डॉ. दिनेश चंद्र श्रीवास्तव
अमेरिका में ट्रंप प्रशासन के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के बाद, राष्ट्रपति ट्रंप ने कई नई और क्रांतिकारी नीतियों को लागू करने की योजना बनाई है। वे अमेरिका को महान बनाने के उद्देश्य से आप्रवासन कानूनों को कड़ा करने, गैरकानूनी प्रवासियों को देश से निकालने, पारस्परिक टैरिफ लगाने, अनावश्यक खर्चों को कम करने, ग्रीनलैंड और पनामा नहर पर नियंत्रण करने आदि की वकालत कर रहे हैं। इसके अलावा, वे रूस-यूक्रेन युद्ध और हमास-इजराइल संघर्ष को समाप्त कर शांति स्थापित करना चाहते हैं। साथ ही, उनका उद्देश्य यूक्रेन और रूस में रणनीतिक संसाधनों तक पहुंच प्राप्त करना और गाजा पट्टी में एक महत्वाकांक्षी रियल एस्टेट परियोजना विकसित करना भी है।
इन सभी योजनाओं में, पारस्परिक टैरिफ नीति की घोषणा ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका दिया है, जिससे विश्व भर के शेयर बाजारों में गिरावट देखी गई है।
अमेरिका का व्यापार घाटा (2024 की स्थिति)
2024 तक, अमेरिका का कई देशों के साथ महत्वपूर्ण व्यापार घाटा है, जिसका अर्थ है कि अमेरिका इन देशों से आयात अधिक करता है और निर्यात कम। प्रमुख व्यापार घाटा वाले क्षेत्र:
- चीन: लगभग 300 अरब डॉलर, जो सभी व्यापारिक साझेदारों में सबसे अधिक है।
- भारत: लगभग 45.7 अरब डॉलर।
- अन्य क्षेत्र: यूरोपीय संघ, मैक्सिको, वियतनाम, जापान और कनाडा।
हालांकि, वैश्विक व्यापार से सभी देशों को समान लाभ नहीं होता है, लेकिन समग्र रूप से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को हमेशा वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी माना जाता है। लेकिन टैरिफ और कोटा के माध्यम से व्यापार पर प्रतिबंध लगाने से वैश्विक मांग और आपूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और इससे वैश्विक GDP में संकुचन हो सकता है।
ट्रंप की पारस्परिक टैरिफ नीति क्या है?
ट्रंप की प्रस्तावित पारस्परिक टैरिफ नीति के तहत, अमेरिका उन देशों से आयात पर उतनी ही दर से टैरिफ लगाएगा जितना वे अमेरिकी निर्यात पर लगाते हैं। यदि इस नीति को वैश्विक रूप से लागू किया गया, तो इससे प्रतिशोधी व्यापार नीतियां शुरू हो सकती हैं और चीन, भारत और अमेरिका पर विभिन्न तरीकों से प्रभाव पड़ सकता है।
- चीन पर प्रभाव
यदि पारस्परिक टैरिफ नीति लागू की जाती है, तो चीनी उत्पादकों के लिए निर्यात लागत बढ़ जाएगी, जिससे अमेरिका में उनकी मांग घटेगी। चूंकि चीन की अर्थव्यवस्था निर्यात-उन्मुख है, इसलिए:
- आर्थिक विकास की गति धीमी हो सकती है।
- श्रम-प्रधान उद्योगों (जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, कपड़ा) में नौकरी की हानि होगी।
- आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान आ सकता है।
चीन की संभावित प्रतिक्रिया:
- घरेलू उपभोग को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रोत्साहनों की पेशकश।
- अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत करना।
- अमेरिकी उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाएं लगाना।
- भारत पर प्रभाव
भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा चीन की तुलना में काफी कम है, इसलिए इस नीति का भारत पर तत्काल प्रभाव सीमित रहेगा। लेकिन निम्नलिखित क्षेत्रों में परेशानी हो सकती है:
- आईटी सेवाएं
- कपड़ा उद्योग
- ऑटो पार्ट्स
- फार्मास्युटिकल्स
भारत के लिए संभावित अवसर:
- चीन का विकल्प बनना: यदि अमेरिका चीनी आयात में कटौती करता है, तो भारत इलेक्ट्रॉनिक्स और विनिर्माण में उसकी जगह ले सकता है।
- स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा: भारत भी चीन से आने वाले आयात पर उच्च टैरिफ लगाकर स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहित कर सकता है।
हालांकि भारत को अल्पकालिक व्यापारिक व्यवधान का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन यदि वह अमेरिका में चीन के स्थान पर आपूर्तिकर्ता बनता है, तो दीर्घकालिक लाभ हो सकते हैं।
- अमेरिका पर प्रभाव
पारस्परिक टैरिफ नीति अमेरिका पर मिश्रित प्रभाव डाल सकती है:
नकारात्मक प्रभाव:
- मुद्रास्फीति में वृद्धि: आयातित वस्तुएं महंगी हो जाएंगी।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा में गिरावट: अमेरिकी उत्पाद, जिनमें आयातित सामग्री शामिल है, महंगे हो जाएंगे।
- प्रतिशोधी उपायों से कृषि, ऑटोमोबाइल और तकनीकी उत्पादों के निर्यात में गिरावट।
सकारात्मक प्रभाव:
- स्थानीय उद्योगों में वृद्धि: इससे स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार सृजन में मदद मिलेगी।
- बेहतर व्यापार सौदों के लिए दबाव: अमेरिका इस नीति को सौदेबाजी के उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर सकता है।
हालांकि, व्यापारिक तनाव के कारण विदेशी निवेश में गिरावट आ सकती है और इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप की पारस्परिक टैरिफ नीति के लागू होने से चीन, भारत और अमेरिका पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। चीन को निर्यात में गिरावट और आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ेगा, जबकि भारत को अल्पकालिक झटके के बावजूद दीर्घकालिक रूप से लाभ हो सकता है। अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, लेकिन स्थानीय उद्योग को बढ़ावा मिल सकता है।
यह देखना बाकी है कि राष्ट्रपति ट्रंप इस नीति को पूरी तरह लागू करेंगे या इसे अमेरिका के लिए अनुकूल व्यापारिक रियायतें प्राप्त करने के लिए एक रणनीति के रूप में इस्तेमाल करेंगे।
(लेखक पूर्व प्रधान निदेशक, राष्ट्रीय रक्षा उत्पादन अकादमी, अंबाझरी, नागपुर हैं )