समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती से गठबंधन के बाद अपने कोटे की तीन सीट चौधरी अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) को दे दी है।
RLD की परंपरागत सीटें
मौजूदा राजनीतिक मिजाज को भांपते हुए चौधरी अजित सिंह अपने सियासी वजूद को बचाए रखने के लिए सपा-बसपा गठबंधन में हिस्सेदार बन गए हैं। आरएलडी के खाते में पश्चिम उत्तर प्रदेश की बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा लोकसभा सीट आई हैं। ये तीनों सीटें जाट बहुल और आरएलडी की परंपरागत सीटें मानी जाती हैं।
हालांकि, मौजूदा समय में तीनों सीटें बीजेपी के कब्जे में हैं। ऐसे में सपा-बसपा का साथ मिलने के बाद आरएलडी इनपर अपनी वापसी की उम्मीद लगाए है।
अखिलेश यादव ने बागपत, मथुरा के अलावा अपने कोटे से मुजफ्फरनगर की सीट भी आरएलडी को देकर गठबंधन की दिक्कतों को सुलझा लिया है और उसे कांग्रेस खेमे में जाने से रोक लिया है.
गौरतलब है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में आरएलडी का अपना अच्छा खासा आधार रहा है। यूपी में आरएलडी की कभी तूती बोलती थी, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे की आंच में उसकी सारी राजनीति खाक हो गई।
इसके बाद जाटों ने आरएलडी से ऐसा मुंह मोड़ा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी को एक भी सीट नहीं मिली। हालांकि, कैराना लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव से जाट मतदाताओं ने एक बार फिर आरएलडी की ओर रुख किया है।
पश्चिमी यूपी की बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा के अलावा मेरठ, हापुड़, आगरा, सहारनपुर, अमरोहा, बिजनौर, नगीना, हाथरस, अलीगढ़ और कैराना लोकसभा सीट पर आरएलडी का अपना मजबूत जनाधार रहा है। 2009 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी पांच लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही थी।
बताते चले कि पश्चिम यूपी की करीब एक दर्जन लोकसभा सीटें हैं, जहां मुसलमानों की आबादी 25 से 40 फीसदी तक है, जिसका बड़ा तबका सपा के साथ है। ऐसे ही दलित मतदाताओं की संख्या भी काफी है, जिस पर बसपा की मजबूत पकड़ है।
वहीं, पश्चिम की कई लोकसभा सीटें हैं, जहां जाट मतदाता हार जीत तय करते हैं। एक दौर में ये आरएलडी के साथ थे, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे के बाद बीजेपी के साथ जुड़ गए। हालांकि, सपा-बसपा के गठबंधन में आरएलडी के शामिल होने के बाद पश्चिम यूपी में आम चुनाव में जीत की राह आसान नहीं होगी।