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गोरखपुर विश्वविद्यालय के नामकरण का इतिहास

अशोक कुमार

गोरखपुर विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय है जो स्वतंत्रता के बाद स्थापित हुआ था।

स्थानीय प्रशासन की पहल पर रेसकोर्स की 169 एकड़ भूमि विश्वविद्यालय को प्रदान की गई थी।

तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने 1 मई 1950 को इस विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी थी। उनका यह कदम उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक दूरदर्शी पहल था, जिसका उद्देश्य क्षेत्र के युवाओं को ज्ञान और कौशल प्रदान करना था।

इस विश्वविद्यालय की स्थापना में कई प्रमुख व्यक्तियों और संस्थाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इनमें से एक प्रमुख नाम गोरखनाथ मठ का है।

इस प्रतिष्ठित मठ ने न केवल विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए प्रेरणा और समर्थन प्रदान किया, बल्कि भूमि और अन्य आवश्यक संसाधन जुटाने में भी अहम भूमिका निभाई।

गोरखनाथ मठ की शिक्षा और समाज सेवा के प्रति प्रतिबद्धता ने इस नए विश्वविद्यालय की नींव को मजबूत करने में विशेष योगदान दिया। गोरखनाथ मठ के तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ ने भी इस विश्वविद्यालय के लिए अपने दो कॉलेज दान कर दिए थे।

गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना वर्ष 1956 में हुई। मई 1956 में उत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा ‘गोरखपुर विश्वविद्यालय अधिनियम’ पारित किया गया और विश्वविद्यालय ने 1 सितंबर 1957 से कार्य करना प्रारंभ कर दिया। प्रारंभ में इसमें केवल कला, वाणिज्य, विधि और शिक्षा संकाय थे। वर्ष 1958 में विज्ञान संकाय की शुरुआत हुई और बाद के वर्षों में इंजीनियरिंग, चिकित्सा और कृषि संकाय भी जोड़े गए।

बाद में, वर्ष 1997 में गोरखपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर प्रख्यात राजनीतिक दार्शनिक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सम्मान में ‘दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय’ कर दिया गया। विश्वविद्यालय का वर्तमान नाम इसी परिवर्तन पर आधारित है।

विश्वविद्यालय का नामकरण क्षेत्र की आध्यात्मिक, दार्शनिक, देशभक्ति और परोपकारी विरासत से प्रेरित है, जिसमें गौतम बुद्ध, संत कबीर, गुरु गोरक्षनाथ, राम प्रसाद बिस्मिल, हनुमान प्रसाद पोद्दार और विश्वप्रसिद्ध गीता प्रेस जैसे महापुरुषों और संस्थाओं का योगदान निहित है।

(पूर्व कुलपति, गोरखपुर विश्वविद्यालय)

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