धीरेन्द्र अस्थाना
लखनऊ। आये दिन अखबार में ऐसी खबरें आती है कि फला गांव की किशोरी सुबह शौच के लिए खेत में गई थी और दबंगों ने उसके साथ बलात्कार किया। दरअसल ऐसी खबरें एक हादसा भर नहीं है बल्कि ऐसी खबरें केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी स्वच्छ भारत मिशन और प्रशासनिक कार्यप्रणाली के दावों के फरेब का भी खुलासा करती हैं।
खुले में शौच मुक्त के तमाम दावों के बावजूद आज भी गांव हो या शहर, कुछ इलाकों में सुबह-सबेरे महिला-पुरुष शौच के लिए खेत-खलिहान में जाते दिख रहे हैं। आलम यह है कि कुछ घरों में शौचालय होने के बावजूद बाहर जाते हैं तो बहुत से घरों में शौचालय नहीं है। दूर जाने की जरूरत नहीं है। राजधानी लखनऊ के ही खरगापुर क्षेत्र में आपको सुबह और शाम ऐसा दृश्य दिख जायेगा, जबकि राजधानी लखनऊ खुले में शौच से मुक्त घोषित हो चुकी है।
शौचलय की जरूरत हमेशा से रही है। खुले में शौच स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो है ही साथ ही महिलाओं की गरिमा भी इससे प्रभावित होती है। 2014 में केन्द्र में बीजेपी सरकार के आने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बढ़-चढ़कर इस दिशा में कदम उठाया। मोदी की महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत मिशन के तहत देश को खुले से शौच मुक्त करने के लिए सरकार शौचालय निर्माण करा रही है, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है।
– 2014 में स्वच्छता कवरेज केवल 38 प्रतिशत था
– अब ये कवरेज 73 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर रहा है
आपको जानकार हैरानी होगी कि इतने बड़े देश में 7.25 करोड़ से अधिक शौचालय सरकारी आंकड़ों में बनाये जा चुके है, जिनमें केवल ग्रामीण क्षेत्र की बात करे तो 3.6 लाख से अधिक गांव और 17 प्रदेश को शौच से मुक्त घोषित किया जा चुका है।
हालांकि जमीनी हकीकत इससे बिलकुल विपरीत है, यदि आपको सच जानना हो तो आप ग्राउंउ पर जाकर हकीकत जान सकते हैं। स्वच्छता कवरेज जो 2014 में 38 प्रतिशत के आसपास थी, वह अब बढ़कर 73 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर चुकी है। जो आंकड़े सरकार के पास हैं उसके हिसाब से देश का एक चौथाई हिस्सा खुले में शौच मुक्त हो चुका है।
जुबली पोस्ट ने राजधानी लखनऊ के कई क्षेत्रों में पड़ताल की तो उसमें साफ दिखा कि सुबह-सबेरे बहू-बेटियां लोटा लेकर बाहर जाने को मजबूर हैं।
दरअसल स्थायी रूप से गांव के रहने वाले लोगों की सोच में बदलाव आने का नाम नहीं ले रहा है। पड़ताल में ये बात भी साफ हुई कि जिन लोगों के घरों में शौचालय है, उनके घर के बुजुर्ग आज भी सुबह खेतों में लोटा लेकर ही जाते है। सरकार को ग्रामीण इलाकों में जन- जागरूकता करने पर भी फोकस करना होगा तभी शायद इससे निजात मिले।
ओडीएफ घोषित है फिर भी खुले में जाते हैं शौच के लिए
गांवों के अलावा कुछ प्रमुख महानगर भी ऐसे है जो ओडीएफ घोषित है, लेकिन उन शहरों के ग्रामीण इलाकों में आज भी लोटा गैंग का दिखना बदस्तूर जारी है। ग्रामीण इलाकों को पूर्ण रूप से खुले में शौच मुक्त न कर पाने के पीछे एक बड़ी वजह भी पड़ताल में देखने को मिली। बड़ें शहरों के बाहरी इलाकों में तमाम ऐसे स्लम एरिया है जहां के लोग आज भी खुले में शौच के लिए जाते हैं। इनके लिए कोई व्यवस्था नहीं है।
क्या है ओडीएफ
केंद्रीय पेयजल औऱ स्वच्छता मंत्रालय के मुताबिक खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) का पैमाना आवश्यक रूप से शौचालय का इस्तेमाल है। यानी जिस ग्राम पंचायत, जिला या राज्य (सभी ग्रामीण) के सभी परिवारों के सभी लोग शौचालय इस्तेमाल करते हों, वही ओडीएफ है।ओडीएफ को चार स्तरीय सत्यापन से गुजरना पड़ता है। पहले ब्लॉक स्तर, फिर जिला, फिर राज्य स्तर के अधिकारी और आखिर में केंद्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के अधिकारी सत्यापन करते हैं।
शौचालय निर्माण
- बेसलाइन सर्वे में जिसका नाम हो वह व्यक्ति स्वच्छता अधिकारी के पास नाम दर्ज कराता है।
- अधिकारी निर्माण शुरू करने की मंजूरी की रसीद देता है।
- 45-50 दिन में निर्माण पूरा करना होता है।
- बने शौचालय में पानी की टंकी, रोशनी की व्यवस्था, दरवाजा होना जरूरी है।
- काम पूरा होने की सूचना के बाद अधिकारी रसीद लेकर 12,000 की प्रोत्साहन राशि जारी करता है।