फिलहाल सोनिया गांधी के रायबरेली से चुनाव लडऩे की खबर से यह तो तय हो गया कि वह कांग्रेस में महथी भूमिका निभाने वाली हैं। भले ही अब कांग्रेस की कमान राहुल के हाथ में है लेकिन पर्दें के पीछे से वह आज भी सक्रिय हैं।
पिछले कुछ समय से सोनिया की बीमारी की खबरें लगातार आ रही थी और इससे कयास लगाए जा रहे थे कि शायद अब वह सन्यास ले लें लेकिन उनके नाम के साथ ऐसी खबरों पर विराम लग गया।
कांग्रेस की तरफ से 7 मार्च को देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के लिए 11 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया गया था। उस लिस्ट में सोनिया गांधी का भी नाम था, इससे साफ हो गया कि वो सक्रिय राजनीति में अपनी भूमिका अदा करती रहेंगी।
दरअसल कांग्रेस लोकसभा चुनाव 2019 में ‘करो और मरो’ की तर्ज पर चुनावी मैदान में है। राहुल गांधी बहन प्रियंका गांधी को भी सक्रिय राजनीति में ला चुके हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस की तरफ से महागठबंधन बनाने की कवायद भी जारी है, लेकिन क्षत्रपों की वजह से कांग्रेस का सपना पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। वहीं सपा-बसपा गठबंधन कांग्रेस की मांग के हिसाब से सीट नहीं दे रही है, जिसकी वजह से कांग्रेस के सामने अकेले चुनाव लडऩे के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
सोनिया की सक्रिय राजनीति में बने रहने के पीछे एक सबसे बड़ी वजह है यूपीए। कई राजनीतिक दलों के नेता राहुल पर विश्वास नहीं दिखा पा रहे हैं। उन्हें राहुल में गंभीरता की कमी दिख रही है। सोनिया गांधी की सभी को साथ लेकर चलने के कौशल से सभी वाकिफ हैं।
2004 और 2009 में यूपीए के शासनकाल में सोनिया गांधी के कौशल को सभी ने देखा है। वर्तमान में भले ही राहुल आक्रामक अंदाज में दिख रहे है लेकिन महागठबंधन और उसके बाहर उनकी स्वीकार्यता कम हैं। इस लिहाज से चुनाव के बाद कांग्रेस के लिए अच्छा परिणाम आता है तो सोनिया गांधी अन्य पार्टियों को अपने साथ लाने में अपनी भूमिका निभा सकती हैं।