नवेद शिकोह
एक जमाना था जब कुंभ में खो जाने का भय बना रहता था, पर आज का कुंभ इकट्ठा होकर मिल जाने की नज़ीर बन रहा है।
दूरसंचार की क्रांति के बाद का ये महाकुंभ प्रयागराज के संगम पर लोगों को मिलवा रहा है, जातियों का भेद मिटा रहा है और सनातनी ताकत का एहसास करा रहा है। अलग-अलग शहरों और राज्यों में रहने वाले दोस्त,रिश्तेदार स्नान का दिन तय कर बरसों बाद एक दूसरे से यहां मिल रहे हैं।
महाकुंभ साबित कर रहा है कि सनातन के फलक पर जातियों,पंथों और संप्रदायों में कोई अंतर नहीं। सब एक है,सब साथ हैं। प्रयागराज का ये महाकुंभ जातियों में बिखरी हिन्दुत्व की बूंदों को एकत्र कर अमृत कलश तैयार कर रहा है।
“एक रहोगे सेफ रहोगे” के नारे को चरितार्थ करने वाला सांस्कृतिक चेतना का ये अनुष्ठान अनेकता में एकता की मिसाल प्रस्तुत कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछली रविवार “मन की बात” के संबोधन में प्रयागराज मे हो रहे महाकुंभ के महत्व और इसके सामाजिक फायदों को गिनाते हुए बताया कि हजारों साल पुरानी कुंभ की परंपरा ने प्रमाणित किया है कि सनातन में जातिवाद, क्षेत्रवाद भेदभाव, ऊंच-नीच का कोई स्थान नहीं। प्रधानमंत्री की ये बात पूर्णतया सत्य है। महाकुंभ का स्नान संगम पर होता है। संगम मिलने वाली जगह को कहते हैं,यहां बिखरने वालों का कोई स्थान नहीं। मेले का शाब्दिक अर्थ मिलने से भी जुड़ा है, बिखरने से हरगिज़ नहीं।
प्रधानमंत्री ने मन की बात में प्रयागराज के साथ अयोध्या का जिक्र करते हुए इसे सांस्कृतिक चेतना का केंद्र बताया। ये भी सच है कि अयोध्या ने जातियों के बिखराव को तोड़कर रामभक्ति की एकता की अलख जलाने की शुरुआत की थी।
अब जब अयोध्या से जुड़ा सनातनी एकता का आंदोलन सुखद अंत तक पंहुचा तो ये सिलसिला जारी रखने के लिए महाकुंभ जैसे सांस्कृतिक चेतना के अनुष्ठान जातियों को जोड़ रहे हैं।
हिन्दुओं की जनगणना का शक्ति प्रदर्शन कर एकजुट हो रहे हैं। जातिवाद,दूरियों, ऊंच-नीच और भेदभाव को समाप्त कर रहे हैं। बूंद-बूंद जातियों में बंटने के बजाय सनातनी समाज एक कुंभ (घड़े) में इकट्ठा होकर पवित्र अमृत कलश की ताकत बन रहा है।
भारतीय समाज एक मजबूत वट वृक्ष है, इसकी जड़ें हमारी संस्कृति, परंपराएं और आस्था है। जड़ों की मजबूती तने को सशक्त बनाती हैं। तना टहनियों,डालियों और शाखाओं को बल देती हैं। डालियां, शाखाएं और टहनियां फल और फूलों के विकास में मददगार साबित होती हैं।
सनातन संस्कृति की गहराई वाली भारत की जड़ों की मजबूती का दर्शन उत्तर प्रदेश में समय-समय पर उभर रहा है। सांस्कृतिक चेतना की मजबूत होती जड़े विकास, खुशहाली, स्वरोजगार,व्यापार और राजस्व के फलने फूलने के फल और पत्तियों को पैदा कर रही हैं। काशी-मथुरा से लेकर श्री रामनगरी अयोध्या हो या प्रयागराज में महाकुंभ में उमड़ा जनसैलाब हो, सनातनियों की एकता-एकजुटता और आस्था का संगम बनने के साथ दुनिया भर का पर्यटक आकर्षित हो रहा है।स्वरोजगार और आर्थिक विकास के भी उद्देश्य वाला महाकुंभ मेला चुनौतीपूर्ण सुरक्षा व्यवस्था का मॉकड्रिल भी है। यहां एक जगह आग की घटना घटने के चंद मिनटों में आग पर काबू पाना हर संकट को काबू करने की दक्ष तैयारियों का प्रमाण है।
करीब साढ़े सात वर्षों में ज्यादा के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में भाजपा की राजनीतिक सफलताओं के साथ हिन्दू समाज की सांस्कृतिक चेतना निरंतर सिर चढ़कर बोल रही हैं।
न्यायालय द्वारा राम मंदिर के हक के फैसले के बाद अयोध्या में राममंदिर के उद्घाटन, फिर भव्य और दिव्य राममंदिर में रामलीला की प्राण प्रतिष्ठा ने भारतीय बहुसंख्यकों को आत्मबल दिया है। इस शुभ बेला के एक वर्ष होने के उत्सव के बीच 144 वर्षों के बाद अद्भुत महाकुंभ का शुभ संयोग प्राप्त हो गया। योगी आदित्यनाथ की सरकार के कुशल प्रबंधन में आस्था का समागम महाकुंभ हर लेहाज़ से सफलता के रिकार्ड बना रहा है।
करीब सवा सौ करोड़ की हिन्दू आबादी वाले भारत में सनातन धर्म की विभिन्न जातियों,पंथों और संप्रदायों को महाकुंभ और रामभक्ति की भावना ने और भी अधिक एकजुट कर दिया है।
विश्व में सबसे बड़ी जनसंख्या वाले भारत की सनातन संस्कृति की एकजुटता भारतीय समाज को मजबूती प्रदान कर रही है। प्रयागराज में गंगा यमुना और सरस्वती का संगम देश के बहुसंख्यकों को आस्था के धागों में बांध रहा है।
सर्वाधिक आबादी वाले भारत की लगभग आधी आबादी यदि किसी एक आयोजन में एकत्र हो रही है तो ये दुनिया का पहला और अद्भुत आयोजन माना जा रहा है। ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित कर रहा है और भारत के सशक्तिकरण को प्रमाणित कर रहा है।
– नवेद शिकोह