संदीप पाण्डेय
हवाई अड्डों पर एक प्रार्थना कक्ष होता है। वहां यह नहीं लिखा रहता कि वह किसी खास धर्म का है। हम जिस धर्म को मानते हैं उसके अनुसार वहां प्रार्थना कर सकते हैं।
यदि हम विभिन्न धर्मों को मानने वालों के बीच झगड़े खत्म करना चाहते हैं तो हमें भविष्य के धार्मिक स्थलों का यही स्वरूप अपनाना होगा।
हाल में हमने देखा कि कई जगहों पर लोगों ने न्यायालय की शरण लेकर यह दावा करना शुरू कर दिया कि उनके इलाके की मस्जिद या दरगााह इतिहास में किसी मंदिर को गिरा कर बनाई गईं हैं।
यदि सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप कर इन कानूनी प्रक्रियाओं पर रोक न लगाई होती तो इन सिलसिलों को कोई अंत नहीं दिखाई पड़ रहा था और अंततः ताज महल जैसे स्मारक भी इसकी चपेट में आ जाते। किंतु यह राहत तात्कालिक ही है।
उपासना स्थल अधिनियम की वजह से इस प्रक्रिया पर रोक लगी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत के यह कहने के बावजूद कि अयोध्या तो एक आस्था का मामला था, हमें हरेक मस्जिद के नीचे शिवलिंग नहीं खोजने चाहिए, कुछ लोगों की आस्था अन्य जगहों पर हो सकती है और हमें अभी तक यह समझ लेना चाहिए कि रा.स्वं.सं. व भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारी भिन्न भाषाओं में बोलते हैं।
रा.स्वं.सं. की पत्रिका ने कह ही दिया है कि विवादित स्थलों का इतिहास जानना सभ्यता के साथ न्याय के लिए जरूरी है। वैसे भाजपा उपासना स्थल अधिनियम को, जैसे उसने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 प्रभावहीन बना दिया अथवा संविधान के अनुच्छेद 14 की अवहेलना करते हुए खुलेआम भेदभाव करने वाला नागरिकता संशोधन अधिनियम बना दिया, खत्म भी कर सकती है। तब फिर बांध के दरवाजे खुलने जैसी बात हो जाएगी।
अतः इस पेचीदी समस्या का हल निकालना है तो, यह मानते हुए कि ईश्वर को मानने वाले सभी इस बात पर सहमत होंगे कि ईश्वर एक है, हमें सभी धार्मिक स्थलों को सार्वभौमिक धार्मिक स्थल मानना पड़ेगा।
यानी किसी भी धार्मिक स्थल में कोई भी धर्म को मानने वाला प्रवेश कर सके और अंदर जाकर अपने तरीके से प्रार्थना, पूजा, आदि कर सके।
सैद्धांतिक रूप से हरेक व्यक्ति एक ही छत के नीचे उसी एक ईश्वर की उपासना कर रहा है। बल्कि यह वाकई में एक आध्यात्मिक दृश्य होगा कि अलग अलग लोग अपने अपने तरीके से एक दूसरे के साथ पूरी सद्भावना कायम रखते हुए उपासना कर रहे हैं।
अंततः तो सभी धर्मों का यही उद्देश्य है कि धरती पर शांति स्थापित हो जिसमें मानव समाज के अंदर शांति हो और बाहरी दुनिया के साथ भी शांति हो।
लेकिन धीरे धीरे हमें बाबा आम्टे द्वारा महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले की वरोरा नामक जगह पर स्थापित महारोगी सेवा समिति का तरीका ही अपनाना होगा जिसके परिसर पर कोई भी सार्वजनिक धार्मिक स्थल नहीं है।
प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म के पालन ही छूट है लेकिन अपने घर के अंदर। मृत्यु के बाद हरेक व्यक्ति को, चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो, मिट्टी में दफना दिया जाता है और ऊपर एक पौधा लगा दिया जाता है। समाधि बनाने की अनुमति नहीं है।
फिर सवाल उठेगा कि जो धार्मिक स्थल बने हुए हैं उनका क्या होगा? सभी धार्मिक स्थलों से समाज कल्याण के कार्यक्रम चलाए जाएंगे। गुरूद्वारों से चलने वाले लंगर इसका एक बढ़िया उदाहरण हैं। गुरूद्वारों के लंगर की सबसे अच्छी बात है कि वे सबके लिए खुले होते हैं, सिर्फ सिक्ख धर्म के अनुयायियों के लिए ही नहीं होते।
बल्कि सिक्ख धर्म के अनुयायी विशेष प्रयास कर लंगर की सेवा बिना किसी धर्म, नस्ल, जाति या लिंग के भेदभाव के सभी तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं। हमने देखा कि इंग्लैण्ड की संस्था खालसा एड ने बंग्लादेश में म्यांमार से आए शरणार्थियों के लिए लंगर चलाए और रूस के हमले के बाद यूक्रेन से पलायन कर रहे लोगों के लिए पोलैण्ड की सीमा पर लंगर चलाए।
जबकि बंग्लादेश, म्यांमार, पोलैण्ड या यूक्रेन में सिक्ख कोई बड़ी संख्या में नहीं रहते। मौलिक बात यह है कि जहां लंगर की जरूरत थी वहां लंगर चलाए गए। दिल्ली की सीमा पर किसानों का 13 महीनों तक जो धरना चला उसमें लंगरों की बड़ी भूमिका थी जिसमें पंजाब-हरियाणा के गांव-गांव से खाने-पीने का सामान आ रहा था। गांवों से परिवार के परिवार आकर लंगर की व्यवस्था सम्भाले हुए थे। धर्म की मूल भावना सेवा है और यह हमें सिक्ख धर्म से सीखना चाहिए। इसी तरह सभी धार्मिक स्थलों को सेवा के केन्द्रों में तब्दील हो जाना चाहिए।
यह शिक्षा का कार्यक्रम हो सकता है, स्वास्थ्य का हो सकता है, महिला सशक्तिकरण का हो सकता है अथवा लंगर की सेवा हो सकती है। चूंकि धर्म का सार ही सेवा है अतः बने हुए धार्मिक स्थलों का सबसे बढ़िया उपयोग यही है कि वहां से सेवा के कार्यक्रम चलाए जाएं। अयोध्या में एक सर्व धर्म सद्भाव न्यास की स्थापना हुई है जिसमें एक राम जानकी मंदिर के महंथ, एक मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ता, बिहार के एक दलित बुद्धिजीवी, एक ट्रांसजेण्डर व इस लेख के लेखक न्यासी हैं।
यह न्यास भविष्य के लिए उपरोक्त किस्म के धार्मिक स्थल बनाना चाहता है। बाराबंकी जिले के असेनी गांव से एक शुरूआत हुई है। एक पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार कराकर उसके बाहर लिखवा दिया गया है कि इस मंदिर में किसी भी धर्म को मानने वाले या किसी भी बिरादरी के व्यक्ति का स्वागत है और लोग अपने तरीके से प्रार्थना-पूजा, आदि कर सकते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में ऐसे और केन्द्र बनेंगे। यही एक शांतिपूर्ण व मैत्रीपूर्ण दुनिया के लिए एकमात्र उम्मीद है।