती है। ब्रााह्मण सांसद और ठाकुर विधायक के बीच हुए हिंसक विवाद के बाद जमीनी स्तर पर इन दोनों बिरादरियों के वोटर भी भाजपा की बजाय इन दोनों नेताओं के बीच अंदरूनी तनातनी बनाए हुए हैं।
शरद का टिकट काटा तो झेलनी पड़ेगी ब्राह्मण वर्ग की नाराजगी
ऐसे में अब अगर सांसद शरद त्रिपाठी को फिर टिकट मिला तो ठाकुर मतदाताओं का वह रुझान यहां भाजपा के सिम्बल कर नहीं रहेगा जिसकी उम्मीद पार्टी करती रही है। विधायक बघेल भी अपने समर्थकों से यह कह ही चुके हैं कि अपमान का बदला समय आने पर लिया जाएगा और, यदि पार्टी ने शरद का टिकट काटा तो ब्राह्मण वर्ग की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। ब्रााह्मण वर्ग की भाजपा से नाराजगी का सीधा लाभ बसपा प्रत्याशी को मिलेगा। अब देखना अहम होगा कि जूते की कीमत कौन चुकाएगा, भाजपा या शरद त्रिपाठी।